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Santoshi Mata Vrat Katha: इस कथा को पढ़ें बिना अधूरा है संतोषी माता का व्रत

Edited By Prachi Sharma,Updated: 07 Feb, 2025 08:46 AM

santoshi mata vrat katha

संतोषी माता का व्रत विशेष रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। यह व्रत न केवल संतोष की देवी बल्कि सुख-समृद्धि और मानसिक शांति की प्राप्ति के लिए भी किया जाता है।

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Santoshi Mata Vrat Katha: संतोषी माता का व्रत विशेष रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। यह व्रत न केवल संतोष की देवी बल्कि सुख-समृद्धि और मानसिक शांति की प्राप्ति के लिए भी किया जाता है। संतोषी माता की पूजा और व्रत के पीछे एक गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यता छिपी हुई है, जिससे जीवन में सकारात्मकता और संतोष लाने की कामना की जाती है।

PunjabKesari Santoshi Mata Vrat Katha

व्रत की शुरुआत
संतोषी माता का व्रत विशेष रूप से शुक्रवार को किया जाता है, लेकिन यदि श्रद्धालु चाहे तो इसे किसी अन्य दिन भी कर सकते हैं। यह व्रत विशेष रूप से गृहणियों, माताओं और महिलाओं के बीच लोकप्रिय है, क्योंकि यह उनके जीवन में खुशहाली और संतोष लाने के लिए माना जाता है।

किवदिंतियों के अनुसार एक बुढ़िया के सात बेटे थे, जिनमें से छह कामकाजी थे और एक बेरोजगार। वह अपने छह बेटों को प्रेमपूर्वक खाना खिलाती और सातवें बेटे को उनकी बची हुई जूठन देती। सातवें बेटे की पत्नी इस बात से दुखी थी, लेकिन वह बहुत भोली थी और पति पर इसका कोई असर नहीं होता था।

एक दिन बहू ने इस बारे में पति से बात की। पति ने सिर दर्द का बहाना करके खुद सचाई देखी और दूसरे राज्य जाने का निश्चय किया। जाते समय उसने पत्नी को अंगूठी दी। दूसरे राज्य में उसे एक सेठ की दुकान पर काम मिल गया और उसने मेहनत से अपनी स्थिति बेहतर कर ली।

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घर पर, सास-ससुर बहू के साथ अत्याचार करने लगे। घर के सारे काम करवा कर उसे लकड़ियां लाने जंगल भेज देते और लौटने पर भूसे की रोटी और नारियल के खोल में पानी देते। बहू के दिन कठिनाई में बीत रहे थे। एक दिन रास्ते में उसने कुछ महिलाओं को संतोषी माता की पूजा करते देखा और पूजा विधि सीखी। उसने कुछ लकड़ियां बेचकर संतोषी माता के मंदिर में संकल्प लिया।

दो शुक्रवार बाद, बहू को अपने पति का पता और पैसे मिले। मंदिर में जाकर उसने माता से प्रार्थना की और माता ने उसे स्वप्न में दर्शन दिए। अगले दिन उसके पति का काम-काज निपट गया और वह घर लौट आया।

जब पति घर लौटे, तो बहू ने माता के कहे अनुसार लकड़ियां नदी किनारे रख दीं और घर लौटते वक्त सास-ससुर को आवाज दी। बेटे ने भूख लगने पर घर लौटकर रोटी खाई। घर में, सास ने झूठ बोलते हुए कहा कि बहू रोज चार बार खाती है। यह देखकर बेटा अपनी पत्नी को लेकर दूसरे घर में रहने लगा।

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एक दिन बहू ने उद्यापन की इच्छा जताई और जेठ के लड़कों को निमंत्रित किया। जेठानी ने जानबूझ कर बच्चों को खट्टा खाने के लिए कहा। बच्चों ने खीर खाई और फिर खटाई की मांग की। ऐसा करने के बाद संतोषी माता नाराज हो गईं और इसके परिणाम स्वरूप बहू के पति को राजा के सैनिक पकड़कर ले गए। बहू ने मंदिर जाकर माफी मांगी और वापस उद्यापन का संकल्प लिया। फिर उसका पति राजा के बंदीगृह से छूटकर घर लौट आया।

अगले शुक्रवार को बहू ने ब्राह्मण के बच्चों को भोजन पर बुलाया और उन्हें एक-एक फल दक्षिणा दी। इससे संतोषी माता प्रसन्न हुईं और बहू को एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। पूरे परिवार ने संतोषी माता की विधिपूर्वक पूजा शुरू की और सभी को अनंत सुख प्राप्त हुआ।

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