भारतवासियों को जल्दी ही पी.ओ.के. में स्थित 'शारदापीठ' के दर्शन होंगे !

Edited By Lata,Updated: 13 Jan, 2020 10:10 AM

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हमारे कार्यालय में शारदापीठ कश्मीर के शंकराचार्य स्वामी अमृतनंद देव तीर्थ  पधारे। उन्होंने इस विषय में निम्न

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हमारे कार्यालय में शारदापीठ कश्मीर के शंकराचार्य स्वामी अमृतनंद देव तीर्थ  पधारे। उन्होंने इस विषय में निम्न जानकारी दी। 1947 में जब भारत आजाद हुआ था तब जम्मू-कश्मीर का कुल क्षेत्रफल था 2,22,236 वर्ग किलोमीटर जिसमें से चीन और पाकिस्तान ने मिलकर लगभग आधे जम्मू-कश्मीर पर कब्जा किया हुआ है और भारत वर्ष के पास केवल 1,02,387 वर्ग किलोमीटर कश्मीर भूमि शेष है। जम्मू-कश्मीर के जो भाग आज हमारे पास नहीं हैं उनमें से गिलगित, बाल्टिस्तान, बजारत, चिल्लास, हाजीपीर आदि हिस्से पर पाकिस्तान का सीधा शासन है और मुजफ्फराबाद, मीरपुर, कोटली और छंब आदि इलाके हालांकि स्वायत्त शासन में हैं परंतु ये इलाके भी पाक के नियंत्रण में हैं।
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पाक नियंत्रण वाले कश्मीर (पी.ओ.के.) के मुजफ्फराबाद जिले की सीमा के किनारे से पवित्र ''कृष्ण-गंगा नदी बहती है। कृष्ण-गंगा नदी वही है जिसमें समुद्र मंथन के पश्चात् शेष बचे अमृत को असुरों से छिपाकर रखा गया था और उसी के बाद ब्रह्मा जी ने उसके किनारे मां शारदा का मंदिर बनाकर उन्हें वहां स्थापित किया था। जिस दिन से मां शारदा वहां विराजमान हुईं उस दिन से ही सारा कश्मीर 'नमस्ते शारदादेवी कश्मीरपुरवासिनी/त्वामहंप्रार्थये नित्यम विदादानम च देहि में कहते हुए उनकी आराधना करता रहा है और उन कश्मीरियों पर मां शारदा की ऐसी कृपा हुई कि आष्टांग योग और आष्टांग हृदय लिखने वाले वाग्भट वहीं जन्मे,नीलमत पुराण वहीं रची गई, चरक संहिता, शिव-पुराण, कल्हण की राजतरंगिणी, सारंगदेव की संगीत रत्नकार सबके सब अद्वितीय ग्रन्थ वहीं रचे गए, उस कश्मीर में जो रामकथा लिखी गई उसमें मक्केश्वर महादेव का वर्णन सर्वप्रथम स्पष्ट रूप से आया। शैव दार्शनिकों की लंबी परम्परा कश्मीर से ही शुरू हुई। 
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मां शारदा के उस पवित्र पीठ में न जाने कितने सहस्त्र वर्षों से हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन एक विशाल मेला लगता था। शारदा तीर्थ श्रीनगर से लगभग सवा सौ किलोमीटर की दूरी पर बसा है और वहां के लोग तो पैदल मां के दर्शन करने जाया करते थे। हिन्दू धर्म का मंडन करने निकले शंकराचार्य जब शारदापीठ पहुंचे थे तो वहां उन्हें मां ने दर्शन दिया था और हिन्दू जाति को बचाने का आशीर्वाद भी। 
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भारत के कई हिस्सों में जब यज्ञोपवीत संस्कार होता है तो बटुक को कहा जाता है कि तू शारदा पीठ जाकर ज्ञानार्जन कर और सांकेतिक रूप से वह बटुक शारदापीठ की दिशा में 7 कदम आगे बढ़ता है और फिर कुछ समय पश्चात इस आशय से 7 कदम पीछे आता है कि अब उसकी शिक्षा पूर्ण हो गई है और वह विद्वान बनकर वहां से लौट कर आ रहा है। आज दुर्भाग्य से हमारी 'मां शारदा हमारे पास नहीं है और हम उनके पास जाएं ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है तो शायद अब यज्ञोपवीत की यह रस्म सांकेतिक ही रह जाएगी सदा के लिए। संतों, भक्तों  कश्मीरी पंडितों की भारत सरकार से मांग है कि हमको शारदापीठ की मुक्ति चाहिए, हमको शारदा पीठ तक जाना है, हमें दुनिया को बताना है कि ''केवल शारदा संस्कृति ही कश्मीरियतहै। जब तक यह नहीं होता कम से कम तब तक करतारपुर साहिब कॉरिडोर की तर्ज पर ''शारदादेवी कॉरिडोर अविलम्ब आरंभ हो इसकी मांग की जा रही है।
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