Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Nov, 2021 09:12 AM
वैदिक सनातन धर्म में भगवान विष्णु जी के 24 अवतारों में भगवान धन्वंतरि 12वें अवतार हैं। दीपावली से दो दिन पूर्व स्वस्थ जीवन शैली के प्रदाता के रूप में आरोग्य, आयु तथा तेज के आराध्य देवता भगवान धन्वंतरि जी का अवतरण दिवस मनाया जाता है।
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2021 Dhanvantari Trayodashi: वैदिक सनातन धर्म में भगवान विष्णु जी के 24 अवतारों में भगवान धन्वंतरि 12वें अवतार हैं। दीपावली से दो दिन पूर्व स्वास्थ्य जीवन शैली के प्रदाता के रूप में आरोग्य, आयु तथा तेज के आराध्य देवता भगवान धन्वंतरि जी का अवतरण दिवस मनाया जाता है। इनके एक हाथ में शंख, दूसरे हाथ में चक्र तथा अन्य दो भुजाओं में एक में औषधि तथा दूसरे हाथ में कलश धारण किए हुए हैं। धन्वंतरि संहिता आयुर्वेद का मूल ग्रंथ है। धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि से प्रार्थना की जाती है कि वे समस्त जगत को निरोग कर मानव समाज को दीर्घायु प्रदान करें।
इन्होंने आयुर्वेद शास्त्र का उपदेश विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत को दिया। इस ज्ञान को अश्विनी कुमार तथा चरक आदि ऋषियों ने आगे बढ़ाया। आयुर्वेद मानसिक व शारीरिक रूप से पूर्ण रूप से स्वस्थ रहने का ज्ञान प्रदान करता है।
आधुनिक जीवन में मनुष्य अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त है। उसकी कार्यक्षमता भी कम हो रही है लेकिन प्राचीन काल में ऋषियों-मुनियों ने आयुर्वेद के ज्ञान से अपने शरीर को स्वस्थ एवं निरोधी रखा, सर्वभय व सर्व रोगनाशक व आरोग्य देव भगवान धन्वंतरि स्वास्थ्य के अधिष्ठाता होने से विश्व वैद्य हैं। इसी दिन धन, वैभव, सुख-समृद्धि, वैभव का पर्व ‘धनतेरस’ मनाया जाता है।
lord dhanvantari mantra: संसार का सबसे बड़ा धन है निरोगी काया, भौतिक सुख साथ होगा तभी समृद्धि और वैभव को भोग पाएंगे। भगवान धन्वंतरि की कृपा पाने के लिए करें मंत्र जाप और स्तोत्र का पाठ।
स्वास्थ्य के लिए करें मंत्र जाप-
धन्वंतरये नमः॥
धनवंतरी देव का पौराणिक मंत्र
नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतरायेर्
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्त्र नारायणाय नमः॥
लम्बी आयु देगा स्तोत्र का पाठ
ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