Edited By Jyoti,Updated: 13 Mar, 2021 06:26 PM
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‘संग्रह-बुद्धि’ भोग पदार्थों की जितनी बढ़ेगी दुख उतना ही बढ़ेगा। ज्यादा खाने-पीने वाले को यह योग कठिन है। जो नम्र है उसे थोड़े ही दिनों में यह योग प्राप्त हो सकता है।
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‘संग्रह-बुद्धि’ भोग पदार्थों की जितनी बढ़ेगी दुख उतना ही बढ़ेगा। ज्यादा खाने-पीने वाले को यह योग कठिन है। जो नम्र है उसे थोड़े ही दिनों में यह योग प्राप्त हो सकता है। मन में यह पक्का विचार होना चाहिए कि हम दुनिया में इसलिए नहीं आए कि वैसे ही जीवन बिताएं, जैसे पहले बिताया। इस जन्म में तो आत्म दर्शन करना ही है।
जब गुरु कृपा, अपनी कृपा और भगवान की कृपा तीनों ही कृपा हों तभी काम चलेगा। अपनी कृपा से अपने आपका उद्धार करो। आत्मा की ङ्क्षनदा न करो। आत्मबल को कम न समझो। संकल्प की शक्ति बड़ी महान है। वह जड़ या तुच्छ नहीं। अगर हमारे दृढ़ संकल्पों के साथ भगवान की कृपा मिल जाए तो एक बार पृथ्वी हिल जाए। यह सारा ब्रह्मांड संकल्पों से ही बना है। वही ब्रह्म सदा हम सब में है।
वेदांत और कर्म योग का मेल है। बिना एक-दूसरे के दोनों पंगु हैं। पहले कर्म फिर उपासना, फिर ज्ञान और ज्ञान पाने के बाद फिर कर्म करो। पहले कर्म करो ज्ञान प्राप्ति करने के लिए। बाद में कर्म करो लोक संग्रह के लिए। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में भी कहा है कि वह मनुष्य पापी है और उसका जीवन व्यर्थ है जो इस अनादिकाल से चले आ रहे चक्र का पालन नहीं करता। राम और कृष्ण ने भी यह चक्र चलाया नहीं अपितु उन्होंने इस पहले से चले हुए चक्र का पालन किया।
भगवान श्री कृष्ण जी कहते हैं अगर मैं कर्म न करूं तो सारी प्रजा को मारने वाला, नष्ट करने वाला बन जाऊंगा। अगर मैं कर्म नहीं करूंगा तो मेरे पीछे चलने वाले सभी लोग कर्म करना छोड़ देंगे और इस तरह पाखंड फैल जाएगा। इसलिए ब्रह्मज्ञानी होकर भी लोक संग्रह के लिए कर्म करना चाहिए। कर्म कोई छोड़ नहीं सकता। तुम कर्म का मर्म समझो।
जिसने जितनी साधना (ध्यानयोग) की, उसे उतनी ही शांति मिली। ब्रह्म को पाना बहुत कठिन भी है और बहुत सरल भी।
जप और सत्संग आदि पहले की क्लासें हैं। इसके बाद ध्यान लगाओ, जब जप करो तो ध्यान अवश्य करो, लेकिन जब ध्यान करो तब जप नहीं करो। एक माला का जप करो तो भी भगवान मिल जाएं और सौ माला का जप करना तो भी भगवान न मिलें। इसमें कुछ रहस्य छिपा है, जप जोर-जोर से नहीं करना चाहिए। जप के साथ इष्ट देव का ध्यान भी करना चाहिए।
जितना समय तुम दूसरों से जान-पहचान करने में खोते हो कि ‘वह कैसा और क्या है?’’
उतना समय तुम अपनी पहचान में लगाओ। क्यों अपना कीमती समय व्यर्थ ही गंवाते हो। कई बार तुम गप-शप में ही एक अमूल्य समय बर्बाद कर देते हो। यह मन बड़ा शैतान है। तरह-तरह के भोगों के नुस्खे बनाया करता है। थोड़े-थोड़े मिनटों को नष्ट करते-करते कई घंटे व्यर्थ चले गए, फिर कई घंटे मिल कर कई दिन व्यर्थ हो गए। फिर कुछ साल व्यर्थ हुए और इस तरह सारा जीवन ही बर्बाद हो गया। —स्वामी वेदव्यासानंद जी महाराज