Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Jan, 2024 11:32 AM
सावित्री बाई फुले का जीवन महिलाओं के साहस और मनोबल को समर्पित रहा। तमाम विरोधों और कठिनाइयों के बावजूद संघर्ष में लगे रहने और उनके धैर्य व आत्मविश्वास ने भारतीय समाज में महिला शिक्षा को बढ़ावा देने में
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Savitribai Phule Jayanti 2023: सावित्री बाई फुले का जीवन महिलाओं के साहस और मनोबल को समर्पित रहा। तमाम विरोधों और कठिनाइयों के बावजूद संघर्ष में लगे रहने और उनके धैर्य व आत्मविश्वास ने भारतीय समाज में महिला शिक्षा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह एक प्रखर कवयित्री, एक आदर्श शिक्षिका, एक नि:स्वार्थ सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उन्हें भारत के पहले बालिका विद्यालय में पहली महिला शिक्षिका होने का गौरव प्राप्त है।
उनका जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था। मात्र 9 वर्ष की उम्र में उनका विवाह 13 वर्षीय जोतिबा फुले से हुआ। शादी के समय तक सावित्री बाई फुले ने कोई स्कूली शिक्षा नहीं ली थी और जोतिबा फुले ने तीसरी कक्षा तक पढ़ाई की लेकिन उनके मन में सामाजिक परिवर्तन की तीव्र इच्छा थी इसीलिए उन्होंने इस दिशा में समाज सेवा की पहल के रूप में अपनी पत्नी को शिक्षित करना शुरू किया। सावित्री बाई की भी रुचि शिक्षा में थी। उन्होंने स्कूली शिक्षा प्राप्त की और अध्यापन कार्य में लग गईं। इसके बाद सावित्री तथा जोतिबा ने अपना ध्यान समाज सेवा की ओर केंद्रित किया। 1 जनवरी 1849 को उन्होंने पुणे के बुधवारा पेठ में पहला गल्र्स स्कूल खोला। सावित्री बाई इस विद्यालय की प्रधान अध्यापिका बनीं। पिछड़ी जातियों के बच्चे, विशेषकर लड़कियां बड़ी संख्या में स्कूल में आने लगीं।
इससे प्रोत्साहित होकर जोतिबा दम्पति ने अगले 4 वर्षों में बिना किसी आर्थिक सहायता के विभिन्न स्थानों पर 18 विद्यालय खोले। सावित्री-जोतिबा ने अब अपना ध्यान बाल-विधवा और बाल-हत्या पर केन्द्रित कर दिया। उन्होंने विधवा विवाह की परम्परा शुरू की और 29 जून, 1853 को शिशुहत्या निवारण सदन की स्थापना की। इसमें विधवाएं अपनी बच्चियों को जन्म दे सकती थीं और अगर वे बच्ची को अपने साथ नहीं रख सकती थीं तो उन्हें यहां छोड़ भी सकती थीं।
उनका ध्यान खेतीहर अप्रशिक्षित मजदूरों पर भी गया। 1855 में सावित्री-जोतिबा ने ऐसे मजदूरों के लिए एक रात्रि विद्यालय खोला। वर्ष 1876-77 में पुणे अकाल की चपेट में आ गया। उस समय फुले दम्पत्ति ने 52 अलग-अलग स्थानों पर अनाज भंडार खोले और जरूरतमंद लोगों को भोजन उपलब्ध कराया।
28 नवम्बर, 1890 को महात्मा ज्योतिबा फुले के निधन के बाद उन्होंने सेवा कार्य जारी रखा और 1897 में जब पुणे में प्लेग फैला तो वह अपने बेटे के साथ लोगों की सेवा में जुट गईं। उस समय सावित्रीबाई 66 वर्ष की थी फिर भी वह कड़ी मेहनत करती रहीं और तन-मन से लोगों की सेवा करती रहीं। इस कठिन परीक्षा के समय उन्हें प्लेग भी हो गया और 10 मार्च 1897 को उनकी मृत्यु हो गई।