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Shaheed Mahavir Singh Martyrdom Day: शहीद महावीर सिंह को कालापानी की सजा भी डरा न सकी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 May, 2024 01:16 PM

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महावीर सिंह का जन्म 16 सितम्बर, 1904 को उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले (तत्कालीन एटा जिले की तहसील) के शाहपुर टाहला नामक गांव में पिता देवी सिंह के घर हुआ था। वह बाल्यकाल से ही क्रांतिकारी विचारों के थे।

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Shaheed Mahavir Singh Martyrdom Day 2024: महावीर सिंह का जन्म 16 सितम्बर, 1904 को उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले (तत्कालीन एटा जिले की तहसील) के शाहपुर टाहला नामक गांव में पिता देवी सिंह के घर हुआ था। वह बाल्यकाल से ही क्रांतिकारी विचारों के थे।

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Slogan of Gandhiji ki Jai raised in full gathering भरी सभा में लगाया गांधी जी की जय का नारा
1922 में एक दिन सरकारी अधिकारियों ने अंग्रेजभक्ति प्रदर्शित करने के उद्देश्य से कासगंज में अमन सभा का आयोजन किया जिसमें जिलाधीश, पुलिस कप्तान, स्कूलों के इंस्पैक्टर, आस-पड़ोस के अमीर-उमरा आदि जमा हुए, छोटे-छोटे बच्चों को भी जबरदस्ती ले जाकर सभा में बिठाया गया जिनमें एक महावीर भी थे। लोग बारी-बारी उठकर अंग्रेजी हुकूमत की तारीफ में भाषण दे ही रहे थे कि तभी किसी ने जोर से नारा लगाया- महात्मा गांधी की जय। बाकी लड़कों ने भी ऊंचे कंठ से इसका समर्थन किया और पूरा वातावरण इस नारे से गूंज उठा। देखते-देखते सभा गांधी की जय-जयकार के नारों से गूंज उठी। इससे सभी अधिकारी तिलमिला उठे। महावीर को विद्रोही बालकों का नेता घोषित कर सजा दी गई पर इससे उनके मन में धधकी आजादी की ज्वाला और तेज होने लगी।

Contact with Chandrashekhar Azad and Bhagat Singh चन्द्रशेखर आजाद तथा भगत सिंह से संपर्क
उच्च शिक्षा के लिए महावीर सिंह ने 1925 में डी.ए.वी. कालेज कानपुर में प्रवेश लिया। तभी चन्द्रशेखर आजाद के संपर्क से हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोशिएसन के सक्रिय सदस्य बन गए। यहीं पर वह भगत सिंह के प्रिय साथी बन गए। 1929 में दिल्ली की असैम्बली में बम फैंका गया और अंग्रेज अफसर सांडर्स की हत्या की गई।

इन मामलों में भगत सिंह, राजगुरु सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त सहित उन्हें गिरफ्तार किया गया। मुकद्दमे की सुनवाई लाहौर में हुई और महावीर सिंह को आजीवन कारावास का दंड सुनाया गया। कुछ समय लाहौर, फिर मैसूर और मद्रास जेल में रखने के बाद जनवरी 1933 में महावीर सिंह को ‘सजा-ए-कालापानी’ के तहत अंडमान की सैल्यूलर जेल भेज दिया गया जो घोर यातनाओं की प्रतीक थी। 12 मई, 1933 को मोहित मोइत्रा तथा मोहन किशोर नामदास के नेतृत्व में कैदियों के साथ गलत व्यवहार के विरोध में कई कैदी अनशन पर बैठ गए।

अनशन के छठे दिन से जेल अधिकारियों ने कैदियों को जबरदस्ती खाना खिलाना शुरू कर दिया। आधे घंटे की मशक्कत के बाद 10-12 लोग मिलकर महावीर सिंह को जमीन पर गिराने में सफल रहे, जिसके बाद डॉक्टर ने एक घुटना उनकी छाती पर रखा और नाक के अंदर ट्यूब डाल दी।

उन्होंने यह भी नहीं देखा कि ट्यूब पेट की बजाय महावीर सिंह के फेफड़ों में चली गई है। एक लीटर दूध उनके फेफड़ों में चला गया जिसके कारण 17 मई, 1933 को भारत के सपूत महावीर सिंह महान उद्देश्य के लिए शहीद हो गए। क्रूर अंग्रेजों ने उनका शव पत्थरों से बांधकर समुद्र में प्रवाहित कर दिया। भूख हड़ताल के दौरान मोहित मोइत्रा और मोहन किशोर नामदास की भी मौत हो गई।

बलिदानी महावीर सिंह की शहादत की स्मृति में उनके गांव शाहपुर टहला और सैल्यूलर जेल में भी उनकी प्रतिमा स्थापित है।  

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