Edited By Prachi Sharma,Updated: 19 May, 2024 08:38 AM
भारतवर्ष में सम्राट समुद्रगुप्त प्रतापी सम्राट हुए थे लेकिन चिंताओं से वह भी नहीं बच सके। चिंताओं के कारण वह परेशान से रहने लगे। चिंतन करने के लिए एक दिन वन की ओर निकल पड़े। वह
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Samrat Samudragupta Story: भारतवर्ष में सम्राट समुद्रगुप्त प्रतापी सम्राट हुए थे लेकिन चिंताओं से वह भी नहीं बच सके। चिंताओं के कारण वह परेशान से रहने लगे। चिंतन करने के लिए एक दिन वन की ओर निकल पड़े। वह रथ पर थे, तभी उन्हें एक बांसुरी की आवाज सुनाई दी। वह मीठी आवाज सुनकर उन्होंने सारथी से रथ धीमा करने को कहा और बांसुरी के स्वर के पीछे जाने का इशारा किया। कुछ दूर जाने पर समुद्रगुप्त ने देखा कि झरने और उनके पास मौजूद वृक्षों की आड़ से एक व्यक्ति बांसुरी बजा रहा था। पास ही उसकी भेड़ें चर रही थीं। राजा ने कहा-आप तो इस तरह प्रसन्न होकर बांसुरी बजा रहे हैं, जैसे कि आपको किसी देश का साम्राज्य मिल गया हो।
युवक बोला, ‘‘श्रीमान आप दुआ करें कि भगवान मुझे कोई साम्राज्य न दे, क्योंकि मैं अभी भी सम्राट जैसा महसूस करता हूं। मान्यवर, साम्राज्य मिल जाने पर कोई सम्राट नहीं रह जाता बल्कि वह तो सेवक बन जाता है।’’
युवक की बात सुनकर राजा-हैरान रह गए। तब युवक ने कहा सच्चा सुख स्वतंत्रता में है। व्यक्ति संपत्ति से स्वतंत्र नहीं होता बल्कि भगवान का चिंतन करने से स्वतंत्र होता है। जब वह मन कर्म वचन के बारे में चिंतन करता है, तब उसे किसी भी तरह की सांसारिक चिंता नहीं होती है। ऐसे में मुझमें और सम्राट में मात्र संपत्ति का ही अंतर है। बाकी सब कुछ तो मेरे पास भी है। युवक की बातें सुनकर राजा ने युवक को अपने सम्राट होने का परिचय दिया। युवक सम्राट समुद्रगुप्त का परिचय जानकर हैरान था, लेकिन जाने-अनजाने ही सही, राजा की चिंता का समाधान उसने कर दिया था।