Edited By Prachi Sharma,Updated: 16 Jan, 2024 07:25 AM
अग्रवंश के गौरव अपनी मातृभूमि के लिए जीवन भर की सम्पूर्ण धन-संपदा मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के चरणों में अर्पित करने वाले भामाशाह का निष्ठापूर्ण सहयोग
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Shri Bhamashah punyatithi: अग्रवंश के गौरव अपनी मातृभूमि के लिए जीवन भर की सम्पूर्ण धन-संपदा मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के चरणों में अर्पित करने वाले भामाशाह का निष्ठापूर्ण सहयोग महाराणा प्रताप के जीवन में महत्वपूर्ण और निर्णायक साबित हुआ था। यह सहयोग उन्होंने तब दिया जब महाराणा प्रताप अपना अस्तित्व बनाए रखने के प्रयास में निराश होकर परिवार सहित पहाड़ियों में छिपते भटक रहे थे। माना जाता है कि यह सम्पत्ति इतनी अधिक थी कि उससे कई वर्षों तक 25,000 सैनिकों का खर्चा पूरा किया जा सकता था। भामाशाह बाल्यकाल से महाराणा प्रताप के मित्र, सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार थे।
भामाशाह का जन्म राजस्थान के मेवाड़ राज्य में वर्तमान पाली जिले के सादड़ी गांव में 29 अप्रैल, 1547 को वैश्य कुल ओसवाल जैन परिवार में हुआ। कुछ विद्वानों के हिसाब से भामाशाह का जन्म 28 जून, 1547 को मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़गढ़ में हुआ था। इनके पिता भारमल को राणा सांगा ने रणथम्भौर के किले का किलेदार नियुक्त किया था। माता कर्पूर देवी ने बाल्यकाल से ही भामाशाह को त्याग, तपस्या व बलिदान सांचे में ढालकर राष्ट्रधर्म हेतु समर्पित कर दिया।
भामाशाह बेमिसाल दानवीर एवं त्यागी पुरुष थे। धन अर्पित करने वाले किसी भी दानदाता को दानवीर भामाशाह कहकर उसका स्मरण-वंदन किया जाता है।
महाराणा प्रताप हल्दीघाटी का युद्ध (18 जून, 1576) हार चुके थे। मुगल बादशाह अकबर से लोहा लेते हुए जब महाराणा प्रताप को अपनी मातृभूमि का त्याग करना पड़ा तो वह अपने परिवार सहित जंगलों में रहने लगे। राणा को बस एक ही चिंता थी कि किस प्रकार फिर से सेना जुटाएं, जिससे मेवाड़ को आक्रांताओं से चंगुल से मुक्त करा सकें। उस समय राणा के सम्मुख सबसे बड़ी समस्या धन की थी।
महाराणा प्रताप के कष्टों के बारे में जब भामाशाह को पता चला तो उनका दिल दहल उठा। उनके पास स्वयं का जो धन था, वह सब लेकर भामाशाह महाराणा प्रताप के सम्मुख उपस्थित हुए और नम्रता से कहा, ‘‘मैंने यह सब धन देश से ही कमाया है। यदि यह देश की रक्षा में लग जाए, तो यह मेरा और मेरे परिवार का अहोभाग्य होगा।’’
महाराणा प्रताप ने कहा, ‘‘भामाशाह तुम्हारी देशभक्ति, स्वामिभक्ति और त्याग भावना को देखकर मैं अभिभूत हूं, परन्तु एक शासक होते हुए मेरे द्वारा वेतन के रूप में दिए गए धन को मैं पुन: कैसे ले सकता हूं ? मेरा स्वाभिमान मुझे स्वीकृति नहीं देता।’’
भामाशाह ने निवेदन किया, ‘‘आप पर संकट आया हुआ है। मातृभूमि की रक्षार्थ मेवाड़ की प्रजा को दे रहा हूं। लड़ने वाले सैनिकों को दे रहा हूं। मातृभूमि पराधीन हो जाएगी, मुगलों का शासन हो जाएगा तब यह धन किस काम आएगा ? मेवाड़ स्वतंत्र रहेगा तो धन फिर कमा लूंगा।’’
उनके व सामंतों के आग्रह पर महाराणा प्रताप ने भामाशाह के धन से नए उत्साह से पुन: सैन्य शक्ति संगठित कर मुगल शासकों को पराजित कर फिर से मेवाड़ का राज्य प्राप्त किया। 1597 में महाराणा प्रताप की संसारिक यात्रा पूर्ण होने के 3 वर्ष बाद कर्मवीर योद्धा भामाशाह का 53 वर्ष की आयु मे 16 जनवरी, 1600 को देवलोक गमन हुआ।
छत्तीसगढ़ शासन ने भामाशाह की स्मृति में दानशीलता, सौहार्द्र एवं अनुकरणीय सहायता के क्षेत्र में ‘दानवीर भामाशाह सम्मान’ स्थापित किया है। राजस्थान सरकार ने भी महिला सशक्तिकरण के लिए वर्ष 2008 में ‘भामाशाह कार्ड’ जारी करके उन्हें सम्मान दिया। उदयपुर में राजाओं के समाधि स्थल के मध्य भामाशाह की समाधि बनी हुई है।
2000 में भामाशाह के सम्मान में डाक टिकट जारी हुआ था। आज भी चित्तौड़गढ़ दुर्ग में भामाशाह की हवेली बनी हुई है। अग्र समाज ने भी अग्रोहा (हरियाणा) में इनके सम्मान में यादगार स्थापित की है।