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शनि देव और गणेश जी ये किस्सा, नहीं सुना होगा आज तक

Edited By Jyoti,Updated: 19 May, 2020 02:16 PM

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अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम आपको पहले भी बता चुके हैं कि इस साल की ज्येष्ठ अमावस्या 22 मई को पड़ रही है, जिसका हिंदू धर्म में काफी महत्व है।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम आपको पहले भी बता चुके हैं कि इस साल की ज्येष्ठ अमावस्या 22 मई को पड़ रही है, जिसका हिंदू धर्म में काफी महत्व है। इसी दिन को शनि अमावस्या व शनि जयंती के नाम से भी भी जाना जाता है। ऐसी कथाओं प्रचलित हैं, ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि के दिन शनि भगवान का जन्म हुआ था। अब क्योंकि शनि सूर्य देव के पुत्र हैं और इन्हें नवग्रह में भी स्थाव प्राप्त है, इस वदजह से इनका धार्मिक और ज्योतिषीय दोनों ही दृष्टि से महत्व है। आस्था की दृष्टि से देखा जाए तो इनको देवता की संज्ञा दी गई है तो वहीं ज्योतिष शास्त्र में इन्हें एक क्रूर ग्रह माना गया है। इन्हीं कारणों की वजह से शनि अमावस्या जिसे शनि जयंती के नाम से भी जाना जाता है, मंदिरों में इनकी खास रूप से पूजा-अर्चना की जाती है, ताकि कुंडली में शनि को शांत ही रखा जाए। चूंकि इन्हें क्रूर ग्रह कहा गया है इसलिए इन्हें प्रसन्न करने के लिए कर्म, अनुष्ठान, पूजा-पाठ और दान आदि किया जाता है।

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तो चलिए जानते हैं इनसे इनसे जुड़ी खास बातें-
जैसे कि हमने उपरोक्त आपको बताया कि हिन्दू पंचांग के मुताबिक ज्येष्ठ माह की अमावस्या को शनिदेव के जन्मदिवस के रूप में शनि जयंती मनाई जाती है। यह दिन शनिदेव की पूजा-अर्चना कर उनकी कृपा पाने के लिए श्रेष्ठ है। यहां एक तरफ़ इन्हें नवग्रह में न्यायाधिपति का दर्जा प्राप्त है, जो मनुष्यों को उनके कर्मानुसार फल प्रदान करते हैं। ज्योतिष में शनि की दृष्टि अनिष्टकारक मानी गई है। मगर क्यों चलिए जानते हैं-

गणेश जी पर किया दृष्टिपात
ब्रह्मवैवर्तपुराण की मानें तो देवी पार्वती ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से ‘पुण्यक’ नामक ’ व्रत किया था। जिसके प्रभाव स्वरूप उन्हें उनको गणेश जी पुत्र के रूप में प्रकट हुए थे। जिसके बाद पूरा देवलोक भगवान शिव और माता पार्वती को बधाई देने और बालक को आशीर्वाद देने शिवलोक पहुंच गया। मगर, शनिदेव ने न तो बालक गणेश को देखा और न ही उनके पास गए। जिस पर देवी पार्वती ने इस पर शनिदेव को टोका। जिसके बाद शनिदेव ने अपने श्राप की बात मां दुर्गा को बताई।

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तब देवी पार्वती ने शनैश्चर से कहा- 'तुम मेरी और मेरे बालक की ओर देखो।’

शनिदेव ने धर्म को साक्षी मानकर बालक को तो देखने का विचार किया पर बालक की माता को नहीं। उन्होंने अपने बाएं नेत्र के कोने से शिशु के मुख की ओर निहारा। शनि की दृष्टि पड़ते ही शिशु का मस्तक धड़ से अलग हो गया। माता पार्वती अपने बालक की यह दशा देख मूर्छित हो गईं। जिसके बाद देवी पार्वती को इस आघात से बाहर निकालने के लिए श्री हरि अपने वाहन गरुड़ पर सवार होकर बालक के लिए सिर की खोज में निकल पड़े और आख़िर में अपने सुदर्शन चक्र से एक हाथी का सिर काट कर कैलाश पहुंचे। और देवी पार्वती के पास जाकर भगवान विष्णु ने हाथी के मस्तक को सुंदर बनाकर बालक के धड़ से जोड़ दिया।
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