Edited By Prachi Sharma,Updated: 01 Jan, 2025 11:07 AM
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महान वैज्ञानिक सत्येंद्रनाथ बोस का जन्म 1 जनवरी, 1894 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में एक मध्यवर्गीय परिवार में पिता सुरेंद्रनाथ बोस के घर मां अमोदिनी देवी की कोख से हुआ।
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Satyendra Nath Bose Birthday: महान वैज्ञानिक सत्येंद्रनाथ बोस का जन्म 1 जनवरी, 1894 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में एक मध्यवर्गीय परिवार में पिता सुरेंद्रनाथ बोस के घर मां अमोदिनी देवी की कोख से हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा उनके घर के पास ही स्थित साधारण स्कूल में हुई। इसके बाद उन्हें न्यू इंडियन स्कूल और फिर हिंदू स्कूल में भर्ती कराया गया।
स्कूली शिक्षा पूरी करके इन्होंने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। 1914 में सत्येंद्रनाथ बोस ने कलकत्ता के एक प्रमुख चिकित्सक की बेटी उषाबती घोष से शादी की, इनके 9 बच्चे थे। 1915 में इन्होंने एम.एससी. की पढ़ाई की और साल 1916 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के साइंस कॉलेज से रिसर्च स्कॉलर के तौर पर जुड़ गए। 1921 तक, इन्होंने यहां भौतिकी विभाग में व्याख्याता के रूप में काम किया।
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सत्येंद्रनाथ बोस ने ‘प्लैंक लॉ एंड द हाइपोथिसिस ऑफ लाइट क्वांटा’ नामक एक रिपोर्ट लिखी। इसमें उन्होंने अपने निष्कर्षों के बारे में बताया था। उन्होंने 4 जून, 1924 को महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन को अपना पेपर भेजा। आइंस्टाइन इससे इतने प्रभावित तथा हैरान हुए कि उन्होंने खुद इसका जर्मन में अनुवाद किया और बोस की ओर से एक प्रतिष्ठित जर्मन पत्रिका में इसे प्रकाशित किया। पेपर को ‘प्लैंक का नियम और प्रकाश क्वांटा की परिकल्पना’ नाम दिया गया।
आइंस्टाइन ने उनके रिसर्च पेपर के आधार पर कई शोध किए। इससे सत्येन्द्रनाथ को बहुत प्रसिद्धि मिली। बोस आजादी के बाद विश्व भारती विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर भी रहे, लेकिन बाद में अपनी रिसर्च क्वांटिम फिजिक्स को एक ही दिशा में ले गए। बोस के परिक्षण से पहले वैज्ञानिक यह मानते थे कि परमाणु ही सबसे छोटा कण होता है लेकिन बाद में यह मालूम चला कि परमाणु के अंदर भी कई छोटे-छोटे कण मौजूद होते हैं, जो वर्तमान में किसी भी नियम का पालन नहीं करते।
तब डॉ. बोस ने एक नए नियम को सिद्ध किया जो ‘बोस-आइंसटीन सांख्यिकी सिद्धांत’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जैसे ही यह नया नियम वैज्ञानिकों की नजरों में आया, इन सूक्ष्म कणों पर खूब रिसर्च की गई, जिसके बाद पता चला कि परमाणु के अंदर जो कण मौजूद होते हैं, वे मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं, जिनमें से एक का नाम डॉ. बोस के नाम पर ‘बोसॉन’ रखा गया तथा दूसरे को एनरिको फर्मी के नाम पर ‘फर्मीऑन’ कहा गया। देश के विभाजन के बाद, वह कलकत्ता लौट आए और 1956 तक विश्वविद्यालय में पढ़ाया। भारत सरकार ने 1952-1958 के लिए उन्हें राज्यसभा का सांसद बनाया। भारत सरकार ने विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में उनकी सेवाओं के लिए 1954 में पद्म विभूषण की उपाधि से उन्हें सम्मानित किया। सेवानिवृत्ति के बाद भी बोस ने अपना शोध जारी रखा। उन्होंने भौतिकी के साथ-साथ कार्बनिक रसायन विज्ञान, भूविज्ञान, इंजीनियरिंग आदि पर भी शोध किया।
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इनको 1956, 1959, 1962 और 1962 में 4 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया, परन्तु नोबेल पुरस्कारों के पीछे की गन्दी वैश्विक राजनीति के कारण वह इस सम्मान से वंचित रह गए जबकि उनकी थ्यूरी पर काम करने वाले 7 वैज्ञानिकों को अब तक नोबेल पुरस्कार मिल चुका है। 1959 में, इन्हें राष्ट्रीय प्रोफैसर के रूप में नियुक्त किया गया, जो किसी विद्वान के लिए देश का सर्वोच्च सम्मान था, जिस पर वह 15 वर्षों तक रहे। बोस ने भारतीय भौतिक समाज, राष्ट्रीय विज्ञान संस्थान, भारतीय विज्ञान कांग्रेस और भारतीय सांख्यिकी संस्थान समेत कई वैज्ञानिक संस्थानों में प्रमुख के रूप में काम किया। उनको वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् का सलाहकार भी बनाया गया था।
सत्येंद्रनाथ बोस का 80 वर्ष की आयु में 4 फरवरी, 1974 को ब्रोन्कियल निमोनिया से कलकत्ता में निधन हो गया। उनको ‘फादर ऑफ गॉड पार्टिकल’ के नाम से भी जाना जाता है।
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