Edited By Jyoti,Updated: 18 May, 2019 02:05 PM

अगर हम शांत होकर विचार करें तो हमें अपनी मानवीय उपस्थिति पर अनेक आश्चर्य होते हैं। हम सोचते हैं कि हमारे पास कितना मूल्यवान जीवन है। हमें लगता है कि इस अमूल्य जीवन की नियति क्या है या क्या हो सकती है।
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अगर हम शांत होकर विचार करें तो हमें अपनी मानवीय उपस्थिति पर अनेक आश्चर्य होते हैं। हम सोचते हैं कि हमारे पास कितना मूल्यवान जीवन है। हमें लगता है कि इस अमूल्य जीवन की नियति क्या है या क्या हो सकती है। जब हम अपने मानवीय जीवन और उसकी नियति के बारे में सोचने लगते हैं तो हमारे लिए यह असीमित सकारात्मकता और आशावादिता का वातावरण बनाता है। इससे हमारा जीवन ब्रह्मांड के उस नियम से बंधकर,जो हमारे मानवीय जीवन के लिए नियत तथा निर्धारित है,समुचित कर्मयोग में रम जाता है। यह कर्मयोग सार्थक होता है जिसमें कोई मानवजनित विकार नहीं होता।

वास्तव में कर्मयोग ही वह ब्रह्म माध्यम है जिसके बल पर हम अपनी जीवात्मा से जुड़ पाते हैं। स्वयं से यह जीवात्मक जुड़ाव हमारे आत्मज्ञान को जागृत करता है। इसके बाद हम न केवल अपने वर्तमान जीवन के उद्देश्यों बल्कि जीवन के बाद की अपनी गति का पूर्वाभास प्राप्त कर सकते हैं।
शांत-प्रशांत चित से होने वाले चिंतन में लीन व्यक्ति और उसे देखने वाले व्यक्तियों के चारों ओर मानवीयता का एक श्रेष्ठ वातावरण बनता है जो मनुष्यों को सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। वास्तव में मानव जीवन में प्रत्येक व्यक्ति का ब्रह्म रूपांतरण ऐसे ही होता है। ऐसे रूपांतरित होते रहना मनुष्य का आध्यात्मिक दायित्व भी होना चाहिए। इसी मूल नियति से बंध कर, कर्मयोग से जुड़कर हम अपने जीवन को हर रूप में साकार कर सकते हैं।

जीवन में इस तरह रमे रहकर हम अंत में स्वयं के लिए जीवन-मरण के बंधन से मुक्त होने का एक महान मार्ग भी तैयार करते हैं। इस मार्ग पर चलते हुए परमात्मा में लीन होने का अवसर मिलता है। यदि भौतिक जीवन में विचरण करने और सुख-संसाधन, अधिकार, धन-वैभव, मान-सम्मान प्राप्त करने या न करने के संबंध में मानव की नियति पूर्व निर्धारित है तथा इसमें परिवर्तन संभव नहीं तो भी अपना आध्यात्मिक रूपांतरण करके मानव इस नियति से मुक्त हो सकता है। इस अंतज्र्ञान से वह अपना जीता-जागता जीवन ही नहीं, जीवन के बाद की स्थिति भी संवार सकता है।