Edited By ,Updated: 08 Feb, 2017 11:44 AM
यूनानी दार्शनिक अफलातून के पास हर दिन कई विद्वानों का जमावड़ा लगा रहता था। सभी लोग
यूनानी दार्शनिक अफलातून के पास हर दिन कई विद्वानों का जमावड़ा लगा रहता था। सभी लोग उनसे कुछ न कुछ ज्ञान प्राप्त करके ही जाया करते थे लेकिन अफलातून खुद को कभी ज्ञानी नहीं मानते थे क्योंकि उनका मानना था कि इंसान ज्ञानी कैसे हो सकता है जबकि हमेशा वह सीखता ही रहता है। एक दिन उनके एक मित्र ने उनसे कहा, ‘‘आपके पास दुनिया भर के विद्वान ज्ञान लेने आते हैं और वे लोग आपसे बातें करते हुए अपना जीवन धन्य समझते हैं लेकिन आपकी एक बात मुझे आज तक समझ नहीं आई’’।
इस पर अफलातून बोले कि तुम्हें किस बात की शंका है, जाहिर तो करो जो पता चले।
मित्र ने कहा कि आप खुद बड़े विद्वान और ज्ञानी हैं लेकिन फिर भी मैंने देखा है कि आप हर समय दूसरों से शिक्षा लेने को तत्पर रहते हैं, वह भी बड़े उत्साह और उमंग के साथ। इससे बड़ी बात है कि आपको साधारण व्यक्ति से भी सीखने में कोई परेशानी नहीं होती। आप उससे भी सीखने को तत्पर रहते हैं। आपको भला सीखने की जरूरत क्या है, कहीं आप लोगों को खुश करने के लिए तो उनसे सीखने का दिखावा नहीं करते हैं?
अफलातून जोर-जोर से हंसने लगे। मित्र ने पूछा ऐसा क्यों तो अफलातून ने जवाब दिया कि इंसान अपनी पूरी जिंदगी में भी कुछ पूरा नहीं सीख सकता। हमेशा कुछ न कुछ अधूरा ही रहता है और फिर हर इंसान के पास कुछ न कुछ ऐसा जरूर है जो दूसरों के पास नहीं है। इसलिए हर किसी को हर किसी से सीखते रहना चाहिए और फिर हर बात व अनुभव किताबों में तो नहीं मिलते क्योंकि बहुत कुछ ऐसा है जो लिखा नहीं गया है जबकि वास्तविकता में रहकर और लोगों से सीखते रहने की आदत आपको पूरा नहीं पूर्णता के करीब जरूर ले जाती है। यही जिंदगी का सार है।