Shri Vajreshwari Devi Temple Kangra: 1 धाम में विराजित हैं 3 देवियां, यहां पर गिरा था मां का बांया वक्ष

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 Nov, 2024 08:19 AM

shri vajreshwari devi temple kangra

Shaktipeeth Shri Vajreshwari Devi Temple Kangra: देश के प्रतिष्ठित शक्तिपीठों में से एक है मां ब्रजेश्वरी, हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के कांगड़ा शहर में बना यह मंदिर जिला मुख्यालय धर्मशाला से लगभग लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है लोग...

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Shaktipeeth Shri Vajreshwari Devi Temple Kangra: देश के प्रतिष्ठित शक्तिपीठों में से एक है मां ब्रजेश्वरी, हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के कांगड़ा शहर में बना यह मंदिर जिला मुख्यालय धर्मशाला से लगभग लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है लोग देश-विदेश से इस मन्दिर का रुख करते हैं। भगवती के 52 शक्तिपीठों में से एक है नगरकोट धाम यहां पर गिरा था मां का बांया वक्ष इसलिए इस देवी का नाम पड़ा मां ब्रजेश्वरी। इस धाम में मां ब्रजेश्वरी के साथ होते हैं मां भद्रकाली व एकादशी के दर्शन। इस शक्तिपीठ को कांगड़ा देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

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जय माता जी के उद्घोष यूं तो यहां पूरे वर्ष गुंजायमान होते हैं परंतु नवरात्रों के पावन पर्व पर इस शक्तिपीठ की शोभा निराली ही होती है। इस शक्तिपीठ से जुड़ी प्रगाढ़ आस्था के वशीभूत होकर श्रद्धालु दूर-दूर से नंगे पांव पैदल यात्रा कर, नतमस्तक होकर, ढोल नगाड़े लेकर जय माता जी का उदघोष करते हुए मां के दर्शन तथा आशीर्वाद पाने के लिए पूरी श्रद्धा के साथ उमड़ पड़ते हैं। वर्ष में पड़ने वाले चार नवरात्रे चैत्र, शरद, गुप्त और श्रावण अष्टमी के अवसर पर मां के दर्शन और पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व होता है।         

एक पौराणिक कथा कहती है कि पूर्व काल में मुनियों ने एकत्र होकर यज्ञ रचाया। जिसमें ब्रह्म, विष्णु और शिव अपने परिवार सहित शामिल हुए वहीं इस मौके पर देवता व समस्त ऋषि-मुनि वहां अपने विचार प्रकट कर रहे थे की प्रजापतियों के स्वामी दक्ष वहां आ पहुंचे। उन्होंने ब्रह्म जी को प्रणाम कर आसन ग्रहण किया। 

सभी ऋषियों-मुनियों ने दक्ष का पूजन किया लेकिन शिव अपने स्थान पर बैठे रहे। उन्होंने अपने ससुर को प्रणाम तक नहीं किया। दक्ष इसे अपना अपमान समझ कर क्रोधित होकर अपने दामाद शिव को भला-बुरा कहने लगे व समस्त सभा को संबोधित करते हुए बोले, मैं इसे यज्ञ से बहिष्कृत करता हूं व अब यह देवताओं के साथ यज्ञ में भाग नहीं ले सकेगा।

यह सुन कर नन्दीश्वर गुस्सा हो गए व उन्होंने दक्ष को शाप दे दिया जिसे शिव ने वापिस ले लिया और नन्दीश्वर को शांत किया। भगवान शिव व दक्ष का आपसी विरोध दिन-प्रतिदिन बढ़ता गया। फिर एक दिन दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमें इर्ष्या के चलते शिव और उसके भक्तों को नहीं बुलाया। जिसमें ब्रह्म, विष्णु सहित सभी देवताओं ने भाग लिया लेकिन शिव को नहीं बुलाने के पीछे दक्ष ने अलग-अलग तर्क दिए व उन्हें भूतों का राजा कहा।

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उसी समय दधिची वहां आए और शिव को वहां न देख सब से कारण पूछा तो दक्ष ने कहा की न तो मैंने बेटी को बुलाया है न ही शिव को यह तो ब्रह्म जी के कहने पर मैंने अपनी बेटी उसको दे दी नहीं तो उस भूतों-प्रेतों के स्वामी को कौन पूछता है ?

दधिची वहां से यह सब सुन चले गए लेकिन जो होना होता है हो कर रहता है इतने में वहां सती आ गई। अपने पति को न देख आग बबूला हो गई। उसका गुस्सा देख दक्ष ने उसे भी वहां से जाने को कह दिया। भगवान शिव के बारे में खरी-खोटी सुन सती वहां से गई नहीं और उत्तर दिशा की और मुख करके शिव का ध्यान करके अपना शरीर भस्म कर डाला।

सब भयभीत हो गए शंकर जी की समाधी खुल गई। शिव जी ने अपनी एक जटा धरती पर मार कर महाकाली व वीरभद्र महाकाल उत्पन्न कर दक्ष का वध करने का हुक्म दिया। उन्होंने दक्ष का वध कर यज्ञ को नष्ट कर दिया व भोलेनाथ वहां से सती का जला हुआ शरीर लेकर चले तो तीनों लोकों में हाहाकार मच गया तब शिव का गुस्सा शांत करने का जिम्मा श्रीविष्णु को सौंपा गया। श्रीविष्णु ने अपने चक्र से सती के अंगों को काट-काट कर धरती को हा-हा कार से बचाया। सती के अंग जहां-जहां गिरे वो स्थान 52 शक्तिपीठ बने सती का बांया वक्ष गिरा था कांगड़ा शहर में और यहां प्रकट हुई थी मां ब्रजेश्वरी।

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