Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 Jul, 2024 11:12 AM
शिव ब्रह्मा रूप होने के कारण निराकार हैं। उनका न कोई स्वरूप है और न ही आकार वह निराकार हैं। आदि और अंत न होने से लिंग को शिव का निराकार रूप माना जाता है जबकि उनके साकार रूप में उन्हें भगवान शंकर
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Shivling Ka Rahsya: शिव ब्रह्मा रूप होने के कारण निराकार हैं। उनका न कोई स्वरूप है और न ही आकार वह निराकार हैं। आदि और अंत न होने से लिंग को शिव का निराकार रूप माना जाता है जबकि उनके साकार रूप में उन्हें भगवान शंकर मानकर पूजा जाता है। केवल शिव ही निराकार लिंग के रूप में पूजे जाते हैं। लिंग रूप में समस्त ब्रह्मांड का पूजन हो जाता है क्योंकि वही समस्त जगत के मूल कारण माने गए हैं। इसलिए शिव मूर्ति और लिंग दोनों रूपों में पूजे जाते हैं। यह सम्पूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। यही सबका आधार है। बिंदु एवं नाद अर्थात ध्वनि। यही दो सम्पूर्ण ब्रह्मांड का आधार हैं। शिव का अर्थ है- ‘परम कल्याणकारी’ और ‘लिंग’ का अर्थ है- ‘सृजन’। शिव के वास्तविक स्वरूप से अवगत होकर जाग्रत शिवलिंग का अर्थ होता है प्रमाण।
वेदों और वेदांत में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है। यह सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों से बना होता है। मन, बुद्धि, पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां और पांच वायु।
वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिनमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की सम्पूर्ण ऊर्जा ही लिंग का प्रतीक है। पौराणिक दृष्टि से लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपर प्रणवाक्य महादेव स्थित हैं। केवल लिंग की पूजा करने मात्र से समस्त देवी-देवताओं की पूजा हो जाती है। लिंग पूजन परमात्मा के प्रमाण स्वरूप सूक्ष्म शरीर का पूजन है। शिव और शक्ति का पूर्ण स्वरूप है शिवलिंग।
शिव के निराकार स्वरूप में ध्यान-मग्र आत्मा सद्गति को प्राप्त होती है, उसे पारब्रह्म की प्राप्ति होती है। तात्पर्य यह है कि हमारी आत्मा का मिलन परमात्मा के साथ कराने का माध्यम-स्वरूप है शिवलिंग। शिवलिंग साकार एवं निराकार ईश्वर का प्रतीक है जो परमात्मा-आत्मा-लिंग का द्योतक है।
शिवलिंग का अर्थ है शिव का आदि-अनादि स्वरूप शून्य, आकाश, अनन्त ब्रह्मांड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक। स्कंदपुराण के अनुसार आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका आधार है व अनंत शून्य से पैदा हो, उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है। शिवलिंग हमें बताता है कि संसार मात्र पौरुष व प्रकृति का वर्चस्व है तथा दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। शिव पुराण के अनुसार शिवलिंग की पूजा करके जो भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं उन्हें प्रात:काल से लेकर दोपहर से पहले ही इनकी पूजा कर लेनी चाहिए। इसकी पूजा से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।