Edited By Niyati Bhandari,Updated: 12 Jan, 2025 02:00 PM
Shakumbhari devi story: शाकंभरी पूर्णिमा के दिन मां शाकंभरी का प्राकट्य हुआ था। धर्म ग्रंथों के अनुसार पौष मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से ‘शाकंभरी नवरात्र’ का पर्व प्रारंभ होता है,
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Shakumbhari devi story: शाकंभरी पूर्णिमा के दिन मां शाकंभरी का प्राकट्य हुआ था। धर्म ग्रंथों के अनुसार पौष मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से ‘शाकंभरी नवरात्र’ का पर्व प्रारंभ होता है, जो पौष मास की पूर्णिमा तक मनाया जाता है। पूर्णिमा तिथि पर माता शाकंभरी की जयंती मनाई जाती है। गत दिनों सम्पन्न इस पर्व के दौरान तंत्र-मंत्र के साधकों ने अपनी सिद्धि के लिए वनस्पति देवी मां शाकंभरी की आराधना की।
धर्म ग्रंथों के अनुसार देवी शाकंभरी आदिशक्ति दुर्गा के अवतारों में से एक हैं। दुर्गा के सभी अवतारों में से रक्तदंतिका, भीमा, भ्रामरी, शाकंभरी प्रसिद्ध हैं। दुर्गा सप्तशती के मूर्ति रहस्य में देवी शाकंभरी के स्वरूप का वर्णन इस प्रकार है-
मंत्रनीलवर्णानीलोत्पलविलोचना।मुष्टिंशिलीमुखापूर्णकमलंकमलालया।।
अर्थात- देवी शाकंभरी का वर्ण नीला है, नील कमल के सदृश ही इनके नेत्र हैं। ये पद्मासना हैं अर्थात कमल पुष्प पर ही विराजती हैं। इनकी एक मुट्ठी में कमल का फूल रहता है और दूसरी मुट्ठी बाणों से भरी रहती है।
Shakambhari Katha: पौराणिक कथा के अनुसार एक समय में भूलोक पर दुर्गम नामक दैत्य के प्रकोप से लगातार सौ वर्ष तक वर्षा न होने के कारण अन्न-जल के अभाव में समस्त प्रजा त्राहिमाम करने लगी। ‘दुर्गम’ दैत्य ने देवताओं से चारों वेद चुरा लिए थे। देवी शाकंभरी ने दुर्गम दैत्य का वध कर देवताओं को पुन: वेद लौटाए थे। देवी शाकंभरी के सौ नेत्र हैं इसलिए इन्हें ‘शताक्षी’ कहकर भी संबोधित किया जाता है। देवी शाकंभरी ने जब अपने सौ नेत्रों से देवताओं की ओर देखा तो धरती हरी-भरी हो गई। नदियों में जल धारा बह चली। वृक्ष फलों और औषधियों से परिपूर्ण हो गए। देवताओं का कष्ट दूर हुआ। देवी ने शरीर से उत्पन्न शाक से धरती का पालन किया। इसी कारण शाकंभरी नाम से प्रसिद्ध हुईं। महाभारत में देवी शाकंभरी के नाम का उल्लेख इस श्लोक के रूप में किया गया है।
श्लोकदिव्यं वर्षहस्त्रं हि शाकेन किल सुब्रता, आहारं सकृत्वती मासि मासि नराधिप,ऋषयोऽभ्यागता स्तत्र देव्या भक्तया तपोधना:,आतिथ्यं च कृतं तेषां शाकेन किल भारत तत:शाकंभरीत्येवनाम तस्या: प्रतिष्ठम्।
धार्मिक मान्यता के अनुसार शाकंभरी पूर्णिमा के दिन गरीबों और जरूरतमंदों में अन्न, शाक यानि कच्ची सब्जियां, फल व जल का दान करना चाहिए। ऐसा करने वाले व्यक्ति पर देवी प्रसन्न होती हैं और उन्हें पुण्य प्राप्त होता है।