Edited By Jyoti,Updated: 18 Apr, 2020 08:43 PM
19 अप्रैल यानि वैसाख मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि दिन रविवार को संत सेन महाराज की जयंती का पर्व पड़ रहा है। बता दें प्रत्येक वर्ष ये त्यौहार इस ही तिथि को मनाया जाता है।
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19 अप्रैल यानि वैसाख मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि दिन रविवार को संत सेन महाराज की जयंती का पर्व पड़ रहा है। बता दें प्रत्येक वर्ष ये त्यौहार इस ही तिथि को मनाया जाता है। संत सेन महाराद को मानव जीवन के बीच पवित्रता और सात्विकता का संदेश देने वाले कुल गुरु की उपाधि दी गई है। बता दें भक्तमाल के प्रसिद्ध टीकाकार प्रियदास के अनुसार सैन महाराज का जन्म विक्रम संवत 1557 में वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को बांधवगढ़ में एक नाई परिवार में हुआ था। बचपन में इनका नाम नंदा था, जिन्हें आगे चलकर सैन महाराज के नाम से प्रसिद्ध प्राप्त हुई। कहा जाता है सैन महाराज ने गृहस्थ जीवन के साथ-साथ भक्ति के मार्ग पर चलकर समाज के सामने एक नया उदाहरण प्रस्तुत कर दिखाया था।
इन्होंने पूरे समाज को संदेश दिया था कि मनुष्य संसार के सारे कामों को करते हुए भी प्रभु की सेवा कर उनकी कृपा का पात्र बन सकता है। अब इस से ये तो पता चलता ही है इनके द्वारा दिए गए विचार प्रेरक स्तोत्र होंगे। तो चलिए इनकी जंयती के शुभ अवसर पर जानते है इनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें-
पौराणिक कथाओं के अनुसार मध्यकाल के संतों में सेन महाराज का नाम अग्रणी हैं, इन्होंने अपने समस्त जीवन में केवल पवित्रता और सात्विकता पर अधिक ज़ोर दिया। मानव जीव को सत्य, अहिंसा और प्रेम का संदेश दिया।
इनका कहना था कि प्रत्येक मनुष्य में ईश्वर का वास है। कहा जाता है संत महाराज सभी मनुष्यों में ईश्वर के दर्शन करते थे। न केवल उस समय में बल्कि आज भी लोग इनके उपदेशों से अधिक प्रभावित होते हैं। यही कारण है कि न केवल प्राचीन समय में बल्कि आज भी लोग इनकी तरफ़ खींचे चले आते थे।
कथाओं के अनुसार अपनी वृद्धावस्था में सेन महाराज काशी चले गए, यहां आकर भी इन्होंने बहुत उपदेश दिया। ऐसा कहा जाता है कि काशी नगरी में सेन महाराज जिस स्थान पर निवास करते थे, वर्तमान समय में उस स्थान को सेनपुरा के नाम से जाना जाता है।