Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Mar, 2025 12:38 PM

Saraswathi Teerth Pihowa: महाभारत के अनुसार, ‘‘कुरुक्षेत्र को बड़ा पुण्यमय कहा गया है किन्तु कुरुक्षेत्र से भी अधिक पुण्यमयी सरस्वती है। सरस्वती से भी उसके तटवर्ती तीर्थ पवित्र हैं और उनसे भी अधिक पृथूदक पुण्यमय है। नरोत्तम! पृथूदक से बढ़ कर और कोई...
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Saraswathi Teerth Pihowa: महाभारत के अनुसार, ‘‘कुरुक्षेत्र को बड़ा पुण्यमय कहा गया है किन्तु कुरुक्षेत्र से भी अधिक पुण्यमयी सरस्वती है। सरस्वती से भी उसके तटवर्ती तीर्थ पवित्र हैं और उनसे भी अधिक पृथूदक पुण्यमय है। नरोत्तम! पृथूदक से बढ़ कर और कोई पवित्र तीर्थ नहीं है।’’
‘‘यहां स्नान मात्र से ही नर-नारियों द्वारा किए गए सभी पाप, चाहे वे अनजाने में किए गए हों या जानकर, नष्ट हो जाते हैं। उसे अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है तथा स्वर्ग की प्राप्ति होती है।’’
पिहोवा अम्बाला जिले में सरस्वती नदी के दाहिने तट पर स्थित है। प्रसिद्ध थानेसर नगर से यह लगभग 6 कि.मी. दूर है। महाराज पृथु ने अपने पिता की अंत्येष्टि यहीं की थी। यहां अति प्राचीन मुद्राएं तथा मूर्तियां मिली हैं। यहां पश्चिम की ओर गोरखनाथ के शिष्य गरीबनाथ का मंदिर है। इसके अतिरिक्त भी यहां अनेक तीर्थ हैं। वामन पुराण के अनुसार विश्वामित्र को यहीं ब्राह्मण्य का लाभ हुआ था।
महाराज वेन के पुत्र महाराज पृथु के नाम से ही यह तीर्थस्थान ‘पृथूदक’ के नाम से विख्यात हुआ। पृथूदक अर्थात पृथु का सरोवर। हजारों यात्री प्रतिवर्ष पितृ पक्ष में यहां श्राद्ध आदि करने के लिए आते हैं, उस समय यहां बड़ा मेला लगता है।

यहां के प्रसिद्ध तथा प्राचीन मंदिर एवं दर्शनीय स्थान निम्रलिखित हैं :
पृथ्वीश्वर महादेव : यह प्राचीन शिव मंदिर है, जिसका निर्माण सर्वप्रथम महाराज पृथु ने करवाया था, परन्तु आक्रांताओं ने इस मंदिर को विध्वंस कर दिया। बाद में मराठों ने इस देवालय का पुन: निर्माण करवाया तथा इसका जीर्णोद्धार महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था।
सरस्वती देवी : यह सरस्वती देवी का छोटा-सा मंदिर सरस्वती नदी के तट पर बना हुआ है। इसका निर्माण भी मराठों ने करवाया था। मंदिर के द्वार पर चित्रकारी किया हुआ एक दरवाजा लगा हुआ है, जो एक स्थान से खुदाई के समय निकला था।

स्वामी कार्तिक : पृथ्वीश्वर महादेव के मंदिर के समीप ही अत्यंत प्राचीन मंदिर स्वामी कार्तिक का है। यात्री यहां श्रद्धा से तेल एवं सिंदूर चढ़ाते हैं।
चतुर्मुख महादेव : यह शिव मंदिर बाबा श्रवणनाथ के डेरे में प्राचीन तथा विशाल मंदिर है। शिवलिंग असली कसीटी का बना हुआ है। उसमें चार मुख बने हुए हैं तथा पास ही अष्टधातु की बनी हुई हनुमान जी की विशाल मूर्ति है, जो अत्यंत दर्शनीय है।

