Edited By Lata,Updated: 24 Jul, 2019 03:27 PM
ऐसा माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति सावन महीने में भगवान शिव का पूजन कर ले तो उसके वारे नयारे हो जाते हैं।
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ऐसा माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति सावन महीने में भगवान शिव का पूजन कर ले तो उसके वारे नयारे हो जाते हैं। कहते हैं सावन माह में शिवलिंग की पूजा होती है, ठीक वैसे ही अगर कोई सावन के दौरान किसी ज्योतिर्लिंग के केवल दर्शन ही कर ले तो उसके भाग्य खुल जाते हैं। हमारे देश में कुल 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं, जिनमें से सबसे पहला नाम सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का आता है। आइए जानते हैं उसके बारे में कुछ विस्तार से।
सबसे पहला ज्योतिर्लिंग गुजरात राज्य के सौराष्ट्र नगर में अरब सागर के तट पर स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग 'सोमनाथ' के नाम से जाना जाता है। पहले यह क्षेत्र प्रभास क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। यहीं भगवान श्री कृष्ण ने ज़रा नामक व्याघ्र के बाण को निमित्त बनाकर अपनी लीला का प्रदर्शन किया था। सोमनाथ मंदिर की दीवारों पर अंकित मूर्तियां मंदिर की भव्यता को दर्शाती हैं।
आज हम आपको इसके निर्माण की कथा के बारे में बताने जा रहे हैं।
शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग में क्या अंतर है ?
पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की 27 कन्याएं थीं और उन सभी का विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था। किंतु चंद्रमा का समस्त अनुराग व प्रेम उनमें से केवल रोहिणी के प्रति ही रहता था। उनके इस कृत्य से दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याएं बहुत अप्रसन्न रहती थीं। उन्होंने अपनी यह व्यथा-कथा अपने पिता को सुनाई। दक्ष प्रजापति ने इसके लिए चंद्रदेव को अनेक प्रकार से समझाया। किंतु रोहिणी के वशीभूत उनके हृदय पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंततः दक्ष ने गुस्स में चंद्र को 'क्षयग्रस्त' हो जाने का श्राप दे दिया। इसके कारण चंद्रदेव तत्काल क्षयग्रस्त हो गए। उनके क्षयग्रस्त होते ही पृथ्वी पर सुधा-शीतलता वर्षण का उनका सारा कार्य रूक गया। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। चंद्रमा भी बहुत दुखी और चिंतित थे। उनकी प्रार्थना सुनकर इंद्रादि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषिगण उनके उद्धार के लिए पितामह ब्रह्माजी के पास गए। सारी बातों को सुनकर ब्रह्माजी ने कहा- 'चंद्रमा अपने श्राप-विमोचन के लिए अन्य देवों के साथ पवित्र प्रभास क्षेत्र में जाकर मृत्युंजय भगवान शिव की आराधना करें। उनकी कृपा से अवश्य ही इनका श्राप नष्ट हो जाएगा और ये रोगमक्त हो जाएंगे।
उनके कथनानुसार चंद्रदेव ने मृत्युंजय भगवान की आराधना का सारा कार्य पूरा किया। उन्होंने घोर तपस्या करते हुए दस करोड़ बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वर प्रदान किया। उन्होंने कहा- 'चंद्रदेव! तुम शोक न करो। मेरे वर से तुम्हारा श्राप-मोचन तो होगा ही, साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी हो जाएगी। तदन्तर चन्द्रमा एवं अन्य देवताओं के प्रार्थना करने पर भगवान शंकर उन्हीं के नाम से ज्योतिर्लिंग के रूप में पार्वती सहित वहां स्थित हो गए और सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से तीनों लोकों में विख्यात हुए। चंद्रमा का एक नाम सोम भी है, उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी। अतः इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहा जाता है।