Edited By Prachi Sharma,Updated: 17 Dec, 2023 08:39 AM
स्वतंत्रता संग्राम के नायकों के नामों की शृंखला में युवा क्रांतिकारी राम प्रसाद ‘बिस्मिल’, रोशन सिंह, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी और अशफाक उल्ला
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स्वतंत्रता संग्राम के नायकों के नामों की शृंखला में युवा क्रांतिकारी राम प्रसाद ‘बिस्मिल’, रोशन सिंह, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी और अशफाक उल्ला खां कुछ ऐसे नाम हैं, जिनके स्मरण मात्र से शरीर की रगों में खून उबलने और बाजू फड़कने लगती हैं। देश के युवाओं को देशप्रेम की प्रेरणा देने वाले इन चारों क्रांतिकारियों ने देश को स्वतंत्रत करवाने के लिए 17 व 19 दिसम्बर, 1927 को फांसी का फंदा चूम कर हंसते-हंसते अपने प्राण उत्सर्ग कर दिए थे।
Ram Prasad Bismil राम प्रसाद ‘बिस्मिल’
इनका जन्म 11 जून, 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में बेहद साधारण कृषक परिवार में ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (निर्जला एकादशी) को हुआ। इनके पिता का नाम मुरलीधर और मां का नाम मूलमती था। साधारण कृषक परिवार में जन्म लेकर अपनी मेधा, प्रतिभा, देशभक्ति और बलिदान से वे असंख्य व्यक्तियों के श्रद्धा पात्र हो गए। मैनपुरी षड्यंत्र केस के प्रसिद्ध क्रांतिकारी गेंदालाल दीक्षित से ‘बिस्मिल’ काफी प्रभावित हुए। दोनों ने मैनपुरी, इटावा, आगरा व शाहजहांपुर आदि जिलों में गुपचुप अभियान चलाया और युवकों को देश की आन पर मर मिटने के लिए संगठित किया।
Roshan Singh रोशन सिंह
इनका जन्म उत्तर प्रदेश के जनपद शाहजहांपुर में स्थित गांव नबादा में 22 जनवरी, 1892 को आर्य समाजी परिवार में हुआ था। इनकी माता का नाम कौशल्या देवी और पिता का ठाकुर जंगी सिंह था। देशभक्ति की भावना इनमें बचपन से ही कूट-कूट कर भरी हुई थी। 31 वर्ष की आयु में बहादुर रोशन ने बरेली जिले में एक अंग्रेज पुलिस कर्मी की बंदूक छीनकर वहां मौजूद पुलिस वालों पर ही गोलियां झोंक दी थीं। 1924 में वह उसी रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए जिसके कर्णधार युवा क्रांतिकारी राम प्रसाद ‘बिस्मिल’, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी थे।
Rajendranath Lahiri राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी
वह हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के प्रमुख सदस्य थे जिसका ध्येय भारत को ब्रिटिश दासता से मुक्त करना था। पबना जिले (अब बंगलादेश में) के मोहनपुर गांव में 29 जून, 1901 को क्षितीश मोहन लाहिड़ी के घर माता बसन्त कुमारी की कोख से राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का जन्म हुआ। बड़े होने पर वह क्रांतिकारी शचींद्रनाथ सान्याल के सम्पर्क में आ गए और हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए।
Ashfaqulla Khan अशफाक उल्ला खां
इनका जन्म उतर प्रदेश के शाहजहांपुर में एक मुस्लिम पठान परिवार में शफकिुल्लाह खान और मजरुनिस्सा के घर 22 अक्तूबर, 1900 को हुआ। वह ‘बिस्मिल’ से बहुत प्रेरित थे और उनकी पार्टी मातृवेदी के एक्टिव मैम्बर बन गए। यहीं से उनकी जिन्दगी का नया अध्याय शुरू हुआ।
Kakori incident plan काकोरी कांड की योजना
अपने आंदोलन को आगे बढ़ाने, हथियार खरीदने और आवश्यक गोला-बारूद इक्कठा करने के लिए, हिन्दुस्तान सोशिलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सभी क्रांतिकारियों ने शाहजहांपुर में 8 अगस्त, 1925 को एक बैठक की। एक लम्बी विवेचना के पश्चात रेलगाड़ी में जा रहे सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनी।
9 अगस्त, 1925 को खान सहित उनके क्रांतिकारी साथियों राम प्रसाद ‘बिस्मिल’, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, शचीन्द्रनाथ बख्शी, चन्द्रशेखर आजाद, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुरारी शर्मा, मुकुन्दी लाल और मन्मथनाथ गुप्त ने मिलकर लखनऊ के निकट काकोरी में रेलगाड़ी में जा रहा सरकारी खजाना लूट लिया। इसी घटना को ‘काकोरी कांड’ कहा जाता है।
26 सितम्बर, 1925 को ठाकुर रोशन सिंह को ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। 26 अक्तूबर, 1925 की रात जब पूरे देश में एक साथ गिरफ्तारियां हुईं तो ‘बिस्मिल’ को भी पुलिस ने पकड़ लिया और सहपाठी दोस्त द्वारा धोखा देकर ठिकाना पुलिस को बताने के कारण 7 दिसम्बर, 1926 की सुबह पुलिस ने अशफाक उल्ला खां को भी गिरफ्तार कर लिया।
काकोरी रेल लूट में केवल 4,601 की राशि लूटी गई थी लेकिन इसकी जांच-पड़ताल पर ब्रिटिश सरकार ने उस समय लगभग 10 लाख रुपए खर्च कर दिए। ब्रिटिश राज ने दल के सभी प्रमुख क्रान्तिकारियों पर ‘काकोरी कांड’ के नाम से मुकद्दमा दायर करते हुए सभी के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छोड़ने तथा खजाना लूटने का न केवल आरोप लगाया बल्कि झूठी गवाहियां व मनगढ़ंत प्रमाण पेश कर उसे सही साबित कर दिखाया।
अंग्रेजों ने राम प्रसाद ‘बिस्मिल’, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी और अशफाक उल्ला खां को 19 दिसम्बर, 1927 को एक साथ फांसी देने का हुक्म सुना दिया लेकिन चारों कहीं फांसी वाले दिन जेल से गायब न हो जाएं, इस डर से क्रूर ब्रिटिश हुकूमत ने गोंडा जेल में बंद राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को तय तारीख से 2 दिन पहले 17 दिसम्बर, 1927 को ही फैजाबाद जिला कारागार में फांसी के फंदे पर लटका कर हमेशा-हमेशा के लिए अमर कर दिया, जबकि 19 दिसम्बर को राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ को गोरखपुर, रोशन सिंह को इलाहाबाद और अशफाक उल्ला खां को गोंडा जेल में फांसी के फंदे से लटका कर शहीद कर दिया गया।