महाराष्ट्र के मोरगांव में विराजमान है मयूरेश्वर, जानिए इसकी खासियत

Edited By Jyoti,Updated: 16 Sep, 2022 12:35 PM

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हमारे देश में न केवल प्राचीन मंदिरों की भरमार है बल्कि यहां कई ऐतिहासिक मंदिरों के साथ-साथ बहुत चमत्कारिक धार्मिक स्थल है। हमेशा की तरह आज हम आपको एक ऐसे ही चमत्कारिक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं।

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हमारे देश में न केवल प्राचीन मंदिरों की भरमार है बल्कि यहां कई ऐतिहासिक मंदिरों के साथ-साथ बहुत चमत्कारिक धार्मिक स्थल है। हमेशा की तरह आज हम आपको एक ऐसे ही चमत्कारिक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। बता दें जिस मंदिर की हम बात कर रहे हैं वो हिंदू धर्म के प्रथम पूज्य देव भगवान गणेश को समर्पित है। महाराष्ट्र में पुणे से 80 किलोमीटर दूर मोरगांव इलाके में मयूरेश्वर गणपति मंदिर स्थित है। मंदिर के चारों कोनों में मीनारें हैं और लंबे पत्थरों की दीवारें हैं। यहां मौजूद चारों दरवाजे चारों युगों- सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग के प्रतीक हैं। इस मंदिर के द्वार पर शिव जी के वाहन नंदी की मूर्ति स्थापित है। इसका मुंह भगवान गणेश की मूर्ति की ओर है। नंदी की मूर्ति के संबंध में यह मान्यता प्रचलित है कि प्राचीन काल में शिव जी और नंदी इस मंदिर क्षेत्र में विश्राम के लिए रुके थे, लेकिन बाद में नंदी ने यहां से जाने के लिए मना कर दिया। तभी से नंदी यहीं पर हैं। नंदी और मूषक (चूहा) दोनों ही मंदिर के रक्षक के रूप में रहते हैं। मंदिर में गणेश जी बैठी मुद्रा में विराजमान हैं और उनकी सूंड बाएं हाथ की ओर है, उनकी 4 भुजाएं और 3 नेत्र हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो प्रारंभ में मूर्ति आकार में छोटी थी, परंतु दशकों से इस पर सिन्दूर लगाने के कारण यह अब इतनी बड़ी दिखती है।
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‘बड़े गणपति’ का मंदिर
दक्षिण भारत के सबसे अद्भुत मंदिरों में गणेश जी का डोडा गणपति मंदिर भी है। डोडा का अर्थ है बड़ा और डोडा गणपति यानी बड़े गणपति। अपने नाम के अनुरूप कर्नाटक में बेंगलूरू के पास बसावनगुड़ी में स्थित इस मंदिर में गणेश जी की 18 फुट ऊंची और 16 फुट चौड़ी प्रतिमा है। खास बात है कि इस प्रतिमा को काले ग्रेनाइट की एक ही चट्टान को तराश कर बनाया गया है। मंदिर और प्रतिमा से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। इसे बेंगलूरू के स्वयं-भू गणपति भी कहा जाता है। इसी मंदिर के पीछे एक नंदी प्रतिमा भी है, जिसे दुनिया की सबसे ऊंची नंदी प्रतिमा के रूप में जाना जाता है। माना जाता है कि गौड़ा शासकों ने इसे लगभग 500 साल पहले बनवाया था। मंदिर के पहले भी यहां स्वयं-भू गणपति की यह विशाल प्रतिमा थी और लोग आस्था के साथ इसका पूजन किया करते थे। यह मंदिर प्राचीन दक्षिण भारतीय वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है। मंदिर के गर्भगृह में विशाल गणपति प्रतिमा स्थापित है। इतिहासकारों की मानें तो इस मंदिर का टीपू सुल्तान की अंग्रेजों के खिलाफ मुहिम से भी संबंध है। टीपू के सेनापति ने इसी मंदिर के परिसर में ब्रिटिश सेना के खिलाफ रणनीति बनाई थी और उन पर हमला किया था।
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