Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Jun, 2024 08:34 AM
बुखार अपनी चपेट में केवल हम इंसानों को ही नहीं लेता बल्कि भगवान श्री जगन्नाथ देव भी बीमार होने की लीला करते हैं। आपको जानकर आश्चर्य हुआ होगा लेकिन आपको बता
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Shri jagannath rath yatra 2024: बुखार अपनी चपेट में केवल हम इंसानों को ही नहीं लेता बल्कि भगवान श्री जगन्नाथ देव भी बीमार होने की लीला करते हैं। आपको जानकर आश्चर्य हुआ होगा लेकिन आपको बता दें की जगन्नाथ स्वामी जो पूरी दुनिया को रोगों से मुक्ति दिलाते हैं, वे स्वयं प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास की स्नान पूर्णिमा के दिन बीमार पड़ जाते हैं।
वे भी अपने भक्तों की तरह बीमार होते हैं और उनका भी इलाज किया जाता है। उनको दवाई के रूप में काढ़ा देते हैं। भगवान जगन्नाथ पूर्णिमा के दिन से 15 दिनों तक आराम करते हैं और अपने भक्तों को दर्शन नहीं देते। इसी कारण से भगवान जगन्नाथ के कपाट इन 15 दिनों तक बंद रहते हैं।
इस दौरान भगवान जगन्नाथ को फलों के रस, औषधि एवं दलिए का भोग लगाया जाता है। जब भगवान जगन्नाथ स्वस्थ हो जाते हैं तो वे अपने भक्तों से मिलने के लिए रथ पर सवार होकर आते हैं। जिसे जगत प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ रथयात्रा कहा जाता है। यह रथयात्रा प्रत्येक वर्ष आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकलती है।
Story of Shri Madhav Das: बीमार होने की लीला भगवान जगन्नाथ स्वामी जी करते ही क्यों हैं ?
उड़ीसा प्रांत में जगन्नाथ पूरी में भगवान श्री जगन्नाथ के एक भक्त माधव दास जी रहते थे। माधव दास जी अकेले रहते थे और भगवान का भजन किया करते थे। प्रतिदिन श्री जगन्नाथ प्रभु के दर्शन करते थे और अपनी मस्ती में मस्त रहते थे। उन्हें संसारिक जीवन से कोई मोहमाया नहीं थी, न वे किसी से कोई लेना-देना रखते थे। प्रभु माधव जी के साथ अनेक लीलाएं किया करते थे और चोरी करना भी सिखाते थे।
एक दिन अचानक माधव दास जी की तबीयत खराब हो गई उन्हें उल्टी-दस्त का रोग हो गया। वह बहुत ही कमज़ोर हो गए कि उठने-बैठने में भी उन्हें समस्या होने लगी। माधव जी अपना कार्य स्वयं करते थे। वे किसी से मदद नहीं लेते थे। जो व्यक्ति उनकी मदद के लिए आता था उनसे कहते थे कि भगवान जगन्नाथ स्वयं उनकी रक्षा करेंगे।
देखते ही देखते माधव जी की तबीयत इतनी खराब हो गई कि वे अपना मल-मूत्र वस्त्रों में त्याग देते थे। तब स्वयं जगन्नाथ स्वामी सेवक के रुप में माधव जी के पास उनकी सेवा करने पहुंचे। माधव जी के गंदे वस्त्र भगवान जगन्नाथ अपने हाथों से साफ करते थे और उन्हें भी स्वच्छ करते थे। उनकी संपूर्ण सेवा करते थे। जितनी सेवा भगवान जगन्नाथ करते थे शायद ही कोई व्यक्ति कर पाता।
जब माधवदास जी स्वस्थ हुए और उन्हें होश आया तब भगवान जगन्नाथ जी को इतनी सेवा करते देख वे तुरंत पहचान गए कि यह मेरे प्रभु ही हैं।
एक दिन श्री माधवदास जी ने प्रभु से पूछा, “ प्रभु ! आप तो त्रिभुवन के मालिक हो, स्वामी हो, आप मेरी सेवा कर रहे हो। आप चाहते तो मेरा ये रोग भी तो दूर कर सकते थे। रोग दूर कर देते तो यह सब करना नहीं पड़ता।
भगवान जगन्नाथ जी ने उन्हें कहा, “ देखो माधव ! मुझ से भक्तों का कष्ट नहीं सहा जाता, इसी कारण तुम्हारी सेवा मैंने स्वयं की। यह ठीक है कि मैं सर्वशक्तिमान होने के नाते, सब कुछ कर सकता हूं किन्तु मैं चाहता हूं कि तुम जल्दी-जल्दी अपना प्रारब्ध भोग कर, जन्म-मृत्यु के चक्कर से छूट कर मेरे पास मेरे नित्य धाम में आ जाओ। ”
स्थानीय विद्वानों के अनुसार भगवान जगन्नाथ जी ने यह भी कहा कि अब तुम्हारे प्रारब्ध में ये 15 दिन का रोग और बचा है इसलिए 15 दिन का रोग तू मुझे दे दे। 15 दिन का वो रोग जगन्नाथ प्रभु ने माधव दास जी से ले लिया और तब से भगवान जगन्नाथ 15 दिन बीमार रहते हैं।
तब से आज तक वर्षों से यह चलता आ रहा है। साल में एक बार जगन्नाथ भगवान को स्नान कराया जाता है, जिसे हम स्नान यात्रा कहते हैं। स्नान यात्रा करने के बाद हर साल 15 दिन के लिए जगन्नाथ भगवान आज भी बीमार पड़ने की लीला करते हैं और 15 दिनों के लिए मंदिर के कपाट बंद होते हैं और इन दिनों में भगवान की रसोई भी बंद कर दी जाती है।
यह है भगवान जगन्नाथ जी की बीमार होने की लीला का रहस्य
श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
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