Edited By Jyoti,Updated: 05 Aug, 2020 04:18 PM
अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि पर हुए भूमि पूजन के बाद ये निश्चित हो गया है कि अब कुछ साल का और इंतज़ार होगा और अयोध्या नगरी मेें श्री की जन्मभूमि पर राम मंदिर का निर्माण हो जाएगा।
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अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि पर हुए भूमि पूजन के बाद ये निश्चित हो गया है कि अब कुछ साल का और इंतज़ार होगा और अयोध्या नगरी मेें श्री की जन्मभूमि पर राम मंदिर का निर्माण हो जाएगा। लगभग 500 सालों से हर भरातवासी यहां श्री राम के भव्य मंदिर के निर्माण का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। मंदिर के निर्माण कार्य की शुरूआत आज प्रधानमंत्री मोदी ने भूमि पूजन के दौरान मंदिर की नींव रख कर दी है। न केवल अयोध्या वासी बल्कि हर भारत वासी श्री राम मंदिर में रामलला के दर्शन की इच्छा रखता है। धार्मिक शास्त्रों में श्री राम के बारे में बहुत अच्छे से वर्णन किया गया है, इसमें इनके आदर्शवाद जीवन की सर्वोच्च उदाहरण पढ़ने सुनने को मिलती है। अगर इनके संपूर्ण जीवन पर दृष्टि डाली जाए तो इनका पूरा जीवन व्यक्तित्व मर्यादा मे रहकर तथा कर्तव्यों को प्राथमिकता देता है। यही कारण है इन्हें हमेशा मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम कहा जाता है।
ये सभी बातों को बताने का मुख्. कारण ये है कि ये सभी बातें इस बात की ओर इशारा करती हैं कि श्री राम हमेशा धैर्य के साथ काम लेते थे। इन्होंने अपने जीवन में हर महत्वपूर्ण काम को अपने धैर्य के साथ ही संपन्न किया है। परंतु आपको बता दें एक बार इन्हें भी क्रोध आया था, बल्कि इतना अधिक आया था कि उन्होंने समुद्र को एक ही बाण के साथ नष्ट करने के लिए अपना अग्नि बाण तक निकाल लिया है। बता दें इस बारे में धार्मिक शास्त्रो में एक बहुत ही रोचक कथा पढ़ने को मिलती है, जिसमें रामचरित मानस की कुछ पंक्तियां भी वर्णित हैं। चलिए जानते हैं-
रामचरित मानस के माध्यम से तुलसीदास जी ने प्रभु श्रीराम के जीवन से उनके आदर्शों को सीखने का संदेश दिया है। कथाओं के अनुसार लंका चढ़ाई के समय श्रीराम ने बहुत ही आदरपूर्वक तथा विनयपूर्वक समुद्र से मार्ग देने की गुहार लगाई।
लगातार तीन दिन श्री राम समुद्र से आग्रह करते रहे, किंतु समुद्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। तब भगवान राम समझ गए कि अब उन्हें अपनी शक्ति से उसमें भय उत्पन्न करना ज़रूरी है। कथाओं के अनुसार श्री राम के भाई लक्ष्मण तो पहले से ही समुद्र से आग्रह करने के पक्ष में ही नहीं थे, क्योंकि वे श्रीराम के बाण की अमोघ शक्ति से भली-भांति परिचित थे, वे चाहते थे कि उनका बाण समुद्र को सुखा दे और सेना सुविधा से उस पार शत्रु के गढ़ लंका में पहुंच जाए।
श्री रामचरित मानस में तुलसी दास जी ने समुद्र को जड़ बताते हुए इस प्रकार लिखा है -
विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति।।
अर्थात- भगवान श्री राम समझ चुके थे कि अब आग्रह करने से काम नहीं चलेगा, बल्कि भय पैदा करने पर ही का बनेगा। जिसके बाद प्रभु श्रीराम ने अपने महा-अग्निपुंज-शर का संधान किया, जिससे समुद्र के भीतर ऐसी आग लग गई कि उसमें वास करने वाले जीव-जन्तु जलने लगे।
जिसके बाद समुद्र देवता स्वयं प्रभु श्रीराम के समक्ष प्रकट होकर तथा हाथ में अनेक बहुमूल्य रत्नों का उपहार ले अपनी रक्षा के लिए याचना करने लगे और श्री राम से कहने लगे कि वह पंच महाभूतों में एक होने के कारण जड़ है।
अतः श्रीराम ने शस्त्र उठाकर समुद्र देवता को उचित सीख दी।
रामायण की कथा से तथा तुलसीदास जी द्वारा इस पंक्ति को पढ़ने के बाद ये सीख मिलत है कि अगर आग्रह से काम न बनें, तो फिर भय से काम निकालना चाहिए।