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धन्य है केश के बदले खोपड़ी उतरवाने वाले भाई तारू सिंह जी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 Feb, 2022 10:50 AM

shaheed bhai taru singh

इसमें कोई अतिकथनी नहीं कि सिख इतिहास शहीदों का इतिहास है। सिख शहादत के संकल्प का पहला पक्ष गुरु शहीदों का है और दूसरा पक्ष सिख शहीदों का। सिख शहीद परम्परा का आरंभ श्री

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Sikh Martyr Bhai Taru Singh: इसमें कोई अतिकथनी नहीं कि सिख इतिहास शहीदों का इतिहास है। सिख शहादत के संकल्प का पहला पक्ष गुरु शहीदों का है और दूसरा पक्ष सिख शहीदों का। सिख शहीद परम्परा का आरंभ श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के साथ शहीद हुए तीन सिखों-भाई मतीदास जी, भाई सतीदास जी और भाई दियाला जी की शहादत से होता है। इस परम्परा को चार साहिबजादों ने और गहरा रंग दिया। इसी शृंखला में 18वीं सदी के इतिहास के शहीदों में से महान सिख शहीद भाई तारू सिंह जी ने भी योगदान डाला।

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ये जिला श्री अमृतसर के गांव पूहला के निवासी थे। खेतों में हल चलाकर, मेहनत कर अन्न पैदा करना इनके जीवन-निर्वाह का साधन था। ये पंथ के सच्चे सेवक और पंथ के हितचिंतक थे। क्षेत्र के हिंदू-मुसलमान भी इनके उच्च एवं शुद्ध चरित्र का सम्मान करते थे।
वह जकरिया खान के अत्याचारों की चरम सीमा का दौर था। जंगलों में बसते सिखों को पकड़ कर खत्म करना उसके लिए मुश्किल हो गया। वह अपनी असफलता छिपाने के लिए निर्दोष सिखों पर अत्याचार करने लगा।

भाई तारू सिंह जी का स्वभाव बांटकर खाने और जरूरतमंदों की सहायता करने वाला था। सिखी आचरण के अनुसार अतिथियों को भोजन-पानी देना यह अपना धर्म समझते थे। बेघर हुए सिखों को जंगलों में लंगर पहुंचाने में इनके माता जी एवं बहन जी भी इनकी मदद किया करते थे। यह वह समय था जब मुगल सरकार की गलत नीतियों का विरोध कर रहे सिखों की मदद करना अपनी जान जोखिम में डालने के समान था।  

भाई तारू सिंह जी अपनी जान हथेली पर रखकर बेघर हुए सिंहों को गुप्त मार्ग द्वारा अन्न-पानी पहुंचाने की सेवा करते रहे। इसी क्षेत्र में इनके एक विरोधी ने भाई तारू सिंह जी के विरुद्ध जकरिया खान के कान भरने शुरू कर दिए कि भाई तारू सिंह जी सिंहों को पनाह और भोजन देते हैं। बिना किसी पड़ताल के भाई तारू सिंह जी को गिरफ्तार करने के हुक्म जारी हो गए।

भाई तारू सिंह जी को छुड़वाने के लिए यत्न किए गए लेकिन भाई तारू सिंह जी ने कहा, चिंता मत करो क्योंकि इनका अटल विश्वास था कि कुर्बानी देकर ही शाही तख्त को हिलाया जा सकता है।

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भाई तारू सिंह जी को केश कटवा कर इस्लाम कबूल करने के लिए कहा गया तो इन्होंने उत्तर में कहा, ‘‘मैं सीस कटवा सकता हूं, मगर परमात्मा की दी प्यारी व पवित्र दात ‘केश’ नहीं कटवा सकता। इन्हें दुनिया भर की खुशियां देने का वायदा किया गया, मगर ये किसी भी कीमत पर अपने केशों को शरीर से अलग करने के लिए नहीं माने।

शाही फरमान पाकर जल्लाद खुरपी द्वारा भाई तारू सिंह जी की खोपड़ी उतार रहा था और भाई जी जपुजी साहिब का पाठ कर रहे थे। सारा शरीर लहू-लुहान हो गया मगर आपके मुंह से उफ तक न निकली।

खोपड़ी उतारने के बाद भाई जी को खाई में फैंक दिया गया। भाई जी इस हालत में भी बाणी पढ़ते रहे। इतिहासकार लिखते हैं कि जिस दिन भाई जी की खोपड़ी उतारी गई उसी दिन जकरिया खान की हालत बहुत खराब हो गई और वह तड़पने लगा। भाई सुबेग सिंह की मदद से जकरिया खान क्षमा मांगने के लिए भाई तारू सिंह जी के पास पहुंचा। भाई तारू सिंह जी ने कहा कि यह सब परमात्मा की लीला है।

जकरिया खान की मृत्यु के बाद भाई जी बिना खोपड़ी की हालत में भी 22 दिनों तक वाहेगुरु का नाम सिमरन करते रहे और तत्पश्चात शहादत प्राप्त कर गए। भाई तारू सिंह जी की शहीदी ने सिखी सिदक का संबंध केशों से और भी पक्की तरह से जोड़ दिया। केश हमारे धैर्य, हिम्मत, शानो-शौकत का चिन्ह बन गए।

खुरपी से खोपड़ी उतरवाने वाले सिख भाई तारू सिंह जी की यह धन्य कमाई सदा के लिए अमर हो गई। इनकी महान कुर्बानी को सिख पंथ की रोजाना की अरदास द्वारा नमस्कार एवं सम्मान प्रदान किया जाता है।

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