Edited By Jyoti,Updated: 06 Dec, 2022 11:46 AM
भारतीय संत परम्परा की स्वर्णिम श्रृंखला में राष्ट्रसंत उत्तर भारतीय प्रवर्तक परम पूज्य दादा गुरुदेव भंडारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज का पावन नाम एक युगपुरुष के रूप में बड़े आदर से लिया जाता है।पर्याय और परम्परा से वह भले ही एक जैन संत थे...
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भारतीय संत परम्परा की स्वर्णिम श्रृंखला में राष्ट्रसंत उत्तर भारतीय प्रवर्तक परम पूज्य दादा गुरुदेव भंडारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज का पावन नाम एक युगपुरुष के रूप में बड़े आदर से लिया जाता है।पर्याय और परम्परा से वह भले ही एक जैन संत थे परन्तु परमार्थ की दृष्टि से वह सार्वभौमिक महापुरुष थे।
जाति, धर्म, सम्प्रदाय, ऊंच-नीच, देश -प्रदेश की सीमाओं से मुक्त रहकर उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन लोक मंगल और विश्व कल्याण के लिए समर्पित किया। शिक्षा, चिकित्सा और व्यसन मुक्ति के लिए उन्होंने आजीवन अभियान चलाया। उनकी प्रेरणा से उत्तर भारत में सैंकड़ों स्कूलों, कॉलेजों, लाइब्रेरियों, अस्पतालों, डिस्पैंसरियों और सांस्कृतिक संस्थानों की स्थापना हुई। इनकी प्रेरणा से स्थापित इन संस्थानों से आज हजारों- लाखों लोग लाभांवित हो रहे हैं।
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उनका जन्म हरियाणा के हलालपुर गांव, जिला सोनीपत में विजय दशमी के पावन दिन सन् 1917 को हुआ था। आप अग्रवाल वंश से थे। 17 वर्ष की आयु में जैन धर्म दिवाकर आचार्य सम्राट श्री आत्माराम जी म. सा. के शिष्य रूप में आपने जैन भगवती दीक्षा धारण की। संयम-समता व साधना के सद्गुण आपको अपने आराध्य गुरुदेव संस्कृत-प्राकृत विशारद उप प्रवर्तक पूज्य श्री हेमचन्द्र जी म. सा. से सहज ही विरासत में प्राप्त हुए।
कुछ ही वर्षों में आप जैन-जैनेतर दर्शन के अधिकारी विद्वान बन गए। सेवा, स्वाध्याय, धर्म प्रभावना, जन कल्याण आदि विविध गुणों के भंडार होने से आचार्य श्री आत्माराम जी म. सा. द्वारा आपको ‘भंडारी जी’ उपनाम से विभूषित किया गया। —डा. वरुण मुनि जी म. सा. प्रस्तुति : संदीप मित्तल