Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Oct, 2024 07:44 AM
Ahoi Ashtami Radha Kund Snan 2024: पुत्र रत्न प्राप्ति की कामना के साथ उत्तर प्रदेश में कान्हा की नगरी मथुरा के राधाकुंड में अहोई अष्टमी की पूर्व संध्या पर कृष्ण भक्तों का जमावड़ा लगने लगता है। गोवर्धन तहसील के छोटे से कस्बे के बारे में मान्यता है...
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Ahoi Ashtami Radha Kund Snan 2024: पुत्र रत्न प्राप्ति की कामना के साथ उत्तर प्रदेश में कान्हा की नगरी मथुरा के राधाकुंड में अहोई अष्टमी की पूर्व संध्या पर कृष्ण भक्तों का जमावड़ा लगने लगता है। गोवर्धन तहसील के छोटे से कस्बे के बारे में मान्यता है कि मध्य रात्रि की बेला पर राधाकुंड में पति-पत्नी के साथ-साथ स्नान करने पर पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। इस बार अहोई अष्टमी का यह स्नान 24 अक्टूबर को होगा। राधाकुंड गोवर्धन होकर या छटीकरा होकर पहुंचा जा सकता है। गोवर्धन जाने के लिए मथुरा से उत्तर प्रदेश रोडवेज की बस से नए बस स्टैंड से जाया जा सकता है और वहां से राधाकुंड बस या आटो से पहुंचा जा सकता है क्योंकि गोवर्धन बस स्टैंड से राधाकुंड की दूरी मात्र साढ़े चार किलोमीटर ही है।
Radha kund vrindavan: द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण अरिष्टासुर का वध करने के बाद जब राधारानी से उनके निज महल में मिलने गए तो राधारानी ने उनसे मिलने को मना कर दिया और निज महल का दरवाजा नहीं खोला बल्कि यह कहा कि चूंकि उन्होंने गोवंश की हत्या की है इसलिए वे हत्या के दोषी हैं और इसके लिए वे कम से कम सात तीर्थों में जाकर वहां स्नान करें और तब यहां आएं तो उन्हें निज महल में प्रवेश मिलेगा। उस समय उनका निज महल वहां था जहां पर आज राधाकुंड कस्बे में श्याम कुंड और कंगनकुंड का संगम है।
इसके बाद श्रीकृष्ण ने अपनी वंशी से गड्ढा खोदकर सात तीर्थों की जगह सभी तीर्थों का आह्वान किया और सभी तीर्थों का जल आने के बाद उन्होंने उस कुंड में स्नान किया। बाद में इसका नाम कृष्ण कुंड या श्याम कुंड पड़ गया। जिस समय श्रीकृष्ण तीर्थों का आह्वान कर रहे थे, उस समय राधारानी अन्य गोपिकाओं के साथ इसे देख रही थीं। इसके बाद वे गोपियों से बातचीत करने लगीं लेकिन इसी बीच श्रीकृष्ण स्नान करके निज महल में पहुंच गए और उसे अंदर से बंद कर दिया।
इसके बाद जब राधारानी ने निज महल में प्रवेश करना चाहा तो श्यामसुन्दर ने दरवाजा नहीं खोला। राधारानी के बहुत अनुरोध के बाद उन्होंने कहा कि चूंकि वे उनकी अर्धांगिनी हैं इसलिए अरिष्टासुर की हत्या का आधा पाप उन्हें भी लगा है इसलिए वे शुद्ध जल से स्नान करके आएं तभी उन्हें निज महल में प्रवेश मिलेगा। इसके बाद राधारानी ने अपने कंगन से खोदकर कुंड को प्रकट किया और उसमें स्नान करने के बाद वे निज महल में पहुंची तो श्यामसुन्दर ने दरवाजा खोल दिया। चूंकि राधारानी ने इस कुंड को अपने कंगन से प्रकट किया था इसलिए इसका नाम कंगन कुंड हो गया। श्यामसुन्दर ने इस कुंड को और महत्वपूर्ण बनाने के लिए बाद में श्यामकुंड से कंगन कुंड को जोड़ दिया। जिससे सभी तीर्थों का जल कंगन कुंड में मिल गया और दोनो ही कुंड तीर्थमय हो गए।
जिस दिन श्यामसुन्दर और राधारानी ने यह लीला की थी उस दिन अहोई अष्टमी थी इसलिए उन्होंने यह भी कहा कि जो व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ कंगन कुंड में आज के दिन स्नान करेगा उसे अच्छी संतान की प्राप्ति होगी तथा जो व्यक्ति इस दिन के बाद अन्य दिनों में दोनों कुडों में से किसी कुंड में स्नान करेगा उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी।
यह स्थल बड़ा ही पावन एवं मनोकामना पूर्ण करने वाला है। इसी कारण देश के कोने-कोने से लोग सन्तान प्राप्ति की आशा में अहोई अष्टमी को अपनी पत्नी के साथ राधा कुंड पहुंचते हैं और दोनो ही साथ-साथ कंगन कुंड में आधी रात यानी रात के 12 बजे स्नान करते हैं और बाद में सन्तान के रूप में उन्हें ठाकुर जी का आशीर्वाद मिलता है। पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए पेठे का दान (पेठा बनाने वाले कुहड़े का दान) किया जाता है। यह स्नान संतान प्राप्ति से जुड़ जाने के कारण इस दिन दोपहर से ही राधाकुंड में मेला लग जाता है, जो अगले दिन तक जारी रहता है। संतान प्राप्ति की आशा में लोग दूर प्रांतों से आते हैं। वातावरण धार्मिकता से भर जाता है तथा चारों ओर स्वर गूंजते हैं- राधे तेरे चरणों की अगर धूल भी मिल जाए। सच कहते हैं बस इतना तकदीर बदल जाए।