Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 May, 2022 09:51 AM
वसुश्रेष्ठ द्रोण और उनकी पत्नी धरा ने ब्रह्मा जी से यह प्रार्थना की, ‘‘देव ! जब हम पृथ्वी पर जन्म लें तो भगवान में
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Shree Krishna: वसुश्रेष्ठ द्रोण और उनकी पत्नी धरा ने ब्रह्मा जी से यह प्रार्थना की, ‘‘देव ! जब हम पृथ्वी पर जन्म लें तो भगवान में हमारी अविचल भक्ति हो।’’
ब्रह्मा जी ने ‘तथास्तु’ कह कर उन्हें वर दिया। इसी वर के प्रभाव से ब्रज मंडल में सुमुख नामक गोप की पत्नी पाटला के गर्भ से धरा का जन्म यशोदा के रूप में हुआ और उनका विवाह नंद जी से हुआ। नंद जी पूर्व जन्म के द्रोण नामक वसु थे। भगवान श्रीकृष्ण का पालन-पोषण नंद-यशोदा के घर ही हुआ।
देवकी तथा वासुदेव के पुत्र श्रीकृष्ण का जन्म कंस के कारागार में हुआ। कंस से रक्षा के लिए वासुदेव उन्हें यशोदा के घर छोड़ आए।
श्री यशोदा जी शांत होकर सोई थीं। श्री रोहिणी जी की आंखें भी बंद थीं। जब वासुदेव ने यशोदा की पुत्री को उठाकर कान्हा को यशोदा के पास सुलाया तो अचानक गृह अभिनव प्रकाश से भर गया। सर्वप्रथम रोहिणी माता की आंख खुली।
रोहिणी जी दासियों से बोल उठीं, ‘‘अरी ! तुम सब क्या देखती ही रहोगी? कोई दौड़कर नंद जी को सूचना दे दो।’’
फिर क्या था, दूसरे ही क्षण सभी आनंद और कोलाहल में डूब गए। एक नंद जी को सूचना देने के लिए दौड़ी, एक दाई को बुलाने के लिए और एक शहनाई वाले के यहां गई।
चारों ओर आनंद का साम्राज्य छा गया। विधिवत संस्कार सम्पन्न हुआ। नंद जी ने इतना दान दिया याचकों को कि उनके और कहीं से मांगने की आवश्यकता ही समाप्त हो गई। सम्पूर्ण ब्रज ही मानो प्रेमानंद में डूब गया।
माता यशोदा बड़ी ललक से हाथ बढ़ाती हैं और अपने हृदय धन को उठा लेती हैं तथा शिशु के अधरों को खोल कर अपना दूध उसे पिलाने लगती हैं। भगवान शिशु रूप में मां के इस वात्सल्य का बड़े ही प्रेम से पान करने लगते हैं।
कंस के द्वारा भेजी गई पूतना अपने स्तनों में कालकूट विष लगाकर गोपी वेश में यशोदा नंदन श्रीकृष्ण का वध करने के लिए आई। श्रीकृष्ण दूध के साथ उसके प्राणों को भी पी गए।
शरीर छोड़ते समय श्रीकृष्ण को लेकर पूतना मथुरा की ओर दौड़ी। उस समय यशोदा के प्राण भी श्रीकृष्ण के साथ चले गए। उनके जीवन में चेतना का संचार तब हुआ, जब गोप सुंदरियों ने श्रीकृष्ण को लाकर उनकी गोद में डाल दिया।
श्री कृष्ण धीरे-धीरे बढ़ने लगे। मैया का आनंद भी उसी क्रम में बढ़ रहा था। जननी का प्यार पाकर श्रीकृष्ण 81 दिनों के हो गए। मैया आज अपने सलोने श्री कृष्ण को नीचे पालने में सुला आई थीं। कंस प्रेरित उत्कच नामक दैत्य आया। वह श्री कृष्ण को पीस डालना चाहता था परंतु इससे पहले ही श्री कृष्ण ने उसके प्राणों का अंत कर दिया।
भगवान श्रीकृष्ण ने माखन लीला, ऊखल बंधन, कालिया उद्धार, गोचारण, धेनुक वध, दावाग्नि पान, गोवर्धन धारण, रासलीला आदि अनेक लीलाओं से यशोदा मैया को अपार सुख प्रदान किया।
