Edited By Niyati Bhandari,Updated: 12 Nov, 2022 09:42 AM
शिवाजी ने अनेक लड़ाइयां जीतीं। इससे उनमें थोड़ा अभिमान आ गया। कई बार उनका यह अभिमान औरों के सामने भी झलक पड़ता।
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The Story of Shivaji Maharaj: शिवाजी ने अनेक लड़ाइयां जीतीं। इससे उनमें थोड़ा अभिमान आ गया। कई बार उनका यह अभिमान औरों के सामने भी झलक पड़ता। एक दिन शिवाजी के महल में उनके गुरु समर्थ रामदास पधारे। उनके सामने भी शिवाजी का अभिमान इन शब्दों में व्यक्त हो गया-गुरु जी अब मैं लाखों लोगों का रक्षक और पालक हूं। मुझे उनकी सुख-दुख और भोजन-वस्त्र आदि की काफी चिंता करनी पड़ती है।
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रामदास जान गए कि उनके शिष्य के मन में अभिमान हो गया है। शाम को शिवाजी के साथ भ्रमण करते हुए रामदास ने अचानक शिवाजी को एक बड़ा-सा पत्थर दिखाते हुए कहा-शिवा, जरा इस पत्थर को तोड़कर तो देखो। शिवाजी ने तत्काल वह पत्थर तोड़ डाला। किन्तु यह क्या, पत्थर के बीच से एक जीवित मेंढक एक पतंगे को मुंह में दबाए बैठा था।
समर्थ रामदास ने शिवाजी से पूछा-पत्थर के बीच बैठे इस मेंढक को कौन हवा-पानी दे रहा है? कहीं इसके पालन की जिम्मेदारी भी तुम्हारे कंधों पर तो नहीं आ पड़ी है। शिवाजी गुरु की बात का मर्म समझकर पानी-पानी हो गए। गुरु ने उन्हें समझाया-पालक तो सबका एक ही है और वह है परम पिता परमेश्वर। हमारे भीतर पालनकर्ता का अभिमान नहीं आना चाहिए।