Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 Mar, 2025 07:54 AM

Sas Bahu ki Kahani: मैं एक परिवार से परिचित हूं। बात तब की है जब उस घर में नई-नई बहू आई थी। वह अपनी दादी सास के पास बैठी हुई थी। दादी सास के लिए जो खाना आया, उसमें कुछ रूखी-सूखी-सी कड़क रोटियां, पतली-सी दाल और दिखने में बेस्वाद-सी सब्जी थी। बहू को...
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Saas Bahu ki Kahani: मैं एक परिवार से परिचित हूं। बात तब की है जब उस घर में नई-नई बहू आई थी। वह अपनी दादी सास के पास बैठी हुई थी। दादी सास के लिए जो खाना आया, उसमें कुछ रूखी-सूखी-सी कड़क रोटियां, पतली-सी दाल और दिखने में बेस्वाद-सी सब्जी थी। बहू को बहुत अटपटा लगा कि बूढ़ी दादी, जिसके मुंह में दांत भी नहीं हैं, उन्हें ऐसा खाना? दूसरी बार जब सास रोटी देने आई तो उसने देखा कि बहू रोटियां उलट-पुलट कर देख रही है। सास ने पूछा, ‘‘इनमें क्या देख रही है?’’

वह बोली, ‘‘कुछ नहीं मम्मी जी, बस देख रही हूं कि आपके घर का रिवाज क्या है? जब मेरी शादी हुई तो विदाई के वक्त मेरे पापा ने कहा था कि इस घर में जो रिवाज चलते थे उन्हें भूल जाओ और जहां जा रही हो वहां के रिवाज अपनाना, वही सीखना, उन्हीं को निभाना। तो मैं देख रही हूं कि जो आप दादी मां के साथ निभा रही हैं, वही मुझे आगे निभाना है।’’
सास ने पूछा, ‘‘मतलब।’’
बहू ने कहा, ‘‘मतलब क्या, रिवाज सीख रही हूं। मम्मी जी मैं कुछ नहीं कर रही, सिर्फ इस घर के संस्कार सीख रही हूं।’’

सास ने कहा, ‘‘यानी, तू मुझे ऐसी रोटियां खिलाएगी?’’
उसे धक्का लगता है। वह इतना ही कहती है, ‘‘तुझे नर्म रोटी खिलानी है तो तू बनाकर खिला दे।’’
‘‘कोई बात नहीं मम्मी जी मैं बनाकर खिला दूंगी। जब मुझे बनाना है तो अपनी बूढ़ी दादी सास के लिए भी खाना बनाने में कहां तकलीफ है।’’
एक समझदार बहू के कारण अगले दिन से बूढ़ी दादी को नर्म रोटी मिलनी शुरू हो गई। दूसरे दिन जब वह फिर से दादी की थाली उलट-पुलट कर देखती है तो सास पूछती है, ‘‘अब क्या देख रही है?’’

बहू जवाब देती है, ‘‘देख रही हूं कि जब आप बूढ़ी हो जाएंगी तो स्टील की थाली लगानी है या ऐसी ही मिट्टी की।’’
‘‘तो क्या तू मुझे मिट्टी के ठीकरों में खाना खिलाएगी?’’
‘‘मैं कहां खिलाऊंगी, मैं तो बस आपके घर का रिवाज सीख रही हूं।’’
थाली बदलती है। बूढ़ी दादी के फटे-पुराने, मैले-कुचैले वस्त्र भी बदल जाते हैं, टूटी-फूटी चारपाई की जगह अच्छा पलंग और बिस्तर लग जाते हैं। कमरा सुव्यवस्थित हो जाता है। और जब उसका अंत समय निकट आता है तो वह अपने पोते की बहू को इतना आशीर्वाद देकर जाती है कि आज भी बहू अपनी दादी सास को याद कर अश्रु बहाती है, श्रद्धा समर्पित करती है कि उनके आशीर्वाद से ही आज परिवार दिन-ब-दिन सुख-समृद्धि की ओर निरन्तर प्रगति कर रहा है।
