Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Sep, 2024 08:27 AM
जालंधर शहर में भादों के महीने में शुक्ल पक्ष के 14वें दिन हर साल बाबा सोढल मेला आयोजित किया जाता है। पंजाब के मेलों की सूची में इनका प्रमुख स्थान है। मेला बाबा सोढल की महान आत्मा
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Baba Sodal Mela: जालंधर शहर में भादों के महीने में शुक्ल पक्ष के 14वें दिन हर साल बाबा सोढल मेला आयोजित किया जाता है। पंजाब के मेलों की सूची में इनका प्रमुख स्थान है। मेला बाबा सोढल की महान आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए आयोजित किया जाता है। देशभर से लाखों श्रद्धालु इस मेले में सोढल बाबा के दर्शन करने आते हैं। सोढल मंदिर में प्रसिद्ध ऐतिहासिक सोढल सरोवर है जहां सोढल बाबा की विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है। श्रद्धालु इस पवित्र सरोवर के जल से अपने ऊपर छिड़काव करते हैं और चरणामृत की तरह पीते हैं। इस दिन देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा सोढल के दर्शन करने आते हैं। मेले से 2-3 दिन पहले शुरू होने वाली भक्तों की भीड़ मेले के बाद भी 2-3 दिन तक लगातार बरकरार रहती है।
परंपरा अनुसार कैसे होता है पूजन
बाबा सोढल का जन्म जालंधर शहर में चड्ढा परिवार में हुआ था। सोढल बाबा के साथ कई कहानियां जुड़ी हुई हैं। कहते हैं कि जब सोढल बाबा बहुत छोटे थे, वह अपनी माता के साथ एक तालाब पर गए। माता कपड़े धोने में व्यस्त थीं और बाबा जी पास ही में खेल रहे थे। तालाब के नजदीक आने को लेकर माता ने बाबा को कई बार टोका और नाराज भी हुईं। बाबा जी के न मानने पर माता ने गुस्से में उन्हें कोसा और कहा जा गर्क जा। इस गुस्से के पीछे माता का प्यार छिपा था। बाबा सोढल ने माता के कहे अनुसार तालाब में छलांग लगा दी। माता के अपने पुत्र द्वारा तालाब में छलांग लगाने पर विलाप शुरू कर दिया। थोड़ी देर बाद बाबा जी पवित्र नाग देवता के रूप में प्रकट हुए।
उन्होंने चड्ढा और आनंद बिरादरी के परिवारों को उनके पुनर्जन्म को स्वीकार करते हुए मट्ठी जिसे टोपा कहा जाता है चढ़ाने का निर्देश दिया। इस टोपे का सेवन केवल चड्ढा और आनंद परिवार के सदस्य ही कर सकते हैं। इस प्रसाद का सेवन परिवार में जन्मी बेटी तो कर सकती है मगर दामाद व उसके बच्चों के लिए यह वर्जित है।
सोढल मेले वाले दिन श्रद्धालु पवित्र तालाब से अपने प्रत्येक पुत्र के नाम की मिट्टी 14 बार निकालते हैं। श्रद्धालु अपने-अपने घरों में पवित्र खेत्री बीजते हैं, जो हर परिवार की खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है। मेले वाले दिन इसे बाबा जी के श्रीचरणों में अर्पित करके माथा टेकते हैं।