अध्यात्म के साथ-साथ पर्यटन के लिए भी बहुत कुछ है यहां...

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 Mar, 2021 10:00 PM

shri tuljabhavani mandir

तुलजापुर महाराष्ट्र के ऐतिहासिक स्थल का हिस्सा होने के कारण यहां कोई अद्भुत प्राचीन संरचनाओं व स्मारकों को देखा जा सकता है। यहां छत्रपति शिवाजी महाराज की कुलदेवी मां तुलजा भवानी विराजमान हैं।

Shri Tuljabhavani Mandir: तुलजापुर महाराष्ट्र के ऐतिहासिक स्थल का हिस्सा होने के कारण यहां कोई अद्भुत प्राचीन संरचनाओं व स्मारकों को देखा जा सकता है। यहां छत्रपति शिवाजी महाराज की कुलदेवी मां तुलजा भवानी विराजमान हैं। जो आज भी महाराष्ट्र व अन्य राज्यों के कई निवासियों की कुलदेवी के रूप में प्रचलित हैं। तुलजापुर महाराष्ट्र के धाराशिव जिले में स्थित एक खूबसूरत और राज्य का लोकप्रिय नगर है, जो अपने प्राचीन मंदिरों और अन्य संरचनाओं के लिए जाना जाता है।

PunjabKesari Shri Tuljabhavani Mandir
तुलजा भवानी महाराष्ट्र तथा भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि शिवाजी को खुद देवी मां ने तलवार प्रदान की थी। अभी यह तलवार लंदन के संग्रहालय में रखी हुई है। यह मंदिर महाराष्ट्र के प्राचीन दंडकारण्य वनक्षेत्र में स्थित यमुनांचल पर्वत पर स्थित है। ऐसी जनश्रुति है कि इसमें स्थित तुलजा भवानी माता की मूर्ति स्वयंभू है। इस मूर्ति की एक और खास बात है कि यह मंदिर में स्थायी रूप से स्थापित न होकर ‘चलायमान’ है। साल में तीन बार इस प्रतिमा के साथ प्रभु महादेव, श्रीयंत्र तथा खंडरदेव की भी प्रदक्षिणापथ पर परिक्रमा करवाई जाती है। आप यहां सदियों पुराने मंदिरों से लेकर किले और गुफाएं भी देख सकते हैं। इतिहास में दिलचस्पी रखने वालों के लिए तुलजापुर एक आदर्श स्थल है। भ्रमण की शुरूआत आप यहां के सबसे मुख्य आकर्षण देवी तुलजा भवानी मंदिर के दर्शन से कर सकते हैं।

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तुलजा देवी के नाम पर इस नगर का नाम तुलजापुर रखा गया था। यह एक प्राचीन मंदिर है जो देवी तुलजा भवानी को समर्पित है। माना जाता है कि यह प्राचीन मंदिर 12वीं शताब्दी के दौरान बनाया गया था। देवी की मूर्ति मंदिर के गर्भगृह में स्थापित है। मां तुलजा के आठ हाथों में आठ विभिन्न प्रकार के हथियार हैं, जिसमें से एक हाथ में महिषासुर नाम के राक्षस वाला सिर है। माना जाता है कि तुलजा भवानी का जन्म महिषासुर का वध करने के लिए हुआ था। इस मंदिर का स्थापत्य मूल रूप से हेमांडपंथी शैली से प्रभावित है।

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इसमें प्रवेश करते ही दो विशालकाय महाद्वार नजर आते हैं। इनके बाद सबसे पहले कलोल तीर्थ स्थित है जिसमें 108 तीर्थों के पवित्र जल का सम्मिश्रण है। इसमें उतरने के पश्चात थोड़ी ही दूरी पर गोमुख तीर्थ स्थित है जहां जल तीव्र प्रवाह के साथ बहता है। तत्पश्चात सिद्धिविनायक भगवान का मंदिर स्थापित है। तत्पश्चात एक सुसज्जित द्वार में प्रवेश करने के पश्चात मुख्य कक्ष (गर्भ गृह) में माता की स्वयंभू प्रतिमा स्थापित है। गर्भगृह के पास ही एक चांदी का पलंग स्थित है, जो माता की निद्रा के लिए है। इस पलंग के उलटी तरफ शिवलिंग स्थापित हैं, जिसे दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि मां भवानी और शिव शंकर आमने-सामने बैठे हैं।

