Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Mar, 2024 06:24 AM
भगवत्प्रेम की साक्षात् प्रतिमूर्ति शबरी
दंडकारण्य में भक्ति-श्रद्धा सम्पन्न एक वृद्धा भीलनी रहती थीं जिनका नाम था शबरी। एक दिन वह घूमती हुई पंपा नामक पुष्करिणी के पश्चिमी तट पर स्थित एक अति स्मणीय मतंग वन में
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Shabari jayanti 2024: दंडकारण्य में भक्ति-श्रद्धा सम्पन्न एक वृद्धा भीलनी रहती थीं जिनका नाम था शबरी। एक दिन वह घूमती हुई पंपा नामक पुष्करिणी के पश्चिमी तट पर स्थित एक अति स्मणीय मतंग वन में मतंग मुनि के अत्यंत सुंदर आश्रम में पहुंचीं। अनाथ शबरी ने मुनि के चरणों में सिर रख दिया और उनसे शरण मांगी। दयालु मुनि ने उन्हें शरण दी तथा भक्ति का ज्ञान दिया। मतंग मुनि सदा प्रभु भक्ति में लीन रहा करते थे। अंत समय में उन्होंने शबरी को आदेश दिया, ‘‘तुम यहीं रहना क्योंकि यहां श्रीराम और लक्ष्मण पधारेंगे। तुम उनका स्वागत करना। श्रीराम परब्रह्म हैं, उनका दर्शन करके तुम्हारा जीवन सफल हो जाएगा।’’
2024 Shabari Jayanti: शबरी के मन में श्रीराम भक्ति की एक लौ उन्होंने जगा दी थी। गुरु के आदेशानुसार शबरी श्रद्धापूर्वक प्रतिदिन आश्रम में प्रभु श्रीराम के आगमन की प्रतीक्षा करती रहती थीं कि पता नहीं प्रभु श्रीराम कब पधार जाएं? अत: नित्य आश्रम के प्रवेश द्वार तक के मार्ग को बुहारतीं और सम्पूर्ण मार्ग को नवीन पुष्पों से ओट देती थीं।
Shabari in ramayan: भगवान श्रीराम आएंगे-यह गुरु का संदेश था और उन्हें इसका दृढ़ विश्वास था। कब आएंगे?-पता नहीं पर आएंगे अवश्य। वह श्रद्धा-भक्तिपूर्वक रात-दिन श्रीराम जी का स्मरण करतीं। उनके स्वागत के लिए प्रतिदिन वन के ताजे पके कंद-मूल-फल संग्रह करतीं। उन्हें विश्वास-सा हो चला था कि प्रभु श्रीराम लक्ष्मण सहित अवश्य आएंगे। अंतत: वह शुभ दिन आ गया। प्रभु श्रीराम लक्ष्मण सहित सीता की खोज करते हुए शबरी के आश्रम की ओर आ ही गए। शबरी ने देखा- श्री राम और लक्ष्मण मतंग वन की शोभा निहारते हुए बहुसंख्यक वृक्षों से घिरे उस सुरम्य आश्रम की ओर आ रहे हैं। शबरी सिद्ध तपस्विनी थीं। उन दोनों भाइयों को आश्रम में आया देख वह हाथ जोड़कर खड़ी हो गईं। उन्होंने श्रीराम और लक्ष्मण के चरणों में प्रणाम किया। कमल सदृश नेत्र, विशाल भुजाओं वाले, सिर पर जटाओं का मुकुट और गले में वनमाला धारण किए, सुंदर, सांवले और गोरे दोनों भाइयों के चरणों से शबरी लिपट गईं।
Shabari Jayanti : श्रीराम ने शबरी को दोनों हाथ बढ़ाकर उठा लिया और प्रेमपूर्वक पूछा, ‘‘हे चारुभाषिणि! तुमने जो गुरुजन की सेवा की वह पूर्ण सफल हो गई है न?’’