इस प्रकार 11 वर्ष 6 महीने तक माता यशोदा का महल श्रीकृष्ण की किलकारियों से गूंजता रहा। आखिर श्रीकृष्ण को मथुरा पुरी ले जाने के लिए अक्रूर आ ही गए।
अक्रूर ने आकर यशोदा जी के हृदय पर मानों अत्यंत क्रूर वज्र का प्रहार किया। पूरी रात श्री नंद जी यशोदा को समझाते रहे परंतु किसी भी कीमत पर वह अपने प्राण प्रिय पुत्र को कंस की रंगशाला में भेजने के लिए तैयार नहीं हो रही थीं।
आखिर योगमाया ने अपनी माया का प्रभाव फैलाया। यशोदा जी ने फिर भी अनुमति नहीं दी, केवल विरोध छोड़कर वह अपने आंसुओं से पृथ्वी को भिगोने लगीं। श्री कृष्ण चले गए और यशोदा विक्षिप्त-सी हो गईं। उनका हृदय तो तब शीतल हुआ, जब वह पुन: श्री कृष्ण से मिलीं।
अपनी लीला समेटने से पहले ही भगवान ने माता यशोदा को गोलोक भेज दिया।
य धन को उठा लेती हैं तथा शिशु के अधरों को खोल कर अपना दूध उसे पिलाने लगती हैं। भगवान शिशु रूप में मां के इस वात्सल्य का बड़े ही प्रेम से पान करने लगते हैं।
कंस के द्वारा भेजी गई पूतना अपने स्तनों में कालकूट विष लगाकर गोपी वेश में यशोदा नंदन श्रीकृष्ण का वध करने के लिए आई। श्रीकृष्ण दूध के साथ उसके प्राणों को भी पी गए।
शरीर छोड़ते समय श्रीकृष्ण को लेकर पूतना मथुरा की ओर दौड़ी। उस समय यशोदा के प्राण भी श्रीकृष्ण के साथ चले गए। उनके जीवन में चेतना का संचार तब हुआ, जब गोप सुंदरियों ने श्रीकृष्ण को लाकर उनकी गोद में डाल दिया।
श्री कृष्ण धीरे-धीरे बढ़ने लगे। मैया का आनंद भी उसी क्रम में बढ़ रहा था। जननी का प्यार पाकर श्रीकृष्ण 81 दिनों के हो गए। मैया आज अपने सलोने श्री कृष्ण को नीचे पालने में सुला आई थीं। कंस प्रेरित उत्कच नामक दैत्य आया। वह श्री कृष्ण को पीस डालना चाहता था परंतु इससे पहले ही श्री कृष्ण ने उसके प्राणों का अंत कर दिया।
भगवान श्रीकृष्ण ने माखन लीला, ऊखल बंधन, कालिया उद्धार, गोचारण, धेनुक वध, दावाग्नि पान, गोवर्धन धारण, रासलीला आदि अनेक लीलाओं से यशोदा मैया को अपार सुख प्रदान किया।
इस प्रकार 11 वर्ष 6 महीने तक माता यशोदा का महल श्रीकृष्ण की किलकारियों से गूंजता रहा। आखिर श्रीकृष्ण को मथुरा पुरी ले जाने के लिए अक्रूर आ ही गए।
अक्रूर ने आकर यशोदा जी के हृदय पर मानों अत्यंत क्रूर वज्र का प्रहार किया। पूरी रात श्री नंद जी यशोदा को समझाते रहे परंतु किसी भी कीमत पर वह अपने प्राण प्रिय पुत्र को कंस की रंगशाला में भेजने के लिए तैयार नहीं हो रही थीं।
आखिर योगमाया ने अपनी माया का प्रभाव फैलाया। यशोदा जी ने फिर भी अनुमति नहीं दी, केवल विरोध छोड़कर वह अपने आंसुओं से पृथ्वी को भिगोने लगीं। श्री कृष्ण चले गए और यशोदा विक्षिप्त-सी हो गईं। उनका हृदय तो तब शीतल हुआ, जब वह पुन: श्री कृष्ण से मिलीं।
अपनी लीला समेटने से पहले ही भगवान ने माता यशोदा को गोलोक भेज दिया।