Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Jun, 2023 07:49 AM
एक देश में दो विधान, दो निशान, दो प्रधान नहीं चलेंगे’ का नारा देने वाले, राष्ट्रीय एकता व अखंडता के पर्याय, भारतीय जनसंघ के संस्थापक, महान शिक्षाविद् एवं प्रखर
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Shyama Prasad Mukherjee Death Anniversary: ‘एक देश में दो विधान, दो निशान, दो प्रधान नहीं चलेंगे’ का नारा देने वाले, राष्ट्रीय एकता व अखंडता के पर्याय, भारतीय जनसंघ के संस्थापक, महान शिक्षाविद् एवं प्रखर राष्ट्रवादी डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को कलकता के अत्यन्त प्रतिष्ठित परिवार में शिक्षाविद् सर आशुतोष मुखर्जी के घर माता जोगमाया की कोख से हुआ। डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी 1926 में इंगलैंड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे और 33 वर्ष की अल्पायु में 8 अगस्त, 1934 को कलकता विश्वविद्यालय के सबसे कम आयु के कुलपति बन गए।
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वह कहते थे कि सांस्कृतिक दृष्टि से सब एक हैं जबकि धर्म के आधार पर विभाजन के वह कट्टर विरोधी थे। उनकी धारणा थी कि हममें कोई अन्तर नहीं है। हम सब एक ही रक्त के हैं, एक भाषा, एक संस्कृति और एक ही हमारी विरासत है। गांधी जी और सरदार पटेल के अनुरोध पर वह आजाद भारत के पहले मंत्रिमंडल में एक गैर-कांग्रेसी उद्योग मंत्री के रूप में शामिल हुए, परन्तु राष्ट्रवादी चिन्तन के चलते अन्य नेताओं से मतभेद बराबर बने रहे। फलत: राष्ट्रीय हितों को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानने के कारण उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया।
इसके बाद डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने आर.एस.एस. प्रमुख श्री गोलवलकर (गुरुजी) से परामर्श करने के बाद 21 अक्तूबर, 1951 को ‘भारतीय जनसंघ’ नामक राजनीतिक पार्टी का गठन किया और स्वयं इसके संस्थापक-अध्यक्ष बने। स्वतंत्र भारत के 1952 में हुए पहले संसदीय चुनाव में डा. मुखर्जी सहित 3 सांसद भारतीय जनसंघ के चुन कर आए। वह जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान था। वहां का मुख्यमन्त्री ‘वजीर-ए-आजम’ (प्रधानमंत्री) कहलाता था। जम्मू-कश्मीर में जाने के लिए परमिट लेना पड़ता था। संसद में अपने भाषण में डा. मुखर्जी ने धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की।
अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने संकल्प किया था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा। अपना संकल्प पूरा करने के लिए वह 8 मई, 1953 को बिना परमिट लिए जम्मू-कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहां पहुंचते ही 11 मई को उन्हें गिरफ्तार कर नजरबन्द कर लिया गया। 40 दिन नजरबंद रहने के बाद 23 जून 1953 को सुबह 3.40 बजे जेल के अस्पताल में रहस्यमयी हालात में इनकी मृत्यु हो गई।
मोदी सरकार ने अपनी दूसरी पारी में 5 अगस्त, 2019 को धारा-370 को समाप्त कर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी, जिससे जम्मू-कश्मीर में अलग झंडे की व्यवस्था खत्म हो गई और वह देश का अभिन्न अंग बन गया। 1969 में इनकी याद में दिल्ली में ‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी कॉलेज’ स्थापित किया गया था। इनके नाम पर दिल्ली के एक नगर का नाम ‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी नगर’ भी रखा गया। देश के अन्य शहरों में भी इनके नाम पर स्थल हैं।