Edited By Jyoti,Updated: 23 Aug, 2020 09:46 AM
जिस तरह से सावन के माह में सनातन धर्म से संबंधित कई तरह के पर्व और त्यौहार आदि मनाए जाते हैं। ठीक उसी तरह इसके ठीक मास यानि भाद्रपद माह में भी कई प्रमुख त्यौहार आते हैं।
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जिस तरह से सावन के माह में सनातन धर्म से संबंधित कई तरह के पर्व और त्यौहार आदि मनाए जाते हैं। ठीक उसी तरह इसके ठीक मास यानि भाद्रपद माह में भी कई प्रमुख त्यौहार आते हैं। जिनसें मुख्य जन्माष्टमी तथा गणेश चतुर्थी को माना जाता है। परंतु बता दें इसके अलावा भी अन्य त्यौहार इस महीने में पड़ते हैं, इनमें से एक है ऋषि पंचमी। सनातन धर्म में इस दिन को बेहद खास माना जाता है। बता दें प्रत्येक वर्ष के भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी नामक पर्व मनाया जाता है। जो इस बार आज 23 अगस्त यानि रविवार को मनाया जा रहा है।
अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम मे आपको इसके शुभ मुहूर्त आदि के बारे में तो पहले ही बता दिया है, आज हम आपको बताएंगे कि इसके पूजन विधि साथ ही जानेंगे इससे जुड़ी पौराणिक कथा-
सनातन धर्म से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार इस दिन जो भी जातक इस दिन ऋषि मुनियों की पूजा करता या केवल सच्चे मन से स्मरण भी करता है तो उसे अपने समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन सप्त ऋषि की पूजन का विधान होता है।
तो वहीं ये भी कहा जाता है ये व्रत मासिक धर्म के दौरान भोजन को दूषित किए गए पाप से भी छुटकारा दिलाता है। ऐसी किंवदंतियां हैं कि मासिक धर्म के दौरान किसी भी प्रकार का काम करने से महिलाओं को रजस्वला दोष लगता है। तो ऐसे में अगर ऋषि पंचमी का व्रत कर लिया जाए तो इस दोष से मुक्ति मिल जाती है। यही कारण है इस व्रत को मुख्य रूप से महिलाओं के लिए उपयोगी माना जाता है। बता दें वैसे ये त्यौहार मुख्य रूप से नेपाल में मनाया जाता है।
ऋषि पंचमी से जुड़ी पौराणिक कथा-
इससे जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक ब्राह्मणी थी। जिसके विवाह के कुछ ही समय पश्चात् उसके पति की मृत्यु हो गई। थोड़े ही दिन बीते उसके अपने शरीर में कीड़े पड़ने लगे। जिस कारण उसके पिता को उसकी चिंता सताने लगी। क्योंकि अनेकों प्रकार के वैद्यों से उपचार करवाने पर भी वह ठीक नहीं हो रही थी।
एक दिन उसके पिता ने एक ऋषि से अपनी बेटी की इस हालत का कारण पूछा तो तब ऋषि ने उन्हें बताया कि आपकी कन्या रजस्वला दोष की वजह से यह दुख भोग रही है।
जिसका उपाय बताते हुए उन्होंने ब्राह्मणी के पिता को कहा कि ऋषि पंचमी के दिन ऋषियों का पूजन करने और व्रत करने से इस दोष का निवारण हो सकता है। ऋषि के कहे अनुसार ब्राह्मणी ने ऐसा ही किया, जिससे परिणाण स्वरूप उसके दोष का निवारण हो गया और वह ठीक हो गई।
ऋषि पंचमी पूजन विधि-
सूर्योदय से पहले उठकर, ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करके पवित्र होकर शुद्ध वस्त्र पहन लें।
इसके बाद सप्त ऋषियों यानि ऋषि वशिष्ठ, ऋषि विश्वामित्र, ऋषि कण्व, ऋषि भारद्वाज, ऋषि अत्रि, ऋषि वामदेव और ऋषि शौनक का ध्यान कर सात संतों या ऋषि-मुनियों को घर बुलाएं।
फिर सप्त ऋषियों के पैर धुलाकर, उन्हें आसन पर विराजित करवाएं, अब इनका तिलक लगाएं, और इन्हें फूलों की माला अर्पित करें।
इसके बाद फिर दीपदान करके, सप्त ऋषियों को भोजन करवाएं।
इस बात का खास ध्यान रहे कि भोजन में मिष्ठान ज़रूर हो और भोजन के बाद इन्हें दक्षिणा देकर, पैर छूकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद ही उन्हें विदा करें।