Edited By Niyati Bhandari,Updated: 12 Jan, 2021 11:47 PM
भगवान गणेश से जुड़ी सबसे खास बात उनका स्वरूप है। भगवान गणेश के कान, उनका उदर यह सब कुछ ऐसा है जो बेहद निराला है। वैसे तो लंबोदर भगवान गणेश के जन्म, पिता शिव द्वारा त्रिशूल से
Shree Ganesh Ji Ka Janam Katha: भगवान गणेश से जुड़ी सबसे खास बात उनका स्वरूप है। भगवान गणेश के कान, उनका उदर यह सब कुछ ऐसा है जो बेहद निराला है। वैसे तो लंबोदर भगवान गणेश के जन्म, पिता शिव द्वारा त्रिशूल से उनका शीश काटना और फिर मां पार्वती के विलाप पर मृत बाल गणेश के मानवीय शीश की जगह गज अर्थात हाथी का शीश जोड़कर उन्हें पुन: जीवित करने की कहानी तो प्राय: सभी जानते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान गणेश के जिस सिर को शिव जी ने काटा था उसका क्या हुआ और आखिर वह कहां गिरा था?
भगवान गणेश का वह मानव रूपी सिर अब भी पृथ्वी पर मौजूद है और हम इसके दर्शन भी कर सकते हैं। भगवान गणेश के जन्म से जुड़ी एक प्रचलित कथा के अनुसार उनका सृजन माता पार्वती ने अपने हाथों से किया।
एक दिन माता पार्वती स्नान की तैयारी कर रही थीं। उन्होंने अपने ‘उबटन’ से एक छोटे बालक की आकृति बना कर उसमें प्राण डाल दिए। उस बच्चे का नाम माता ने गणेश रखा और उसे अपने स्नान तक द्वार की रखवाली के लिए कहा ताकि कोई अंदर न आ सके। भगवान गणेश उनकी बात मान गए और मां के आदेश के अनुसार रखवाली करने लगे।
कुछ ही देर बाद भगवान शिव वहां पहुंचे और स्नान घर के अंदर जाने लगे। गणेश जी नहीं जानते थे कि भगवान शिव कौन हैं। इसलिए उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। भगवान शिव ने कई बार बालक गणेश को मनाने की कोशिश की लेकिन गणेश जी टस से मस नहीं हुए।
यह देख भगवान शिव को गुस्सा आ गया और उन्होंने गणेश जी को चेतावनी दी। गणेश जी इसके बाद भी नहीं माने तो भगवान शिव ने त्रिशूल से उन पर वार किया और उनका सिर कट कर कैलाश से दूर जा गिरा। माता पार्वती जब बाहर आईं तो उन्हें इस पूरी घटना के बारे में पता चला और वह अपने बेटे के इस तरह मारे जाने से दुखी हो गईं। पार्वती जी को दुखी देख भगवान शंकर ने सभी गणों को उनका सिर खोज कर लाने का आदेश दिया।
जब सभी गण खाली हाथ लौटे तो शिव जी ने उन्हें आदेश दिया कि उन्हें जो भी सबसे पहले दिखे वे उसका सिर लेकर आ जाएं। इसके बाद हाथी के बच्चे का सिर लाया गया और भगवान शिव ने उसे गणेश जी के धड़ पर लगा दिया। साथ ही यह आशीर्वाद भी दिया कि किसी भी पूजा से पहले भगवान गणेश की समस्त संसार में पूजा की जाएगी।
एक गुफा में आज भी सुरक्षित है गणेश जी का कटा सिर, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में गंगोलिहाट से 14 किलोमीटर दूर भुवनेश्वर नाम का गांव है। इसी गांव में मौजूद पाताल गुफा के बारे में कहा जाता है कि यहां श्री गणेश का कटा सिर मौजूद है। हर साल यहां कई श्रद्धालु आते हैं हालांकि उन्हें एक सीमा के बाद अंदर जाने की अनुमति नहीं है। मान्यता है कि अंदर देवता विराजमान हैं। कई श्रद्धालुओं के अनुसार गुफा में अंदर जाने के बाद दीवारों को छूने पर गजब की शांति का अहसास होता है।
गणेश जी के सिर के गुफा में होने की जानकारी मिलने की कथा भी बहुत ही रोचक है। कथा के अनुसार त्रेतायुग में सूर्यवंश के राजा ऋतुपर्णा एक बार राजा नल को छिपाने के लिए हिमालय की पहाड़ियों में कोई जगह खोज रहे थे।
राजा नल को दरअसल अपनी पत्नी दमयंती से हार का सामना करना पड़ा था और वे बंधक बना लिए जाने के डर से भागे-भागे फिर रहे थे। हिमालय में घूमते हुए ऋतुपर्णा एक स्वर्ण हिरण का पीछा करने लगे। वह ऐसा करते-करते थक गए और एक पेड़ के नीचे रुक कर आराम करने लगे।
इतने में राजा को नींद आ गई। उन्हें सपने में दिखा कि कोई आकर उस हिरण को नहीं मारने की सलाह दे रहा है। राजा की जब नींद खुली तो उन्होंने खुद को एक गुफा के अंदर पाया। जैसे ही राजा ऋतुपर्णा ने उसमें दाखिल होने की कोशिश की उन्होंने देखा कि शेषनाग इसकी रखवाली कर रहे हैं। शेषनाग ने इसके बाद राजा ऋतुपर्णा को रास्ता दिखाया और अंदर ले गए। गुफा के बहुत अंदर जाने के बाद राजा ने देखा कि भगवान शिव और सभी देवतागण भगवान गणेश के कटे हुए सिर की रखवाली कर रहे हैं।
त्रेतायुग के बाद किसी ने गुफा में जाने की कोशिश नहीं की। कहते हैं कि कलियुग में आदि शंकराचार्य ने इसकी खोज की और उसके बाद से इसे आम तीर्थयात्रियों के लिए खोल दिया गया। हालांकि आज भी तीर्थयात्रियों को गुफा में केवल कुछ दूर तक ही जाने की इजाजत है। ऐसा कहते हैं कि गुफा में आज भी भगवान गणेश का कटा सिर मौजूद है और इस गुफा से एक गुप्त रास्ता कैलाश पर्वत तक भी जाता है। यह रास्ता इतना संकरा है कि वहां आक्सीजन बेहद कम है। ऐसे में आम इंसान के लिए गुफा की गहराई में जाकर जिंदा रहना मुश्किल है। मान्यता है कि महाभारत में स्वर्ग जाने के रास्ते के दौरान पांडवों ने इस गुफा के सामने रुक कर भगवान गणेश का भी आशीर्वाद लिया था।