Edited By Jyoti,Updated: 03 Sep, 2022 04:30 PM
जैसे कि सब जानते हैं कि गणेशोत्सव चल रहा है। इस दौरान गणेश जी की पूजा का अधिक महत्व है। इस पावन अवसर पर लोग देशभर में स्थित गणपति बप्पा के विभिन्न मंदिरों में इनके दर्शनों के लिए जाते हैं। तो ऐसे में हम आपको बप्पा के खास मंदिर से ही अवगत
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जैसे कि सब जानते हैं कि गणेशोत्सव चल रहा है। इस दौरान गणेश जी की पूजा का अधिक महत्व है। इस पावन अवसर पर लोग देशभर में स्थित गणपति बप्पा के विभिन्न मंदिरों में इनके दर्शनों के लिए जाते हैं। तो ऐसे में हम आपको बप्पा के खास मंदिर से ही अवगत करवाने जा रहे हैं, जिसकी कोई एक विशेषता नहीं बल्कि कई विशेषताएं हैं। तो चलिए बताते हैं कौन सा है ये मंदिर-
महाराष्ट्र के मोरगांव में करहा नदी के किनारे मयूरेश्वर मंदिर बसा है। मोरगांव का ये मंदिर अष्टविनायक के आठ प्रमुख मंदिरों में से एक है, जहां भगवान गणेश मयूरेश्वर स्वरूप में विराजमान हैं। बताया जाता है 'मोरेश्वर' भगवान गणेश के अष्टविनायक मंदिरों में से एक है। लोक मत के अनुसार कहा जाता है कि यहां पहले गणपति जी के मूर्ति छोटी थी, लेकिन अगर अब देखा जाए तो ये मूर्ति बड़ी दिखाई देती है। शास्त्रों के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने श्रीगणेश के हर युग के अवतार की भविष्यवाणी की थी, मयूरेश्वर भगवान गणेश जी का त्रेतायुग का अवतार है। इस अवतार में भगवान का वाहन मोर था इसलिए इस मूर्ति को मयूरेश्वर के नाम से जाना जाता है।
आपको बता दें इस जगह का नाम मोरगांव इसलिए पड़ा क्योंकि एक समय पर ये क्षेत्र मोर के जैसा आकार लिए हुए था। इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि एक समय पर इस क्षेत्र में बडी संख्या में मोर पाए जाते थे। इसी कारण से ये जगह मोरगांव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।इस मंदिर के चारों कोनों में मीनारें और लंबे पत्थरों की दीवारें हैं। मंदिर के चार द्वार हैं जिन्हें चारों युग, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग का प्रतीक माना जाता है।
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पूर्वी द्वार पर राम और सीता की छवि जो कि धर्म, कर्तव्य की प्रतीक मानी जाती है, दक्षिणी द्वार पर शिव-पार्वती की मूर्ति जो कि धन और प्रसिद्धि की प्रतीक मानी जाती है, पश्चिमी द्वार पर कामदेव-रति जो कि इच्छा, प्यार और ख़ुशी के प्रतीक माने जाते हैं और उत्तरी द्वार पर वराह और देवी माही जो कि मोक्ष और शनि ब्रह्म के प्रतीक के रूप में माने जाते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सभी देवताओं को दैत्यराज सिंधु के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान गणेश ने मयूरेश्वर का अवतार लिया था।। तो वहीं एक पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर के बारें में कहा जाता है कि भगवान शिव और नंदी इस मंदिर क्षेत्र में विश्राम के लिए रुके थे। नंदी को ये स्थान इतना भाया कि उन्होंने यहां से जाने से मना कर दिया और यहीं ठहर गए, तबसे उनकी प्रतिमा यही स्थापित है। शिव के नंदी और गणपति के मूषक, दोनों ही मंदिर के रक्षक के रूप में यहां उपस्थित हैं। मंदिर में गणेशजी बैठी मुद्रा में विराजमान हैं। कहा जाता है कि प्रारंभ में ये मूर्ति आकार में छोटी थी, परंतु दशकों से इस पर सिन्दूर लगाने के कारण यह अब इतनी बड़ी दिखती है। ऐसी भी मान्यता है कि स्वयं ब्रह्मा जी ने इस मूर्ति को दो बार पवित्र किया है जिसने यह अविनाशी हो गई है। ये क्षेत्र भूस्वानंद के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ होता है- "सुख समृद्ध भूमि"। यहां गणेश चतुर्थी को गणेश जी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।