Shimla: अंग्रेजों के समय में Summer Capital के नाम से मशहूर था शिमला जानें, इसके पीछे की वजह

Edited By Prachi Sharma,Updated: 29 Sep, 2024 08:53 AM

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शिमला का लगभग 83 सालों का इतिहास ब्रिटिश हुकूमत और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्ष से जुड़ा हुआ है। अनेक गवर्नर जनरल, वायसराय और कमांडर आए तथा शिमला में अपने शौक तथा सनक के किस्से छोड़ गए।

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शिमला का लगभग 83 सालों का इतिहास ब्रिटिश हुकूमत और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्ष से जुड़ा हुआ है। अनेक गवर्नर जनरल, वायसराय और कमांडर आए तथा शिमला में अपने शौक तथा सनक के किस्से छोड़ गए। शिमला शहर अनेक ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है। वर्ष 1913-14 में चीनी, ब्रिटिश और तिब्बती प्रतिनिधियों की त्रिपक्षीय वार्ता यहीं हुई।  आज भी चर्चा में आने वाली ‘मैकमोहन रेखा’ उसी का नतीजा है।
 
सन् 1883-85 के मध्य ए.ओ. ह्यूम ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का बीज यहीं जाखू स्थित ‘रोथनी कैसल’ में रहते हुए उगाया और 1906 में मुस्लिम लीग के गठन का सूत्रपात भी शिमला में ही हुआ। दोनों विश्व महायुद्धों के दौरान शिमला में राजनीतिक गतिविधियां तेज रहीं।
 
बर्मा की शरणार्थी सरकार भी कुछ अरसा अस्थायी तौर पर शिमला में रही। इस बीच भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की गूंज 1857 से ही शिमला शहर और इन हिमालयन क्षेत्रों में गर्माने लगी थी।
वायसराय के कई निवास बदलने के बाद लॉर्ड डफरिन ने 1888 में वायसरीगल लॉज का निर्माण करवा लिया था। यही आलीशान इमारत सियासी गतिविधियों का केंद्र बन गई थी, जिसमें अब भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान है। इसी लॉज में जून 1945 की ‘शिमला कांफ्रैंस’ प्रमुख ऐतिहासिक घटना थी। उस दौर के भारतीय राजनीति के दिग्गज नेता इसमें भाग लेने के लिए शिमला आए थे।

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कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव यहीं तैयार किए गए थे और भारत के बंटवारे का मनहूस मसौदा भी शिमला में पेश हुआ था। अंतिम वायसराय लॉर्ड माऊंटबैटन ने ब्रिटिश कूटनीति को शिमला शहर में अंजाम दिया था।

अव्यवसायी रंगमंच की शुरुआत करने वाला गेयटी थिएटर 1887 में खुला और आज भी रंगकर्मियों, कलाकारों और साहित्यकारों को आकॢषत कर रहा है। शिमला शहर का इतिहास अभी 2 सदियों का ही पूरा होने जा रहा है लेकिन जिस तरह यह पहाड़ी शिमला शहर अस्तित्व में आया और राजनीतिक घटनाओं व ब्रिटिश काल की घटनाओंं का साक्षी रहा, उससे यह विश्वभर में चॢचत हो गया।

आजादी के बाद
भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात शिमला शहर एक पर्यटन नगर के रूप में दिन-प्रतिदिन उभर रहा है। गोरों ने यहां अपने पैर जमाकर शिमला को भारत में एक प्रमुख ‘हिल स्टेशन’ के रूप में विकसित किया था और आज देश-विदेश के पर्यटक पहाड़ की प्रकृति, शिमला की हसीन वादियों और यहां के खुशनुमा वातावरण का आनंद लेने के लिए आते हैं।

कनैडी हाऊस सहित यहां की अनेक पुरानी इमारतें आग की भेंट चढ़ गईं और वह बचा हुआ ब्रिटिश उपनिवेश स्थापत्य भी चारों ओर से नए भवन निर्माण में घिर गया, जो शिमला शहर की खास पहचान रहा है।

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100 साल से पुराने परिसर व इमारतें जहां शिमला शहर के अतीत के स्मारक हैं, वहीं यह भी उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद शिमला शहर के  सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में विशेष परिवर्तन लक्षित होता है।
 
कभी हर सुबह साबुन से धुलने वाले जिस माल रोड पर आम भारतीय का प्रवेश ही वॢजत था, जहां महज गोरे अंग्रेज या सूट-बूट की पोशाक में जैंटलमैन कहलाने वाले लोग ही घूम-फिर सकते थे, आज वहां हिमाचल प्रदेश के लोग, भारत के दूर-दराज क्षेत्रों से आने वाले लोग अपनी पारंपरिक पोशाकों में स्वछंद घूमते हैं और तरह-तरह की पहाड़ी टोपियां, ढाठू और लोइए सब तरफ नजर आते हैं।
 
जो गेयटी थिएटर पाश्चात्य संस्कृति, नाच-गानों के कार्यक्रमों के लिए ही बना था, उसके मंच पर अब हर क्षेत्र की नाटियां नाची जाती हैं। 159 साल पहले सन् 1864 में जब अंग्रेजों ने शिमला को देश की ग्रीष्मकालीन  राजधानी यानी ‘समर कैप्टिल’ घोषित किया था, तो यह अंदाजा उन्हें भी नहीं था कि एक दिन शिमला की वादियों से उनका नाता इतना गहरा हो जाएगा कि वे इंगलैंड को भी भूल जाएंगे। शिमला से जुड़े रहे ब्रिटिश परिवारों ने इंगलैंड में वापस जाकर भी शिमला की यादों को लम्बे समय तक सहेजे रखा।

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जिस इमारत में शिमला शहर व हिमाचल प्रदेश का उत्कृष्ट पहला राजकीय प्राथमिक पाठशाला पोर्टमोर स्कूल सन् 1948 से शिक्षा के क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश का नाम रोशन कर रहा है, वहां किसी समय प्रसूति कक्ष हुआ करता था। उस समय यहां पैदा हुए अंग्रेजों की मौजूदा पीढ़ी अपने बुजुर्गों से जुड़ी इस यादगार जगह को देखने आ पहुंचती है।
 
ज्यादातर अंग्रेज इस इमारत को देखना चाहते हैं, जहां उनके दादा या परदादा पैदा हुए थे।

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