Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Feb, 2025 08:51 AM
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Shabari Jayanti 2025: शबरी जयंती एक प्रतीक है उस स्त्री का जिसने भक्ति और श्रद्धा के प्रतीक के रूप में अपनी जीवन यात्रा तय की। शबरी जैसी भक्त आम जनमानस को सिखाती हैं कि भक्ति की कोई सीमा नहीं होती और किसी भी स्थिति में भगवान के प्रति विश्वास और...
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Shabari Jayanti 2025: शबरी जयंती एक प्रतीक है उस स्त्री का जिसने भक्ति और श्रद्धा के प्रतीक के रूप में अपनी जीवन यात्रा तय की। शबरी जैसी भक्त आम जनमानस को सिखाती हैं कि भक्ति की कोई सीमा नहीं होती और किसी भी स्थिति में भगवान के प्रति विश्वास और प्यार में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। देवी शबरी की जयंती मनाकर उनके जीवन से कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएं ग्रहण कर सकते हैं।
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Who was Shabri शबरी कौन थी ?
शबरी एक आदिवासी महिला थीं, जो रामायण के अनुसार अपने जीवन में भगवान राम की अत्यधिक भक्त थीं। शबरी का एक बहुत प्रसिद्ध प्रसंग है, जब वे भगवान राम को जूठे बेर खाने के लिए देती हैं। जब भगवान राम उनके घर पहुंचे, तो शबरी ने अपनी सभी बेरों को छांटकर और चखा कर भगवान राम के लिए तैयार किया, यह जानकर कि वे पवित्र हैं। शबरी की निष्ठा और भक्ति ने भगवान राम का दिल छुआ और उन्होंने उनके झूठे बेर बहुत प्रेम से खाए।
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शबरी का जीवन हमें यह सिखाता है कि किसी के धार्मिक या जातीय वर्ग का कोई महत्व नहीं होता। भक्ति और श्रद्धा का कोई भी रूप स्वीकार्य होता है और शबरी ने यह साबित किया कि भगवान के प्रति सच्ची श्रद्धा और भक्ति हर किसी में हो सकती है, चाहे वे किसी भी जाति या वर्ग से हों।
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Why is Shabri Jayanti celebrated शबरी जयंती क्यों मनाई जाती है ?
शबरी जयंती विशेष रूप से शबरी की श्रद्धा और भक्ति के प्रति सम्मान के रूप में मनाई जाती है। यह दिन शबरी के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण मूल्यों को याद करने का अवसर है जैसे:
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सच्ची भक्ति और समर्पण: शबरी ने भगवान राम के प्रति अपनी भक्ति में कोई भी संकोच नहीं किया। चाहे वे आदिवासी थीं या उनकी स्थिति साधारण थी, उनकी भक्ति सबसे ऊपर थी।
समाज में समानता का संदेश: शबरी ने दिखाया कि भक्ति किसी भी जाति या वर्ग से परे होती है। कोई भी व्यक्ति यदि सच्चे दिल से भक्ति करता है, तो भगवान उसे स्वीकार करते हैं।
धार्मिक आस्था और सादगी: शबरी की जीवनशैली और उनकी भक्ति यह दिखाती है कि भगवान तक पहुंचने के लिए कोई विशेष भव्यता या कृत्य की आवश्यकता नहीं होती बल्कि एक सरल और सच्चे मन से पूजा ही सर्वोत्तम है।
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