Edited By Niyati Bhandari,Updated: 07 Oct, 2022 08:05 AM
एक बार की बात है ‘नटराज’ भगवान शिव के तांडव नृत्य में सम्मिलित होने के लिए समस्त देवगण कैलाश पर्वत पर उपस्थित हुए। जगजननी माता गौरी वहां दिव्य रत्न सिंहासन पर आसीन होकर अपनी
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Maa kali story: एक बार की बात है ‘नटराज’ भगवान शिव के तांडव नृत्य में सम्मिलित होने के लिए समस्त देवगण कैलाश पर्वत पर उपस्थित हुए। जगजननी माता गौरी वहां दिव्य रत्न सिंहासन पर आसीन होकर अपनी अध्यक्षता में तांडव का आयोजन कराने के लिए उपस्थित थीं।
देवर्षि नारद भी उस नृत्य कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए परिभ्रमण करते हुए वहां आ पहुंचे थे। थोड़ी देर में भगवान शिव ने भावविभोर होकर तांडव नृत्य प्रारंभ कर दिया। समस्त देवगण और देवियां भी उस नृत्य में सहयोगी बनकर विभिन्न प्रकार के वाद्य बजाने लगे। वीणा वादिनी मां सरस्वती वीणा वादन करने लगीं विष्णु भगवान मृदंग और देवराज इंद्र बंंसी बजाने लगे, ब्रह्मा जी हाथ से ताल देने लगे और लक्ष्मी जी गायन करने लगीं। अन्य देवगण, गंधर्व, किन्नर, यक्ष, उरग, पन्नग, सिद्ध, अप्सराएं, विद्याधर आदि भाव विह्लल होकर भगवान शिव के चतुर्दिक खड़े होकर उनकी स्तुति में तल्लीन हो गए।
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भगवान शिव ने उस प्रदोष काल में उन समस्त दिव्य विभूतियो के समक्ष अत्यंत अद्भुत, लोक विस्मयकारी तांडव नृत्य का प्रदर्शन किया। उनके अंग संचालन कौशल, मुद्रा लाघव, चरण, कटि, भुजा, ग्रीवा में उन्नत किन्तु सुनिश्चित विलोल-हिल्लोल के प्रभाव से सभी के मन और नेत्र दोनों एकदम चंचल हो उठे। सभी ने नटराज भगवान शंकर जी के उस नृत्य की सराहना की। भगवती महाकाली तो उन पर अत्यंत ही प्रसन्न हो उठीं। उन्होंने शिवजी से कहा, ‘‘भगवान आज आपके इस नृत्य से मुझे बड़ा आनंद हुआ है, मैं चाहती हूं कि आप आज मुझसे कोई वर प्राप्त करें।’’
उनकी बातें सुनकर आशुतोष भगवान शिव ने नारद जी की प्रेरणा से कहा, ‘‘हे देवी ! इस तांडव नृत्य के जिस आनंद से आप, देवगण तथा अन्य दिव्य योनियों के प्राणी विह्वल हो रहे हैं, उस आनंद से पृथ्वी के सारे प्राणी वंचित रह जाते हैं। हमारे भक्तों को भी यह सुख प्राप्त नहीं हो पाता। अत: आप ऐसा करिए कि पृथ्वी के प्राणियों को भी इसका दर्शन प्राप्त हो सके किन्तु मैं अब तांडव से विरत होकर केवल ‘रास’ करना चाहता हूं।’’
भगवान शिव की बात सुनकर तत्क्षण भगवती महाकाली ने समस्त देवताओं को विभिन्न रूपों में पृथ्वी पर अवतार लेने का आदेश दिया। स्वयं वह भगवान श्यामसुंदर श्रीकृष्ण का अवतार लेकर वृंदावन धाम में पधारीं। भगवान शिव ने ब्रज में श्री राधा के रूप में अवतार ग्रहण किया। यहां इन दोनों ने मिल कर देवदुर्लभ, अलौकिक रास नृत्य का आयोजन किया।
भगवान शिव की ‘नटराज’ उपाधि यहां भगवान श्री कृष्ण को प्राप्त हुई। पृथ्वी के चराचर प्राणी इस रास के अवलोकन से आनंद विभोर हो उठे और भगवान शिव की इच्छा पूरी हुई।