Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Jul, 2022 10:25 AM
देवभूमि हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में बैजनाथ स्थित प्राचीनतम शिव मंदिर के अंदर 2 शिलालेखों से 12वीं और 13वीं शताब्दी के इतिहास का पता चलता है कि कांगड़ा के राजा जयचंद-1 ने लंबागांव के
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Sita Ram Mandir Bijapur Himachal Pradesh: देवभूमि हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में बैजनाथ स्थित प्राचीनतम शिव मंदिर के अंदर 2 शिलालेखों से 12वीं और 13वीं शताब्दी के इतिहास का पता चलता है कि कांगड़ा के राजा जयचंद-1 ने लंबागांव के निकट जयसिंहपुर नगर की स्थापना की थी। हिमाचल में जयसिंहपुर नामक कस्बा जिला कांगड़ा की दक्षिणी सीमा पर जिला मुख्यालय धर्मशाला से 82 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां से ब्यास नदी का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है।
जयसिंहपुर के सुआ गांव से 3 किलोमीटर दूर बाबा भौड़ी सिद्ध मंदिर और आशापुरी मंदिर में भी लोग अपनी मनोकामनाएं मांगने जाते हैं।
जहां तक जयसिंहपुर के बीजापुर गांव में सीताराम जी मंदिर के इतिहास का सवाल है तो बताया जाता है कि बीजापुर गांव राजा विजय चंद ने लगभग 1660 ईस्वी में बसाया तथा सीताराम जी मंदिर का निर्माण सन् 1690 में करवाया।
मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो चुका तो राजा विजय चंद ने मूर्ति स्थापना के बारे में सोच-विचार किया कि मूर्तियां कहां से लाकर स्थापित की जाएं।
तब उन्हें स्वप्न हुआ कि हारसीपत्तन के गांव काथला बेईं के नजदीक ब्यास नदी की गहराई में सीता, राम और लक्ष्मण की मूर्तियां एक काले रंग की शिला पर अंकित हैं जिन्हें तराशकर मंदिर में लाकर स्थापित किया जाए। जब मूर्तियां तैयार हो गईं तो राजा ने उन्हें लाने के लिए अपने आदमी भेजे परंतु वे मूर्तियां उठा नहीं सके। राजा को पुन: स्वप्न हुआ कि मूर्तियां लाने राजा खुद जाएं।
अगले दिन राजा अपने दरबारियों और लाव-लश्कर के साथ स्वयं वहां गए और बाजे-गाजे के साथ मूर्तियों को लाकर मंदिर में स्थापना करवाई।
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स्थापना करवाने के बाद मंत्रोच्चारण द्वारा मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई तब भी राजा को विश्वास नहीं हुआ कि मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है। इस पर वह मंदिर में मूर्तियों के सामने हठपूर्वक बैठ गए और भगवान से प्रार्थना करने लगे कि मुझे विश्वास दिलाया जाए कि इन मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है।
रात को राजा को स्वप्न हुआ कि आप भगवान की छाती पर हाथ रख कर उनमें प्राणों का अहसास कर सकते हैं।
सुबह उठकर राजा स्नान, पूजा पाठ इत्यादि करने के बाद सीता राम मंदिर में भगवान राम के सामने पहुंचे और स्वप्न के अनुसार भगवान श्री राम जी की छाती पर हाथ रखा तो राजा को अहसास हुआ कि भगवान श्री राम जी की मूर्ति ने दो बार श्वास लिया है।
मंदिर के प्रांगण में भगवान हनुमान जी की एक अद्भुत मूर्ति स्थापित है। ऐतिहासिक कथाओं के अनुसार जब भारत वर्ष के प्राचीन मंदिरों पर मुगलों के आक्रमण हो रहे थे उस समय सीता राम मंदिर बीजापुर में भी मुगलों द्वारा आक्रमण किया गया जिसमें मुगल सैनिकों द्वारा हनुमान जी की मूर्ति के हाथ काट दिए गए।
जैसे ही प्रभु प्रतिमा के हाथ काटे गए तो हनुमान जी की मूर्ति के नाक और कान से रंगड़ (काटने वाली मक्खियां) निकल कर मुगल आक्रमणकारियों को काटने लगीं जिससे वे वहीं खत्म हो गए और उनका सफाया हो गया। ये रंगड़ आज भी मंदिर में पाई जाती हैं।
किंवदंतियों के अनुसार अगर किसी के बच्चे बीमार रहते हों या किसी को भी दुख-तकलीफ हो तो बच्चे को सीता माता की गोद में डाला जाता है या मां दुर्गा के चरणों में रखा जाता है।
मंदिर में दिन में चार समय भोग और आरती का विधान है। मंदिर का संबंध जयसिंहपुर की बेटी तारा रानी के साथ भी है जिनका विवाह जम्मू-कश्मीर के पूर्व महाराजा हरि सिंह के साथ हुआ था। राज परिवार द्वारा धर्मार्थ ट्रस्ट बनाकर इस मंदिर के रख-रखाव में योगदान दिया जा रहा है जिसके अध्यक्ष महाराजा डा. कर्ण सिंह हैं।