Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Oct, 2024 02:37 PM
आश्विन माह में आने वाली शरद पूर्णिमा तिथि हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध त्योहार है। शारदीय नवरात्रि पर्व के बाद की पूर्णिमा को ही शरद पूर्णिमा कहा जाता है। जो
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Sharad Purnima: आश्विन माह में आने वाली शरद पूर्णिमा तिथि हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध त्योहार है। शारदीय नवरात्रि पर्व के बाद की पूर्णिमा को ही शरद पूर्णिमा कहा जाता है। जो इस बार 16 अक्टूबर 2024 बुधवार को है। दूध की खीर के सेवन के लिए मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा हल्के नीले रंग का दिखाई देता है। कहते हैं कि इस दिन रात में खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखने से चन्द्रमा द्वारा प्राप्त सभी ग्रहों की औषधीय गुणों से युक्त ऊर्जा इस खीर में परिवर्तित हो जाती है। इस खीर का सुबह सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होता है। वर्षा ऋतु के बाद जब शरद ऋतु आती है तो आसमान में बादल व धूल के न होने से कड़क धूप पड़ती है। जिससे शरीर में पित्त कुपित होता है। इस समय गड्ढों आदि में जमा पानी के कारण बहुत बड़ी मात्रा में मच्छर पैदा होते हैं, इससे मलेरिया होने का खतरा सबसे अधिक होता है।
शरद ऋतु में ही पितृ पक्ष (श्राद्ध) आता है। पितरों का मुख्य भोजन है खीर। इस दौरान 5-7 बार खीर खाना हो जाता है। इसके बाद शरद पूर्णिमा को रात भर चांदनी के नीचे चांदी के पात्र में रखी खीर सुबह खाई जाती है। यह खीर हमारे शरीर में पित्त का प्रकोप कम करती है। आज के दिन चन्द्रमा विशेष रूप से बलशाली होता है, जिसके कारण उसकी किरणों से प्राप्त खीर विशेष गुणों से युक्त होती हैं। शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाकर अस्थमा रोगियों को खिलाने की प्रथा से तो सब परिचित हैं। यहां हम बात कर रहे हैं, खीर में हमारी प्राचीन परंपरा में वैज्ञानिकता का दर्शन होता है, अज्ञानता का नहीं। पर यह बात हमें बाद में समझ में आती है। श्राद्ध से लेकर शरद पूर्णिमा तक जो खीर हम खाते हैं, वह हमें कई तरह के फायदे पहुंचाती है।
एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक एसिड और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है। अब हमारी परंपराओं का चमत्कार देखिए। वास्तव में खीर खाने से पित्त का शमन होता है।
शरद पूर्णिमा की रात में बनाई जाने वाली खीर के लिए चांदी का पात्र न हो तो चांदी की चम्मच खीर में डाल दें लेकिन बर्तन मिट्टी, कांसा या पीतल का हो। (क्योंकि एल्यूमिनियम, प्लास्टिक, चीनी मिट्टी के बर्तनों से बचें ) इस ऋतु में बनाई जाने वाली खीर में केसर और मेवों का प्रयोग कम करें। यह गर्म प्रवृत्ति के होने से पित्त बढ़ा सकते हैं। हो सके तो इलायची, चिरौंजी /चिरौंजी व जायफल अवश्य डालें।
इस रात को हजार काम छोड़कर 15 मिनट चन्द्रमा को एकटक निहारें, एक-आधा मिनट आंखें पटपटाएं। कम-से-कम 15 मिनट चन्द्रमा की किरणों का फायदा लेना, ज्यादा करो तो हरकत नहीं। इससे 40 प्रकार की पित्त संबंधी बीमारियों में लाभ होगा, शांति होगी। फिर छत पर या मैदान में विद्युत का कुचालक आसन बिछाकर लेटे-लेटे भी चंद्रमा को देख सकते हैं। जिनको नेत्र ज्योति बढ़ानी हो वे शरद पूनम की रात को सुई में धागा पिरोने की कोशिश करें। इस रात्रि में ध्यान-भजन, सत्संग-कीर्तन, चन्द्र दर्शन आदि शारीरिक व मानसिक आरोग्यता के लिए अत्यन्त लाभदायक हैं। शरद पूर्णिमा की शीतल रात्रि में (9 से 6 बजे के बीच) छत पर चन्द्रमा की किरणों में महीन कपड़े से ढककर रखी हुई दूध-पोहे अथवा देसी गाय के दूध-चावल की खीर अवश्य खानी चाहिए।
लंकापति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और अश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।
Sanjay Dara Singh
AstroGem Scientists
LLB., Graduate Gemologist GIA (Gemological Institute of America), Astrology, Numerology and Vastu (SSM)