Edited By Jyoti,Updated: 06 Aug, 2021 01:09 PM
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
यूं तो प्रत्येक मास में दो बार चतुर्दशी और वर्ष में कुल 24 बार चतुर्दशी तिथि पड़ती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस तिथि को चौदस तिथि के नाम से भी जाना जाता है। बारिश परंतु वैशाख शुक्ल और
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
यूं तो प्रत्येक मास में दो बार चतुर्दशी और वर्ष में कुल 24 बार चतुर्दशी तिथि पड़ती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस तिथि को चौदस तिथि के नाम से भी जाना जाता है। बारिश परंतु वैशाख शुक्ल और श्रावण मास की चतुर्दशी तिथि को अधिक महत्व प्राप्त है। इस मास की चतुर्दशी तिथि को शिव चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। अर्थात इस दिन शिव पूजन का विशेष बहादुर माना गया है। गर्ग संहिता में इस तिथि के महत्व का वर्णन करने के लिए एक श्लोक वर्णित है जो इस प्रकार है-
उग्रा चतुर्दशी विन्द्याद्दारून्यत्र कारयेत्।
बन्धनं रोधनं चैव पातनं च विशेषतः।।
इस श्लोक में बताया गया है कि चतुर्दशी को किसकी पूजा करनी चाहिए, साल की तमाम चतुर्दशी तिथियों में से किन चतुर्दशी तिथि का अधिक महत्व होता है, तथा चतुर्दशी के दिन कौन से कार्य नहीं करनी चाहिए।
तो आइए विस्तार से जानते हैं यह तमाम जानकारी-
चतुर्दशी यानी चौदस तिथि के देवता भगवान शंकर को माना गया है। भोलेनाथ की पूजा अत्यंत लाभकारी मानी गई है। कहा जाता है कि इस दिन पूजा करने से मनुष्य अपने जीवन में समस्त प्रकार के ऐश्वर्य को प्राप्त करता है। साथ ही साथ धन-धान्य से संपन्न होता है। बता दें ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस स्थिति की दिशा पश्चिम मानी गई है जिसके स्वामी शनि देव कहलाते हैं। तो वही यह तिथि चंद्रमा ग्रह की जन्म तिथि मानी जाती है, कहा जाता है कि चतुर्दशी तिथि की अमृतकला आपको स्वयं भगवान शंकर ग्रहण करते हैं
जैसे कि हमने आपको ब्लॉक बताया कि यूं तो वर्ष में कुल 24 चतुर्दशी तिथियां पड़ती हैं, परंतु 6 चतुर्दशी तिथि का अधिक महत्व होता है। भाद्रपद शुक्ल की अनंत चतुर्दशी, कार्तिक कृष्ण पक्ष की कृष्ण चतुर्दशी, रूप व नरक चतुर्दशी, कार्तिक शुक्ल की बैकुंठ चतुर्दशी, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की विनायक चतुर्थी, शिव चतुर्दशी और श्रावण मास की शिव चतुर्दशी। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है इस दिन अनंत सूत्र बांधने का अधिक महत्व माना जाता है।
कार्तिक मास में पड़ने वाली नरक चौदस या नर्क चतुर्दशी के दिन यम देव की पूजा का विधान है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु शंकर भगवान दोनों की पूजा का विधान है। तो वहीं विनायक चतुर्दशी के दिन सर्वप्रथम पूजनीय भगवान श्री गणेश का पूजन किया जाता है।
ये कार्य होते हैं निषेध-
चतुर्थी तिथि को रिक्ता संज्ञक भी कहा गया है तथा इसे क्रूरा के नाम से भी जाना जाता है। यह उग्र अर्थात आक्रामकता प्रदान करने वाली तिथि मानी गई है। इसलिए इस दौरान समस्त प्रकार के शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं। इसके अलावा अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, चतुर्दशी, अष्टमी, रविवार श्राद्ध एवं व्रत के दिन स्त्री सहवास तथा तिल के तेल, लाल रंग का साग तथा कांसे के पात्र में भोजन करना भी निषेध माना जाता है।