Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 Jan, 2024 11:14 AM
राजस्थान की राजधानी जयपुर यानी गुलाबी नगरी से लगभग 100 किलोमीटर दूर साम्भर कस्बे में स्थित मां शाकम्भरी मंदिर करीब अढ़ाई हजार वर्ष प्राचीन है। वैसे तो शाकम्भरी माता चौहान वंश की कुलदेवी हैं, लेकिन
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Shakambhari Jayanti 2024: राजस्थान की राजधानी जयपुर यानी गुलाबी नगरी से लगभग 100 किलोमीटर दूर साम्भर कस्बे में स्थित मां शाकम्भरी मंदिर करीब अढ़ाई हजार वर्ष प्राचीन है। वैसे तो शाकम्भरी माता चौहान वंश की कुलदेवी हैं, लेकिन माता को अन्य कई धर्मों व समाज के लोग भी पूजते हैं। शाकम्भरी को मां दुर्गा का अवतार माना जाता है।
शाकम्भरी मां के देशभर में 3 शक्तिपीठ हैं और माना जाता है कि इनमें से सबसे प्राचीन शक्तिपीठ यही है। दोनों ही नवरात्रों में माता के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैं। मां शाकम्भरी का वर्णन महाभारत और शिव महापुराण में भी मिलता है।
मां शाकम्भरी की पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार एक समय जब पृथ्वी पर दुर्गम नामक दैत्य ने आतंक मचाया हुआ था, तब पृथ्वी पर लगातार सौ वर्ष तक बारिश नहीं हुई। तब अन्न-जल के अभाव में समस्त प्रजा, अन्य जीव मरने लगे। उस समय समस्त मुनियों ने मिलकर देवी भगवती की उपासना की, जिससे दुर्गाजी ने एक नए रूप में अवतार लिया और उनकी कृपा से वर्षा हुई। इस अवतार में महामाया ने जलवृष्टि से पृथ्वी को हरी शाक-सब्जी और फलों से परिपूर्ण कर दिया, जिससे पृथ्वी के समस्त जीवों को जीवनदान प्राप्त हुआ। कहते हैं शाक पर आधारित तपस्या के कारण शाकम्भरी नाम पड़ा। इस तपस्या के बाद यह स्थान हरा-भरा हो गया।
दंतकथाओं और स्थानीय लोगों के अनुसार मां शाकम्भरी के तप से यहां अपार धन-सम्पदा उत्पन्न हुई। समृद्धि के साथ ही यहां इस प्राकृतिक सम्पदा को लेकर झगड़े शुरू हो गए। जब समस्या ने विकट रूप ले लिया तो मां ने यहां बहुमूल्य सम्पदा और बेशकीमती खजाने को नमक में बदल दिया। इस तरह से साम्भर झील की उत्पत्ति हुई। वर्तमान में करीब 90 वर्गमील में यहां नमक की झील है।