उनके ऐसा पूछने पर शबरी ने उत्तर दिया, ‘‘हे रघुनंदन! आज आपका दर्शन पाकर मुझे अपनी तपस्या में सिद्धि प्राप्त हो गई। आज मेरा जन्म सफल हुआ। गुरुजनों की उत्तम पूजा भी सार्थक हो गई।’’
ऐसा कह कर शबरी ने दोनों भाइयों को पाद्य, अर्ध्य और आचमनीय आदि सामग्री समर्पित की। बड़े वात्सल्य भाव से नाना प्रकार के कंद-मूल-फल जो उसने प्रेमपूर्वक संग्रह किए थे, उन्हें जीमने को दिए। श्रीराम ने बड़े प्रेमपूर्वक उन मीठे पके कंद-मूल-फलों को ग्रहण किया और उनके दिव्य आस्वाद का बार-बार बखान किया।
इस प्रकार प्रभु श्रीराम का आदर-सत्कार करके शबरी ने पुन: कहा, ‘‘हे सौम्य! मानद! आपकी सौम्य दृष्टि पडऩे पर मैं परम पवित्र हो गई। शत्रुदमन! आपके प्रसाद से ही अब मैं अक्षय लोकों में जाऊंगी।’’
Shabari jayanti festival: फिर वह हाथ जोड़कर खड़ी हो गईं। तब श्रीराम बोले, ‘‘हे भामिनि! मैं तो केवल भक्ति का ही संबंध मानता हूं। जाति, पाति, कुल, धर्म, बड़ाई, धन-बल, कुटुम्ब, गुण एवं चतुराई इन सबके होने पर भी भक्ति रहित मनुष्य जलहीन बादल-सा लगता है। उन्होंने शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश किया। कहा- मेरी भक्ति नौ प्रकार की है -1.संतों की संगति अर्थात सत्संग, 2. श्रीराम कथा में प्रेम, 3. गुरुजनों की सेवा, 4. निष्कपट भाव से हरि का गुणगान, 5. पूर्ण विश्वास से श्रीराम नाम जप, 6. इंद्रिय दमन तथा कर्मों से वैराग्य, 7. सबको श्रीराममय जानना, 8. यथालाभ में संतुष्टि तथा 9. छल रहित सरल स्वभाव से हृदय में प्रभु का विश्वास। इनमें से किसी एक प्रकार की भक्ति वाला मुझे प्रिय होता है, फिर तुझमें तो सभी प्रकार की भक्ति दृढ़ है। अतएवं जो गति योगियों को भी दुर्लभ है, वह आज तेरे लिए सुलभ हो गई है। उसी के फलस्वरूप तुम्हें मेरे दर्शन हुए, जिससे तुम सहज स्वरूप को प्राप्त करोगी।’’
Mata shabri: इतना कहकर श्रीराम ने शबरी से जानकी के विषय में पूछा। शबरी ने तब उन्हें पंपा सरोवर पर जाने को कहा और बोली, ‘‘वहां सुग्रीव से आपकी मित्रता होगी। हे रघुवीर! वे सब हाल बताएंगे। आप अंतर्यामी होते हुए भी ये सब मुझसे पूछ रहे हैं?’’
फिर कहने लगीं, जिनका यह आश्रम है, जिनके चरणों की मैं सदा दासी रही, उन्हीं पवित्रात्मा महर्षि के समीप अब मुझे जाना है। प्रेम भक्ति में रंगी हुई शबरी ने बार-बार प्रभु के चरणों में सिर झुकाकर प्रभु दर्शन करके हृदय में श्रीराम के चरणों को धारण करके योगाग्नि द्वारा शरीर त्यागा। वह प्रभु चरणों में लीन हो गईं।
भगवत्प्रेम का सुंदर स्वरूप जो शबरी ने प्रस्तुत किया वह किसी के भी हृदय में प्रेम भक्ति का संचार करने में सर्वथा सक्षम है, इसमें जरा भी संदेह नहीं। वह श्रीराम में वात्सल्य भाव रखती थीं और श्रीराम ने भी उन्हें माता कौशल्या की भांति मातृभाव से ही देखा।