Edited By Niyati Bhandari,Updated: 07 Aug, 2023 09:30 AM
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उत्तर गुजरात के साबरकांठा जिले की ईडर तालुका में सात महर्षियों की तपस्थली (सप्तनाथ) सप्तेश्वर तीर्थ नाम से प्रसिद्ध है। साबरमती तथा डेभोल नदी के संगम पर स्थित इस तीर्थ में सप्तेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर है जहां हजारों श्रद्धालु भगवान शिव के...
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Sapteshwar Mahadev mystery: उत्तर गुजरात के साबरकांठा जिले की ईडर तालुका में सात महर्षियों की तपस्थली (सप्तनाथ) सप्तेश्वर तीर्थ नाम से प्रसिद्ध है। साबरमती तथा डेभोल नदी के संगम पर स्थित इस तीर्थ में सप्तेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर है जहां हजारों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं।
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महाभारत के आदि वर्ग के अनुसार कश्यप, वशिष्ठ, विश्वामित्र, भारद्वाज, अत्रि, जमदग्नि तथा गौतम सप्तर्षियों का संबंध त्रेता युग एवं भारतीय खगोल शास्त्र के साथ जुड़ा हुआ है। कहते हैं कि ये सप्तर्षि अर्जुन के जन्म के समय उपस्थित थे।
महाभारत युद्ध के समय युद्ध बंद करने के लिए कौरव सेनापति ने द्रोणाचार्य से भी प्रार्थना की थी। इसी तरह अनुशासन पर्व में मृत्यु शैया पर पड़े भीष्म के समय ये उपस्थित थे।
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अनुशासन पर्व के एक लेख में कहा गया है कि जब राजा ब्रजधरणी ने यज्ञ से कृत्पा तथा राक्षसी कन्या को उत्पन्न किया तो इन्हीं सप्तर्षियों ने अपनी पहचान देकर उसका छुटकारा किया था। तब इन ऋषियों पर गलत तरीके से चोरी का आरोप लगाया गया था। कश्यप ऋषि के बारे में कहा जाता है कि वे मरीचि ऋषि के पुत्र थे। इनका विवाह दक्ष प्रजापति की बेटी कंट तथा वनिता से हुआ था। वनिता से अरुण तथा गरुण पैदा हुए। उनकी दो अन्य पत्नियों अदिति तथा दिति से देव तथा दानव पैदा हुए।
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भगवान विष्णु कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति के गर्भ से वामन अवतार में पैदा हुए थे। इसी तरह अत्रि ऋषि के बारे में कहा जाता है कि उनके शरीर में हमेशा प्रकाश निकलता रहता था। वह ब्रह्मा जी के सात पुत्रों में से एक थे। महासती अनसूया उनकी धर्मपत्नी थी। उनके पुत्र का नाम दत्तात्रेय है।
वशिष्ठ ऋषि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे। उनकी पत्नी का नाम अरुंधति था। उनके बेटे का नाम वरुण था। उनके पास नंदिनी नामक एक गाय थी जिसके लिए उनकी लड़ाई विश्वामित्र से हुई थी।
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कहते हैं कि कौशिकी नदी के किनारे जब ऋषि विश्वामित्र मातंग ऋषि का यज्ञ पूर्ण करा रहे थे तब उस यज्ञ को भंग करने के लिए इंद्र ने स्वर्ग से मेनका नामक अप्सरा को भेजा था।
वह अपने तपश्चार्य के बल पर राजर्षि से महर्षि बने थे। भारद्वाज महान ऋषि थे। वह अग्नि के प्रथम पुत्र थे। उनके बेटे का नाम द्रोणाचार्य था।
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जमदग्नि ऋषि बहुत विख्यात थे। वह महर्षि च्यवन के प्रपौत्र तथा भगवान परशुराम के पिता थे। उनकी पत्नी का नाम रेणुका था। गौतम ऋषि उत्तर दिशा के तपस्वी ऋषि थे। अहिल्या उनकी पत्नी का नाम था।
कहते हैं कि इंद्र की सभी सभाओं से जुड़े उत्तर दिशा के इन्हीं सप्त ऋषियों के नाम पर सप्तर्षि तारामंडल का नाम रखा गया है। सप्तेश्वर महादेव मंदिर में जिस तरह सातों शिवलिंगों की स्थापना की गई है उससे यह प्रतीत होता है कि ये सप्तर्षि नभ मंडल से उतर कर भूमंडल में आज भी विराजमान हैं तथा भगवान शिव की पूजा कर रहे हैं।
सप्तर्षि महादेव मंदिर के जानकारों का मानना है कि यह मंदिर 3400 वर्ष पुराना है। इस महातीर्थ में आने पर हमेशा सौहार्द एवं शांति का अनुभव होता है।
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