Edited By Jyoti,Updated: 11 Jul, 2020 01:50 PM
सावन में शिव जी की पूजा का कितना महत्व है, प्रत्येक शिव भक्त इस बात से रूबरू हैं। शास्त्रों में कहा जाता है इस माह में भगवान शंकर की पूजा से लेकर छोटी से लेकर बड़ी मुश्किलों तक हल हो जाती हैं।
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सावन में शिव जी की पूजा का कितना महत्व है, प्रत्येक शिव भक्त इस बात से रूबरू हैं। शास्त्रों में कहा जाता है इस माह में भगवान शंकर की पूजा से लेकर छोटी से लेकर बड़ी मुश्किलों तक हल हो जाती हैं। ज्योतिष विशेषज्ञों को मानना है कि अगर जातक सावन मास में भगवान शिव की पूजा विधि वत तरीके से करता है तो शिव-पार्वती दोनों की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही बताया जाता है इनकी पूजा में उपयोग होने वाली सामग्री का भी पूरा ख्याल रखना चाहिए। मगर कई बार किसी कारण वश इनके पूजा में प्रयोग होने वाली सामग्री समेट पाना संभव वहीं होता। तो ऐसे में क्या करना चाहिए? क्या आधी-अधूरी सामग्री से ही शिव जी की पूजा कर लेनी चाहिए? जी, नहीं शास्त्रों में कहा गया है कि अगर इनके पूजन की पर्याप्त सामग्री न हों, तो पूजा संपूर्ण नही मानी जाती है। तो ऐसे में जातक के मन में सवाल आता है कि ऐसे में क्या उपाय करना चाहिए।
बता दें ऐसे में व्यक्ति को शिव जी को समर्पित एक खास स्तुति का पाठ करना चाहिए, लेकिन कौन सी वो स्तुति आइए जानते हैं-
धार्मिक शास्त्रों में शिव मानस पूजा को सुंदर भावनात्मक स्तुति कहा जाता है। ऐसी मान्यताएं हैं कि इस स्तुति के माध्यम से कोई भी व्यक्ति बिना किसी साधन और सामग्री के शिव पूजा संपन्न कर सकता हैं। किंवदंतियां तो ये भी प्रचलित हैं कि मानसिक पूजा शास्त्रों में श्रेष्ठतम पूजा के रूप में वर्णित है।
तो वहीं ज्योतिषियों का इस स्तुति को लेकर मानना है कि इस शिव मानस पूजा को सुंदर-समृद्ध कल्पना से करने पर शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और मानसिक रूप से अर्पित की प्रत्येक सामग्री को प्रत्यक्ष मानकर आशीर्वाद देते हैं।
यहां जानें शिव मानस पूजा -
रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं।
नाना रत्न विभूषितम् मृग मदामोदांकितम् चंदनम॥
जाती चम्पक बिल्वपत्र रचितं पुष्पं च धूपं तथा।
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितम् गृह्यताम्॥1॥
सौवर्णे नवरत्न खंडरचिते पात्र धृतं पायसं।
भक्ष्मं पंचविधं पयोदधि युतं रम्भाफलं पानकम्॥
शाका नाम युतं जलं रुचिकरं कर्पूर खंडौज्ज्वलं।
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥2॥
छत्रं चामर योर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निमलं।
वीणा भेरि मृदंग काहलकला गीतं च नृत्यं तथा॥
साष्टांग प्रणतिः स्तुति-र्बहुविधा ह्येतत्समस्तं ममा।
संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो॥3॥
आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं।
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः॥
संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो।
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्॥4॥
कर चरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व जय जय करणाब्धे श्री महादेव शम्भो॥5॥