सरस्वती नदी के तट पर पवित्र घाट
पृथूदक : इस स्थान पर महाराज पृथु तप करके अपने परम तत्व में लीन हुए थे। इससे यह स्थान पृथूदक कहलाया तथा शहर भी इसी नाम से विख्यात हुआ। यहीं पर ऋषि उत्तक, मनु इत्यादि ने भी तप किया था।
ब्रह्मयोनि : यह तीर्थस्थान पृथूदक तीर्थ के साथ जुड़ा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने सर्वप्रथम सृष्टि की रचना इसी स्थान पर की थी। यहीं पर तपस्या करके ऋषि विश्वामित्र, देवापि, सिंधु, आर्ष्टषेण तथा अग्नि ने मोक्ष प्राप्त किया था। इस तीर्थ का नाम इन ऋषियों के नाम से भी है। ऐसा कहा जाता है कि विश्वामित्र ने यहीं ब्राह्मणत्व प्राप्त किया था। यह तीर्थस्थान सरस्वती नदी के किनारे शहर से लगभग एक फर्लांग दूर है।
अवकीर्ण तीर्थ : मानव कल्याण के लिए यह तीर्थ ब्रह्मा जी ने बनाया था। ऋषि बकदाल्भय ने यहां जप, तप तथा यज्ञ किए थे। यहां पर यज्ञोपवीत संस्कार कराया जाता है। यात्री इस स्थान पर स्नान करके ब्रह्मा जी का पूजन करते हैं। इसके समीप ही पृथ्वीश्वर महादेव का मंदिर है।
बृहस्पति तीर्थ : अवकीर्ण तीर्थ के साथ ही जुड़ा हुआ यह तीर्थस्थान है। यहां पर देवताओं के गुरु बृहस्पति जी ने यज्ञों का आयोजन किया था। यहां स्नान करके बृहस्पति जी का पूजन किया जाता है।
पापान्तक तीर्थ : यह तीर्थस्थान बृहस्पति तीर्थ के घाटों के समीप ही है। यहां पर स्नान करने से हत्या दोष दूर हो जाता है।
ययाति तीर्थ : यहां सरस्वती नदी के पावन तट पर महाराजा ययाति ने यज्ञ किए थे तथा राजा की कामना के अनुसार ही सरस्वती नदी ने दुग्ध, घृत एवं मधु को बहाया था। इसी कारण वे घाट भी दुग्धस्रवा तथा मधुस्रवा के नाम से प्रसिद्ध हैं। यहां पर यात्री स्नान करके पितरों के मोक्ष के निर्मित्त शास्त्रानुसार धार्मिक कार्य पूर्ण करते हैं। इस स्थान पर सरस्वती नदी के दोनों तटों पर पक्के घाट बने हुए हैं। चैत्र वदी चतुर्दशी को इस तीर्थ पर मेला लगता है।

राम तीर्थ : सरस्वती नदी के तट पर यह परशुराम जी के यज्ञ का स्थान है। लोग यहां परशुराम जी तथा उनके माता-पिता का पूजन करते हैं।
विश्वामित्र तीर्थ : यहां पर ऋषि विश्वामित्र का आश्रम था। यह उनके तप का स्थान है। अब यहां सिर्फ एक ऊंचा टीला है तथा कच्चा घाट है।
वशिष्ठ प्राची : यहां महर्षि वशिष्ठ का आश्रम था तथा उन्होंने इसी स्थान पर यज्ञों का आयोजन किया था। इस स्थान पर तीन मंदिर भगवान शिव के हैं। यहां पर दो शिव मंदिरों के मध्य में एक गुफा बनी हुई है जिसे वशिष्ठ गुफा कहते हैं तथा एक कूप है जहां यात्री अपने स्वर्गवासी संबंधियों के कल्याण के लिए धार्मिक कृत्य करते हैं।
फल्गु तीर्थ या सोम तीर्थ : यहीं पर प्राचीन पवित्र फलों का वन था जो कुरुक्षेत्र के सात पवित्र वनों में गिना जाता था। यहां एक ग्राम भी है, जो फरल के नाम से प्रसिद्ध है। प्राचीन समय में द्वषद्वती नदी इसी स्थान से होकर बहती थी।

यहां पर पितृ पक्ष में तथा सोमवती अमावस्या के दिन बहुत बड़ा मेला लगता है। ऐसा कहा जाता है कि उस समय यहां श्राद्ध, तर्पण तथा पिंडदान करने से गया के समान ही फल प्राप्त होता है। पांडवों ने यही आकर श्राद्ध किया था। इसके समीप ही प्राणीश्वर सूर्य तीर्थ और शुक्र तीर्थ है, जहां यात्री दर्शन तथा धार्मिक कार्य करते एवं पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।