Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Feb, 2023 08:24 AM
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हिंसा के मुकाबले लाचारी का भाव आना अहिंसा नहीं कायरता है। अहिंसा को कायरता के साथ नहीं मिलाना चाहिए। —महात्मा गांधी
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Smile please: हिंसा के मुकाबले लाचारी का भाव आना अहिंसा नहीं कायरता है। अहिंसा को कायरता के साथ नहीं मिलाना चाहिए। —महात्मा गांधी
दुनिया के विभिन्न हिस्सों में भयावह पैमाने पर हुए साम्प्रदायिक दंगों, लूटपाट और बम विस्फोट की खबरों ने सभी का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया है। भारत में भी विविध धर्मों-समुदायों के लोगों के बीच हो रहे आपसी मतभेद, जो देखते ही देखते सांप्रदायिक दंगों में परिवर्तित हो जाते हैं और सामाजिक ताने-बाने का गला घोंट रहे हैं।
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क्या धर्मों के नाम पर सांप्रदायिक दंगे करना उचित है ? कदापि नहीं ! वास्तव में देखा जाए तो दंगों जैसे अधार्मिक कृत्यों के साथ किसी भी धर्म या मजहब का कोई वास्ता नहीं होता क्योंकि कोई भी धर्म किसी की हत्या या लूटपाट का उपदेश नहीं देता।
सच्चाई तो यह है कि धर्म के नाम पर इस तरह के दंगे असामाजिक तत्वों द्वारा अपने व्यक्तिगत एजैंडे को पूरा करने के लिए भड़काए जाते हैं। कई बार दूसरे समुदाय के लोगों के प्रति अपनी नफरत की भावना को बाहर निकालने के लिए भी ऐसे तत्व दंगों का सहारा लेते हैं।
हमें तो बचपन से ही ‘अल्लामा इकबाल’ का शेर पढ़ाया गया है कि ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा’।
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क्या हम वाकई इस शिक्षा पर अमल कर रहे हैं ? इसके लिए हमें अपने भीतर झांक कर देखना चाहिए कि कुछ राह भटके लोगों के बहकावे में आकर हम संतों, पैगम्बरों के आदर्शों को भूलते तो नहीं जा रहे ?
वास्तविकता तो यही है ! जब तक हम आपस में भाईचारा रखते हुए, सबसे प्रेम का व्यवहार नहीं रखेंगे तब तक ‘सर्वधर्म सम भाव’ और ‘अहिंसा परमोधर्म:’ का अर्थ दुनिया के समक्ष स्पष्ट नहीं कर पाएंगे।
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हम सभी अपने धर्म के सही मार्ग का अनुसरण करें, जो यह कहता है कि ‘हम सभी एक हैं और एक परमात्मा की सन्तान हैं’।
इसी भावना से निर्मित होगा सार्वभौमिक सद्भाव का वातावरण।
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