Edited By Punjab Kesari,Updated: 25 Jan, 2018 06:20 PM
प्राचीन समय की बात है एक बार राजा परीक्षित के हाथों एक तपस्वी ऋषि का अपमान हो गया। जिससे क्रोधित हुए ऋषिवर ने राजा परीक्षित को सर्प दंश से मृत्यु का श्राप दे दिया।
प्राचीन समय की बात है एक बार राजा परीक्षित के हाथों एक तपस्वी ऋषि का अपमान हो गया। जिससे क्रोधित हुए ऋषिवर ने राजा परीक्षित को सर्प दंश से मृत्यु का श्राप दे दिया। ऋषिवर से एेसा श्राप मिलने के बाद राजा परीक्षित हर समय डरे सहमे रहने लगे परंतु बहुत सावधानियां रखने के बावजूद ऋषि वाणी के अनुसार एक दिन फूलों की टोकरी में कीड़े के रूप में छुपे तक्षक नाग के काटने से परीक्षित की मृत्यु हो जाती है।
जब राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय (पांडव वंश के आखिरी राजा) को पता चलता है की सांपों के राजा, तक्षक नाग के काटने से उनके पिता की मृत्यु हुई है तो वे प्रतिशोध लेने का निश्चय करते हैं। जनमेजय सर्प मेघ यज्ञ का आहवाहन करते हैं, जिससे समस्त पृथ्वी के सांप एक के बाद एक हवन कुंड में आ कर गिरने लगते हैं।
सर्प जाति का अस्तित्व खतरे में पड़ता देख तक्षक नाग सूर्य देव के रथ में जा लिपटता है। अब अगर तक्षक नाग हवन कुंड में जाता तो उसके साथ सूर्य देव को भी हवन कुंड में जाना पड़ता और इस दुर्घटना से सृष्टि की गति थम जाति। पिता की मृत्यु का बदला लेने की चाह में जनमेजय समस्त सर्प जाति का विनाश करने पर तुला था इसलिए देवगण उन्हे यज्ञ रोकने की सलाह देते हैं पर वह नहीं मानते। अंत में अस्तिका मुनि के हस्तक्षेप से जनमेजय अपना महा विनाशक यज्ञ रोक देते हैं।