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यहां स्थित चांदी के छल्ले वाले स्तम्भों के विषय में माना जाता है कि यदि आपके शरीर के किसी भी भाग में दर्द है तो सात दिन लगातार इस छल्ले को छूने से वह दर्द समाप्त हो जाता है। इस मंदिर से जुड़ी एक जनश्रुति यह भी है कि यहां पर एक ऐसा चमत्कारित पत्थर विद्यमान है, जिसके विषय में माना जाता है कि यह आपके सभी प्रश्रों का उत्तर सांकेतिक रूप में ‘हां’ या ‘नहीं’ में देता है। यदि आपके प्रश्र का उत्तर ‘हां’ है तो यह अपने आप दाहिनी ओर मुड़ जाता है। अगर उत्तर ‘नहीं’ है तो यह बाईं दिशा में मुड़ जाता है। माना जाता है कि छत्रपति शिवाजी किसी भी युद्ध से पहले चिंतामणि नामक इस पत्थर के पास अपने प्रश्नों के समाधान के लिए आते थे।

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Story of Tulja Bhavani तुलजा भवानी की कथा
कृतयुग में करदम नामक एक ब्राह्मण साधु थे, जिनकी अनुभूति नामत अत्यंत सुंदर व सुशील पत्नी थी। जब करदम की मृत्यु हुई तब अनुभूति ने सती होने का प्रण किया पर गर्भवती होने के कारण उन्हें यह विचार त्यागना पड़ा तथा मदांकिनी नदी के किनारे तपस्या प्रारंभ कर दी। इस दौरान कूकर नामक राजा अनुभूति को ध्यान मग्न देखकर उनकी सुंदरता पर आसक्त हो गया तथा अनुभूति के शीलहरण का प्रयास किया। इस दौरान अनुभूति ने माता से याचना की और मां अवतरित हुई।

Ghat Shila Temple घाट शिला मंदिर
तुलजा भवानी मंदिर के साथ-साथ आप यहां के अन्य प्रसिद्ध घाट मंदिर के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं। यह मंदिर भगवान राम को समर्पित है। माना जाता है कि पत्नी सीता की खोज में भगवान राम और भाई लक्ष्मण यहां से गुजरे थे तथा देवी तुलजा ने श्रीराम को सीता की खोज के लिए आगे का रास्ता दिखाया था।

Dharshiva Jain Cave धाराशिव जैन गुफा
मंदिर के अलावा आप यहां धाराशिव जैन गुफाओं को देखने के लिए आ सकते हैं। यह सात प्राचीन गुफाओं का समूह है, जिनका निर्माण 5वीं से 7वीं शताब्दी के मध्य बौद्ध और जैन भिक्षुओं ने करवाया था। ये गुफाएं आध्यात्मिकता का एक बड़ा केंद्र हुआ करती थीं।

Naldurg Fort नलदुर्ग किला
तुलजा भ्रमण के दौरान आप नलदुर्ग फोर्ट की सैर का प्लान बना सकते हैं। यह एक प्रचीन किला है जिसका निर्माण नलराजा ने मध्यकालीन वास्तुकला शैली में करवाया था। यह अपने समय का एक अद्भुत किला है जो वर्तमान में मात्र खंडहर रूप में मौजूद है। किले की मजबूत दीवारों को आज भी देखा जा सकता है। यह किला तुलजा भवानी मंदिर से लगभग 35 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इतिहास की बेहतर समझ के लिए आप यहां आ सकते हैं। यह किला इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है।

अन्य मंदिर : यहां के अन्य प्रमुख मंदिरों में खंडोबा तथा श्री दत्त मंदिर शामिल हैं।

ऐसे पहुंचें: तुलजापुर तक आने के लिए सभी प्रकार के यातायात के साधन उपलब्ध हैं।

सड़क मार्ग : दक्षिण से आने वाले यात्री नालदुर्ग तक आसानी से सड़क मार्ग द्वारा आ सकते हैं। उत्तरी व पश्चिमी राज्यों से आने वाले तीर्थयात्री सोलापुर के रास्ते तुलजापुर तक आ सकते हैं। पूर्वी राज्यों से आने वाले यात्री नागपुर या लातूर के रास्ते यहां आ सकते हैं।

रेलमार्ग : तीर्थयात्री सोलापुर तक रेल से आ सकते हैं जो तुलजापुर से केवल 44 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।

वायुमार्ग : तुलजापुर तक आने के लिए यहां से सबसे करीबी हवाई अड्डे पुणे व हैदराबाद हैं जहां से बस या निजी वाहन द्वारा इस स्थान तक पहुंचा जा सकता है।

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