Edited By Jyoti,Updated: 04 Sep, 2022 11:58 AM
“राजस्थान” भारत देश का सबसे बड़ा राज्य है जो अपने किलों, विरासतों अथवा पवित्र तीर्थों की वजह से देश के अतिरिक्त विदेशों में भी प्रख्यात है। आज हम आपको इस प्रख्यात राज्य के
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“राजस्थान” भारत देश का सबसे बड़ा राज्य है जो अपने किलों, विरासतों अथवा पवित्र तीर्थों की वजह से देश के अतिरिक्त विदेशों में भी प्रख्यात है। आज हम आपको इस प्रख्यात राज्य के एक ऐसी मंदिर में बारे में बताने जा रहे हैं, जो न केवल राजस्थान के लोगों के लिए बल्कि अन्य राज्यों, देश व विदेश के लोगों के लिए भी आस्था का केंद्र है।
बता दें हम बात कर रहे हैं अरावली के पास स्थित बनास नदी के किनारे नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथजी मंदिर की, जिसे भारत देश के प्रमुख मंदिर तीर्थस्थल में गिना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्रीनाथजी मंदिर में श्री कृष्ण अपने बाल अवतार में विराजित हैं। मंदिर उदयपुर से केवल 45 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर को देश-विदेश में प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप में जाना जाता है। तो आइए जानते हैं मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें-
मंदिर से जुड़ी धार्मिक मान्यताओं व किंवदंतियों के अनुसार ये उस समय की बात है जब मुगल शासक औंरगजेब मूर्ति पूजा के विरूध हुआ करता। उसने अपने शासनकाल में समस्त मंदिरों को तुड़वाने का आदेश जारी किया था। इस कड़ी में जब वह श्रीनाथ मंदिर पहुंचा तो उसे मंदिर तो मिला परंतु मंदिर में स्थापित कोई मूर्ति नहीं। दरअसल कथाओं के अनुसार औंरगजेब द्वारा जब इस मंदिर की तोड़-फोड़ का कार्य शुरू हुआ तो मंदिर के पुजारी दामोदर जी ने श्री नाथ जी को औरंगजेब के सैनिकों के हाथ लगने से पहले मंदिर के बाहर निकाल लिया और वो मूर्ति लेकर चले गए। बता दें दामोदर दास जी वल्लभ संप्रदाय के थे और वल्लभाचार्य के वंशज थे।
इसके बाद वो श्रीनाथ जी की मूर्ति को बैलगाड़ी में रखकर राजाओं के चक्कर लगाने लगे और उनके आगे मंदिर बनवाने का आग्रह करने लगे। लेकिन औरंगजेब के डर की वजह से किसी ने भी उनके प्रस्ताव को स्वीकारा नहीं। अंत में दामोदर दास बैरागी ने मेवाड़ के राजा राणा राजसिंह के पास संदेश भिजवाया, जिन्होंने दामोदर जी के आग्रह को स्वीकार कर लिया। इसका एक कारण राणा राजसिंह और औरंगजेब की दुश्मनी थी।
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इससे जुड़ी किंवदंती के अनुसार किशनगढ़ की राजकुमारी चारुमति से विवाह करने के लिए औरंगबेज ने प्रस्ताव भेजा तो वह प्रस्ताव सुन चारुमति ने इनकार कर दिया। जब राणा राजसिंह को इस बारे में पता चला तो उन्होंने शीघ्र राजकुमारी से विवाह कर लिया। जिस कारण राणा राजसिंह और औरंगबेज एक-दूसरे के शत्रु बन गए। इतना ही नहीं उन्हें युद्ध के लिए चुनौती भी दी थी।
श्रीनाथ जी की मूर्ति के चलते एक बार फिर राणा राजसिंह को औरंगजेब को ललकारने का मौका मिला जिसका उन्होंने बाखूबी फायदा उठाया। राणा राजसिंह ने औरंगबेज को सरेआम चुनौती दी और कहा कि उनके होते हुए श्रीनाथजी की मुर्ति को कोई छू भी नहीं सकता और मंदिर तक पहुंचने से पहले औरंगजेब को एक लाख राजपूतों से निपटना होगा।
बताया जाता है कि उस वक्त श्रीनाथ जी की मूर्ति बैलगाड़ी में जोधपुर के निकट चौपासनी गांव में थी और चौपासनी गांव में कई महीने तक बैलगाड़ी में ही श्रीनाथजी की मूर्ति की उपासना की गई थी। ऐसा माना जाता है जिस स्थान पर उस बैलगाड़ी को खड़ा कर रखा था उसी स्थान पर श्रीनाथजी का यह मंदिर बनवाया गया।
तो वहीं कोटा से करीब 10 किमी दूर श्री नाथ जी के चरण चिन्ह आज भी उस स्थान पर मौजूद हैं, जिसे वर्तमान समय में चरण चौकी के नाम से जाना जाता है।
बताया जाता है इसके बाद मूर्ति को चौपासनी से सिहाड़ लाया गया। दिसंबर 1671 को सिहाड़ गांव में श्रीनाथ जी की मूर्ति का स्वागत करने के लिए राणा राजसिंह खुद गांव में आए थे। बता दें ये सिहाड़ गांव उदयपुर से 30 मील एवं जोधपुर से लगभग 140 मील की दूरी पर है जिसे नाथद्वारा के नाम से जाना जाता है। फरवरी 1672 को मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ और श्री नाथ जी की मूर्ति मंदिर में स्थापित की गई, तब से लेकर वर्तमान तक श्रीनाथ जी भक्तों की आस्था का केंद्र माने जाते हैं।