Edited By Jyoti,Updated: 26 Apr, 2020 10:50 AM
आज का दिन यानि वैसाख मास के शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि का हिंदू धर्म के अधिक महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इस 1 दिन एक साथ कितने धार्मिक त्यौहार पड़ते हैं।
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आज का दिन यानि वैसाख मास के शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि का हिंदू धर्म के अधिक महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इस 1 दिन एक साथ कितने धार्मिक त्यौहार पड़ते हैं। तो वहीं शास्त्रों में इस दिन से जुड़ी विभिन्न मान्यताएं भी मिलती हैं।
अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम आपको अक्षय तृतीया के दिन से जुड़ी लगभग जानकारी दे चुके हैं, अब हम आपको बताएंगे मांतगी जंयती के बारे में। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन पर देवी मातंगी की पूजन का विधान है। मान्यता है कि जो भी इस दिन इनकी पूरे मन से आरधना करता है इसे सर्व-सिद्धियों की प्राप्ति होती है। तो चलिए जानते हैं इनसे जुड़ी पौराणिक कथा और अन्य जानकारी
ग्रंथों के अनुसार देवी मातंगी दसमहाविद्या में से नवीं महाविद्या हैं। ये वाणी और संगीत की अधिष्ठात्री देवी कहलाती हैं। इसके साथ ही इन्हें स्तम्भन की देवी कहा जाता है। माना जाता कि देवी मातंगी दांपत्य जीवन को सुखी और समृद्ध बनाने वाली होती हैं इनका पूजन करने से गृहस्थ के सभी सुख प्राप्त होते हैं। भगवती मातंगी अपने भक्तों को अभय का फल प्रदान करती हैं। यह अभीष्ट सिद्धि प्रदान करती हैं।
ग्रंथों के अनुसार मतंग भगवान शिव का एक नाम है इनकी आदिशक्ति देवी मातंगी हैं। यह श्याम वर्ण और चन्द्रमा को मस्तक पर धारण किए हुए हैं। राक्षसों का नाश करने के लिए माता मातंगी ने विशिष्ट तेजस्वी स्वरूप धारण किया है। मां का यही रूप मातंगी रूप में अवतरित हुआ। देवी मातंगी लाल रंग के वस्त्र धारण करती हैं, सिंह की सवारी करती हैं और लाल पादुका, और लाल ही माला धारण करती है। इन्होंने हाथों में धनुषबाण, शंख, पाश, कतार, छत्र , त्रिशूल, अक्षमाला, शक्ति आदि धारण हैं।
वाग्देवी मातंगी की भुजाएं चार वेद हैं। मां मातंगी वैदिकों की सरस्वती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार देवी मातंगी की पलास और मल्लिका पुष्पों से युक्त बेलपत्रों की पूजा करने से जातक के अंदर आकर्षण और स्तम्भन शक्ति का विकास होता है।
कुछ मान्यताओं के अनुसार देवी मातंगी को उच्छिष्टचांडालिनी या महापिशाचिनी भी कहा जाता है। इनके विभिन्न प्रकार के भेद हैं जैसे उच्छिष्टमातंगी, राजमांतगी, सुमुखी, वैश्यमातंगी, कर्णमातंगी, आदि। ब्रह्मयामल के अनुसार मातंग मुनि ने दीर्घकालीन तपस्या द्वारा देवी को कन्यारूप में प्राप्त किया था। ये भी कहा जाता है कि प्राचीन काल में मातंग ऋषि वन में तपस्या करते थे। क्रूर विनाशकारी शक्तियों के दमन के लिए उस स्थान में त्रिपुरसुंदरी के चक्षु से एक तेज निकल पड़ा तब देवी काली उसी तेज़ के द्वारा श्यामल रूप धारण करके राजमातंगी रूप में प्रकट हुईं थी।