Sant Kabir Jayanti: अज्ञानता को ज्ञान के प्रकाश में बदल देती हैं कबीर की साखियां

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Jun, 2024 07:57 AM

sant kabir jayanti

कबीर साहब का आविर्भाव सन् 1398 में ज्येष्ठ पूर्णिमा, सोमवार को हुआ। इसी दिन काशी के जुलाहे नीरू अपनी नवविवाहिता नीमा का गौना करा कर अपने घर लौट रहे थे कि रास्ते में नीमा को प्यास लगी और लहरतारा तालाब पर पानी पीने के लिए गई।

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Kabir Jayanti 2024: कबीर साहब का आविर्भाव सन् 1398 में ज्येष्ठ पूर्णिमा, सोमवार को हुआ। इसी दिन काशी के जुलाहे नीरू अपनी नवविवाहिता नीमा का गौना करा कर अपने घर लौट रहे थे कि रास्ते में नीमा को प्यास लगी और लहरतारा तालाब पर पानी पीने के लिए गई। वहां बच्चे की रोने की आवाज सुनाई दी और जब देखा, एक बालक कमल दल के गुच्छ पर लेटा रो रहा था। नीरू व नीमा बालक को घर ले गए जो बाद में संत कबीर हुए। जहां कबीर जी पाए गए, उस स्थान को प्रकट स्थली कहा जाता है और वहीं प्रकटस्थली मंदिर बनाया गया है। कबीर चौरामठ मूलगादी सिद्धपीठ काशी कबीर साहब की कर्मभूमि है। नीरू एवं नीमा यहीं रहते थे। नीरू टीला कबीर का घर था। यहां पर ही कबीर जी का लालन-पालन हुआ। कबीर साहब के माता-पिता कपड़ा बुनने का कार्य करते थे और कबीर साहब भी इस कार्य में निपुण हो गए तथा अपने माता-पिता का हाथ बंटाने लगे। उनका झुकाव परमार्थ की ओर था। उनमें गूढ़ तत्वों को समझ कर उनकी गहराई में जाने और उनका विवेचन करने की असाधारण योग्यता थी। कबीर साहब क्रांतिकारी समाज सुधारक थे। उन्होंने अपना जीवन निर्गुण भक्ति में व्यतीत करते हुए समाज में फैली जात-पात और अंधविश्वास का विरोध किया। उनका ज्ञान मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार से दूर है। उनकी साखियां अज्ञानता को दूर कर सत्य का साक्षात्कार कराती हैं। कबीर साहब ने अपने जीवन काल में कभी किसी जाति के व्यक्ति को नीचा या ऊंचा नहीं माना। उनके अनुसार कोई भी मनुष्य नीचा नहीं है। अगर कोई नीचा है तो वही है जिसके हृदय में प्रभु की भक्ति नहीं है।

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बेगर-बेगर नाम धराए, एक माटी के भांडे।
एक ही मिट्टी के बने पुतलों में से कोई खुद को एक जाति का कहता है तो कोई दूसरी का।

साखी आंखी ज्ञान की, समुझ देख मन मांहि। बिनु साखी संसार का, झगड़ा छुटत नाहिं॥
कबीर साहब कहते हैं कि साखियां हमारे जीवन की आंखें हैं। साखियां अज्ञानता के अंधकार दूर करके प्रकाश में बदलती हैं।
उन्होंने संसार को समझने व जानने के लिए ज्ञान का रास्ता बताया है। दुनिया में झगड़ा इतना बढ़ गया है कि साखी ही अज्ञानता को दूर कर झगड़े समाप्त कर सकती है।

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नहाए धोए क्या भया, जो मन मैला न जाए। मीन सदा जल में रहै, धोए बास न जाए॥
नहाने-धोने से क्या लाभ यदि मन की मलिनता को दूर नहीं किया। मछली सदा पानी में रहती है और निरंतर अपने शरीर को धोती है फिर भी उसके शरीर से दुर्गंध नहीं जाती।

सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हिरदे सांच है, ताके हिरदे आप॥
कबीर साहब कहते हैं, सत्य के समान संसार में कोई तप नहीं और झूठ के बराबर कोई पाप नहीं है, जिसके हृदय में सत्य का निवास है, उसके हृदय में ईश्वर स्वयं वास करते हैं।

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