Edited By Prachi Sharma,Updated: 03 Nov, 2024 06:00 AM
एक समय की बात है, किसी शहर में बहुत दूर से एक विद्वान आया। उसने लोगों से कहा कि वह यहां के विद्वानों से शास्त्रार्थ करना चाहता है
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Sanatana Goswami Story: एक समय की बात है, किसी शहर में बहुत दूर से एक विद्वान आया। उसने लोगों से कहा कि वह यहां के विद्वानों से शास्त्रार्थ करना चाहता है। कुछ लोग उसे शहर के प्रमुख विद्वानों के पास ले गए। उन्होंने कहा, हमारे यहां तो सनातन गोस्वामी और उनके भतीजे जीव गोस्वामी ही श्रेष्ठ ज्ञानी हैं। अगर वह आपको विजेता के रूप में स्वीकार कर मान्यता पत्र पर हस्ताक्षर कर देंगे तो हम भी आपको विजेता मान लेंगे।
वह विद्वान सनातन गोस्वामी के पास पहुंचा और बोला स्वामी जी या तो आप मुझसे शास्त्रार्थ कीजिए या मुझे विजेता का मान्यता पत्र प्रदान कीजिए। इस पर सनातन गोस्वामी बोले, भाई अभी हमने शास्त्र का मर्म ही कहां जाना है ? हम तो विद्वानों के सेवक हैं। यह कहते हुए उन्होंने मान्यता पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। विद्वान मान्यता पत्र लेकर प्रसन्नतापूर्वक चला जा रहा था कि उसे जीव गोस्वामी मिल गए।
विद्वान ने उनसे भी कहा, आप इस मान्यता पत्र पर हस्ताक्षर करेंगे या मुझसे शास्त्रार्थ करेंगे ?
जीव गोस्वामी बोले, मैं शास्त्रार्थ करने के लिए तैयार हूं। दोनों में शास्त्रार्थ शुरू हो गया। शहर के लोग उत्सुकतापूर्वक यह सब देख रहे थे।
लंबे शास्त्रार्थ में जीव गोस्वामी ने उस विद्वान को पराजित कर दिया। वह विद्वान दुखी होकर नगर से चला गया। जीव गोस्वामी ने सनातन गोस्वामी को अपनी विजय के बारे में बताया पर वह प्रसन्न नहीं हुए।
उन्होंने कहा, एक विद्वान को अपमानित करके तुम्हें थोड़ा यश मिल गया होगा लेकिन क्या करोगे यह यश लेकर ? यह केवल तुम्हारे अहंकार को बढ़ाएगा और तुम अपने अहंकार के कारण ज्ञान की साधना आगे कैसे कर पाओगे ? आखिर उस विद्वान को विजयी मान लेने में तुम्हारा क्या बिगड़ता था ? हमारे लिए यह जीवन-मरण, सुख-दुख, मित्र-शत्रु, सभी एक समान होते हैं। हमें हार-जीत के फेर में नही पड़ना चाहिए।
जीव गोस्वामी को अपनी भूल का एहसास हो गया। उन्होंने अपने व्यवहार के लिए उनसे क्षमा मांगी।